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Kadaknath Chicken: झाबुआ से शुरू हुआ कड़कनाथ मुर्गा अब खंडवा की मदद से विदेशों तक पहुँच चुका है. जानिए इस काले मुर्गे की खासियत, अगर सही तरीके से इसका पालन किया जाए, तो किसान कम समय में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. (रिपोर्ट: सावन पाटिल)
कभी सिर्फ झाबुआ की पहचान रहा कड़कनाथ मुर्गा, अब खंडवा की ज़मीन से नेपाल, भूटान और मलेशिया तक अपनी उड़ान भर रहा है. यह सिर्फ एक नस्ल नहीं, अब किसानों की आर्थिक आज़ादी और सेहत के प्रति सजग दुनिया की नई पसंद बन चुका है.

कड़कनाथ मूल रूप से आदिवासी बहुल झाबुआ जिले की नस्ल है. इसकी सबसे बड़ी खासियत इसका पूरा शरीर गहरे काले रंग का होता है, जिसमें त्वचा, मांस, यहां तक कि खून भी काले रंग का होता है.

लेकिन अब यह केवल झाबुआ तक सीमित नहीं रहा. खंडवा में इस नस्ल को सिस्टमेटिक ट्रेनिंग, टीकाकरण और मार्केटिंग के साथ बड़े स्तर पर पाला जा रहा है.

कड़कनाथ की हाई प्रोटीन और लो कोलेस्ट्रॉल वाली खासियत ने इसे सिर्फ भारत ही नहीं, विदेशों में भी चर्चित बना दिया है. नेपाल, भूटान और मलेशिया में इसकी बढ़ती मांग ने इसे इंटरनेशनल ब्रांड बना दिया है.

100 कड़कनाथ मुर्गों से एक किसान 1 से 1.5 लाख रुपए तक की कमाई सिर्फ 2-3 महीने में कर सकता है. इस नस्ल के चूजे तक 80-100 रुपए में बिकते हैं. जबकि व्यस्क मुर्गा 800 से 1200 रुपए/किलो तक जाता है.

इसकी कम वसा और उच्च प्रोटीन सामग्री के कारण इसकी बाजार में जबरदस्त मांग है. यही वजह है कि खंडवा के कई किसान धान और गेहूं की खेती छोड़कर अब कड़कनाथ पालन की ओर बढ़ रहे हैं.

क्या है इसकी सेहत से जुड़ी खासियत?<br />लो कोलेस्ट्रॉल<br />हाई प्रोटीन<br />हीमोग्लोबिन और आयरन से भरपूर<br />इम्यून सिस्टम को मजबूत करने वाले अमीनो एसिड और फैटी एसिड<br />डायबिटीज और हृदय रोगियों के लिए लाभकारी

खंडवा एग्रीकल्चर कॉलेज का स्पेशल पोल्ट्री यूनिट किसानों को पालन, ट्रीटमेंट, फीडिंग और मार्केटिंग की ट्रेंनिंग दे रहा है. सरकार ने भी सब्सिडी और योजनाओं से इसे प्रोत्साहित किया है. खंडवा के एक स्थानीय किसान राकेश पाटीदारबताते हैं कि हमने 50 कड़कनाथ से शुरुआत की, आज हर महीने 25-30 हजार कमा रहे हैं. अब तो विदेशों से भी कॉल आते हैं.