“बेटा मारता है, राशन बेचता है… और हम खामोश रहें?”
हाल ही में गांव की 100 से ज्यादा महिलाएं कलेक्टर ऑफिस पहुंचीं और फूट-फूटकर रो पड़ीं. किसी के पास शिकायत की चिट्ठी नहीं थी, सिर्फ आंसू थे. महिलाओं ने बताया कि “हमारे खाते में जो लाड़ली बहना योजना का पैसा आता है, वो हमारे बेटे छीन लेते हैं. घर का तेल, शक्कर, आटा तक बेच देते हैं, ताकि शराब मिल सके.”
गांव की पहचान अब “नशेड़ी गांव” बन चुकी है. लड़कों के रिश्ते नहीं हो रहे, क्योंकि लड़कियों के परिवार अब यहां शादी करने से डरते हैं. जो शादियां हुई थीं, वहां भी महिलाएं अपने पतियों को छोड़कर जा चुकी हैं, क्योंकि वे नशे में हिंसक हो जाते हैं.
गांव की महिलाएं बोलीं “नशामुक्ति नहीं तो धरना देंगे”
गांव की महिलाएं अब एक सुर में कह रही हैं, “अगर गांव को नशामुक्त नहीं किया गया, तो हम अगली जनसुनवाई में सड़क पर बैठ जाएंगी.” उनका डर जायज है घर में मारपीट, राशन की चोरी और सामाजिक बदनामी ने उनके जीवन को नर्क बना दिया है.
महिलाओं की गुहार के बाद असिस्टेंट आबकारी अधिकारी सीएच मीणा ने कहा कि जल्द ही अवैध शराब पर कार्रवाई की जाएगी और जांच टीम गांव भेजी जाएगी. अब देखने वाली बात यह है कि क्या सिर्फ कार्रवाई से गांव का नशा छूटेगा या कोई स्थायी समाधान निकलेगा?
लाड़ली बहना योजना के नाम पर शराब की बर्बादी!
यह मामला सिर्फ एक गांव का नहीं है, यह एक बड़ा सामाजिक प्रश्न है. जहां सरकार महिलाओं को सशक्त बनाने की कोशिश कर रही है, वहीं कुछ जगहों पर यह पैसा घर बर्बाद करने का जरिया बन रहा है.