बासमती से जरा भी कम नहीं ‘चिन्नौर’, दुनियाभर में क्यों धूम मचा रहा ये चावल?

बासमती से जरा भी कम नहीं ‘चिन्नौर’, दुनियाभर में क्यों धूम मचा रहा ये चावल?


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Balaghat News: चिन्नौर शब्द दरअसल एक शॉर्ट फॉर्म है. चिन्नौर में चि का मतलब चिकना से है, नौ से नोकदार से और र का मतलब राइस से है. इस तरह इस चावल का नाम चिन्नौर पड़ा. यह चावल दूसरे राइस से काफी अलग है. दुनियाभर …और पढ़ें

बालाघाट. मध्य प्रदेश के बालाघाट को धान के खेती के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. बालाघाट को राज्य का ‘धान का कटोरा’ नाम से भी जाना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां पर धान का उत्पादन पूरे मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा है. ऐसे में धान की कई किस्में ऐसी हैं, जिनका जन्म बालाघाट में ही हुआ है. इसी में से एक है चिन्नौर चावल, जिसे 14 सितंबर 2021 को जीआई टैग मिला था. इसे बालाघाट जिले से ‘एक जिला, एक उत्पाद’ के रूप में भी चुना गया है. अब जानते हैं कि चिन्नौर किस्म इतनी खास क्यों है.

चिन्नौर शब्द एक शॉर्ट फॉर्म है, जिसकी फुल फॉर्म है- इसमें चि से चिकना, नौ से नोकदार और र से राइस है. इस तरह इसका नाम चिन्नौर पड़ा. चिन्नौर चावल दूसरे चावलों से काफी अलग है. दुनियाभर में बासमती चावल की धूम है लेकिन यह सामान्य सा दिखने वाला चावल बेहद खास है. बालाघाट के कृषि उप-संचालक फूल सिंह मालवीय ने लोकल 18 को बताया कि यह चावल खाने में मीठा और मुलायम होता है. इसे पकाने में बहुत कम समय लगता है और इसे खीर के लिए सर्वोत्तम चावल माना जाता है. यह सुपाच्य होता है, इसलिए इसे लोग खूब चाव से खाते हैं.

बढ़ रहा है चिन्नौर का रकबा
चिन्नौर चावल को जीआई टैग मिलने के बाद बहुत से किसानों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई है. फूल सिंह मालवीय ने कहा कि इसका रकबा धीरे-धीरे बढ़ रहा है. इस साल चिन्नौर का रकबा करीब 1500 हेक्टेयर तक पहुंचा है. इसकी उत्पादकता करीब 750 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से है. वहीं बीते सीजन इसका कुल उत्पादन करीब 10 हजार क्विंटल रहा. इस सीजन में इतने ही उत्पादन की उम्मीद है. इसका ज्यादातर उत्पादन वारासिवनी के आसपास के इलाकों में होता है.

डीएसआर पद्धति का करें इस्तेमाल
कृषि उप-संचालक ने आगे कहा कि इसके लिए किसान भाई डीएसआर पद्धति (डायरेक्ट सोविंग राइस) का इस्तेमाल कर सकते हैं. सुपर सीडर से खेत में सीधे बीज को बोया जाता है. ऐसे पानी की भी बचत होती है. इसमें कीचड़ तैयार करने की जरूरत नहीं होती है. ऐसे में किसान भाइयों की मेहनत की भी बचत होती है. वहीं किसान भाई संतुलित खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं. रोग और कीट से फसल को बचाना चाहिए.

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