2014 में पंकज सिंह, 2025 में अंशुल कंबोज, पेस के पैदल बनने का न्यू चैप्टर

2014 में पंकज सिंह, 2025 में अंशुल कंबोज, पेस के पैदल बनने का न्यू चैप्टर


मैनचेस्टर.  एक नए युवा गेंदबाज़ को स्पीड गन पर 125 किमी प्रति घंटे की औसत से गेंदबाज़ी करते देखना अजीब था. पहली नजर में लगा कि ये इत्तेफाक हो सकता है पर लगातार स्पीड इसी के आस-पास रहना अलग तरह के संकेत दे रही थी भारत का अंशुल कंबोज को एक लगभग निर्णायक सीरीज़ में टेस्ट डेब्यू देने का फ़ैसला ग़लत था और इंग्लैंड ने उनके इसी बेरुख़ी भरे रवैये का फ़ायदा उठाकर चौथे टेस्ट पर कब्ज़ा कर लिया.

जिसने भी अंशुल कंबोज को टेस्ट डेब्यू देने का फ़ैसला किया, उसने इस युवा गेंदबाज़ के साथ अन्याय किया है. यह भारत के लिए एक ग़लत फ़ैसला साबित हुआ और इस गेंदबाज़ के ज़ख्म हमेशा के लिए गहरे हो सकते हैं. सच कहूँ तो, वह इस दौर के लिए तैयार नहीं थो और वह तीसरे तेज गेंदबाज की भूमिका के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं दिखे और बिल्कुल बेबस सा लग रहे थे. हो सकता है उसे जेट लैग हो या वह अनफ़िट हो पर उनको खिलाने की क्या जल्दी थी ये किसी को समझ नहीं आया. 125 किमी प्रति घंटे की औसत से गेंदबाज़ी करने वाला कोई भी खिलाड़ी इस स्तर पर नए गेंदबाज़ के तौर पर नहीं खेल सकता और उसके आने से भारत के गेंदबाज़ी आक्रमण का संतुलन पूरी तरह से बिगड़ गया है.

ना रफ्तार ना धार फिर खेले किस आधार 

अंशुल नए है और हम सबकी सहनभूति उनके साथ है पर उनको रनअप ध्यान से देखेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि कुछ गड़बड़ है. उसकी बॉडी लैंग्वेज से पता चलता है कि उसे मज़ा नहीं आ रहा है वह दौड़कर आता है,लेकिन बात यहीं खत्म हो जाती है जो रूट और बेन स्टोक्स उनको स्पिनर की तरह ट्रीट कर रहे थे  और अपनी मर्ज़ी से बल्लेबाज़ी कर रहे थे. एक समय तो रूट एक फुट बाहर खड़े होकर हर गेंद पर कुछ कदम नीचे उतर रहे थे. हैरानी की बात तो ये थी कि ना तो कीपर खुद उपर आया ना ड्रेसिंग रुम से कोई संदेश भेजा गया.

याद आ गया 2014 

अंशुल कम्बोज ने जिस तरह से ओल्ड ट्रैफर्ड की पिच पर गेंदबाजी कि  बरबस 2014 के पंकज सिंह की याद दिला दी. दुर्भाग्य से, उन्होंने फिर कभी भारत के लिए टेस्ट क्रिकेट नहीं खेला. वैसे कंबोज के स्पेल ने मुझे आरपी सिंह की भी याद दिला दी, जिन्हें 2011 में टीम में शामिल होने के लिए बुलाया गया था, जब उनका क्रिकेट से कोई नाता नहीं था और वे छुट्टियों पर थे. उनकी पहली गेंद 78 मील प्रति घंटे की रफ्तार से एक बहुत बड़ी वाइड फेंकी गई थी. सीरीज़ के निर्णायक मैच में कंबोज का फैसला जितना बुरा हो सकता था, उससे कहीं ज्यादा  बुरा हुआ.

कंबोज को खिलाने की जल्दी क्यों थी 

ब़ड़े बड़े क्रिकेट जानकार ये जानना चाहते है कि किसी वजह से टीम प्रबंधन ने कंबोज को तरजीह दी इस कमी ने भारत को बहुत नुकसान पहुँचाया है. लंच के बाद के समय ने दूसरी नई गेंद के साथ कंबोज के प्रदर्शन और बदतर हो गया था.  बुमराह मैदान से बाहर चले गए थे और भारत को मजबूरन कंबोज को ही गेंदबाजी करवानी पड़ी. शुभमन गिल भी बायो-ब्रेक के लिए मैदान से बाहर चले गए थे, इसलिए कोई भी इस युवा गेंदबाज से बात करते नहीं देखा गया कंबोज और भारत दोनों ही भ्रमित दिखे.

यह टेस्ट मैच, व्यावहारिक रूप से, हार चुका है. अगर भारत पूरी ताकत से बल्लेबाजी नहीं करता, तो अब केवल एक ही विजेता है.  इसका मतलब एक और सीरीज़ हारना होगा और गौतम गंभीर तथा मोर्ने मोर्कल के लिए गंभीर सवाल खड़े होंगे.  पिछले एक साल में, भारत ने इस प्रारूप में कुछ भी नहीं जीता है और उसका खाता बहुत खराब दिख रहा है. कोई भी गेंदबाज़ सामने नहीं आया है और जो एक साल पहले अच्छे दिख रहे थे, जैसे मुकेश कुमार, वो इस समय टीम में नहीं हैं. ओवल में होने वाले आखिरी टेस्ट से पहले, ऐसा लग रहा है कि भारत 2014 में वापस चला गया है – बेजान, कल्पनाहीन और हार मानने वाली बॉडी लैंग्वेज.  कम्बोज को टीम में शामिल करना इस बात का प्रमाण है और दिखाता है कि मैनचेस्टर में जो कुछ भी गलत हो सकता था, वो हो ही गया.



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