टीम का ‘संतुलन’ बनाने के नाम पर कुलदीप हुआ साजिश का शिकार, गेंदबाज हुआ बेकार

टीम का ‘संतुलन’ बनाने के नाम पर कुलदीप हुआ साजिश का शिकार, गेंदबाज हुआ बेकार


मैनचेस्टर. ओल्ड ट्रैफर्ड के मैदान पर डेब्यू करने वाले अंशुल कंबोज अपनी क्षमता से ज़्यादा प्रदर्शन नहीं कर पाए और शार्दुल ठाकुर को 157 ओवरों में से सिर्फ़ 11 ओवर ही गेंदबाजी कराई गई ऐसे में कुलदीप यादव जैसे की कलाई की स्पिन गेंदबाज को बाहर करके भारत कितना संतुलित टाम बना पाया हैं ये किसी से छुपा नहीं है. कुलदीप को बाहर बैठाने पर हैरानी इस लिए भी होती है क्योंकि इंग्लिश बल्लेबाज रिस्ट स्पिनर्स के खिलाफ कभी भी सहज नहीं रहते इतिहास इस बात का गवाह है.

इस सीरीज़ से पहले कुलदीप यादव ने एक इंटरव्यू में कहा था कि स्पिनरों के साथ एक ख़ास बात होती है बल्लेबाज़ों को पढ़ना जो समय और अनुभव के साथ आती है. मुझे लगता है कि मैंने बल्लेबाज़ों की अगली चाल को समझने की क्षमता विकसित कर ली है, ख़ासकर टी20 खेलने के अपने अनुभव की वजह से, जहाँ यह ज़रूरी है. और यह कौशल निश्चित रूप से लाल गेंद वाले क्रिकेट में भी मेरी रणनीति बनाने में मदद करेगा. पर ये बात तक तो पहुंच गई पर टीम मैनेजमेंट बहरा बना रहा.

कुलदीप की सारी तैयारी धरी रह गई

इंग्लैंड दौरा शुरु होने से पहले कुलदीप में एक उत्साह साफ़ झलक रहा था क्योंकि वो इस टीम के खिलाफ पिछली सीरीज में 17 विकेट ले चुके थे और उनका खेलना तय माना जा रहा था.कुलदीप इंग्लैंड की पिचों पर कुछ अलग करने के लिए बेताब थे. इंग्लैंड की उस बल्लेबाज़ी इकाई के ख़िलाफ़, जिसने बाएँ हाथ के कलाई के स्पिन गेंदबाज़ों को शायद ही कभी खेला हो, कुलदीप के पास हमेशा मौका था. लेकिन सिर्फ़ तभी जब उनका टीम प्रबंधन और कप्तान उन्हें चुनें. किसी भी वजह से, भारत ने ऐसा न करने का फैसला किया. वजह बताई गई संतुलन. भारत को संतुलन की ज़रूरत थी, और यहाँ इसका मतलब था ज़्यादा बल्लेबाज़ी. नतीजतन, कुलदीप – जिनकी रक्षात्मक तकनीक भी अच्छी है फिर भी वो बाहर बैठे रहे. मैनचेस्टर में मददगार विकेट पर छह गेंदबाज़ों के साथ खेलने के बाद, भारत ने पहली पारी में 669 रन दे दिए. ‘संतुलन’ काम नहीं आया बल्कि, यह पूरी तरह से बेमेल लग रहा था और सोच की भ्रांति बेरहमी से उजागर हो गई.

बैलेंस बनाना तो सिर्फ बहाना था

भारत ने शार्दुल ठाकुर और वाशिंगटन सुंदर को गेंदबाज़ी ऑलराउंडर के तौर पर खिलाया. शार्दुल ने 157 में से 11 ओवर फेंके. साफ़ है, कप्तान को उन पर भरोसा नहीं है. हेडिंग्ले में, उन्हें 40वें ओवर के बाद ही गेंदबाज़ी करने को कहा गया था, और यहाँ उन्होंने चौथा तेज़ गेंदबाज़ होने के बावजूद सात प्रतिशत ओवर फेंके. अगर कप्तान को भरोसा नहीं है तो उन्हें क्यों खिलाया गया ये सवाल तो पूछा जाएगा. क्या इससे संतुलन पर असर नहीं पड़ता क्या इससे जसप्रीत बुमराह और मोहम्मद सिराज पर बोझ नहीं बढ़ेगा और आक्रमण की ताकत और ताकत कम नहीं होगी. अगर ठाकुर ने सिर्फ़ 11 गेंदबाज़ी कीं, तो अंशुल कंबोज इस स्तर के लायक़ नहीं लग रहे थे. हो सकता है कि उन्होंने आखिरी बार लाल गेंद का मैच छह हफ़्ते पहले खेला हो.पर मैनटेस्टर पहुंचते ही उनको मैच में उतार दिया गया और कुलदीप फिर बैलेंस के नाम पर बाहर.

किस काम का बॉलिंग कोच?

टीम इंडिया के बॉलिंग कोच मोर्नी मोर्कल जल्द ही गेंदबाजी कोच के रूप में अपना एक साल पूरा करेंगे.पर उनका खाता पूरी तरह से खाली है। ऐसा एक भी गेंदबाज़ नहीं है जिसके बारे में कहा जा सके कि मोर्कल के नेतृत्व में उसमें सुधार हुआ है. अगर अभिषेक नायर को ऑस्ट्रेलिया दौरे के बाद बर्खास्त किया जा सकता है, तो आश्चर्य की बात है कि मोर्कल इसके बाद भी अपनी नौकरी कैसे और क्यों बनाए रखते हैं? जवाबदेही कहाँ है, और क्या सवाल नहीं पूछे जाएँगे? मोर्कल के नेतृत्व में, भारत की गेंदबाजी व्यवस्था निराशाजनक रूप से खाली दिखती है और यह हर लिहाज़ से एक दुखद कहानी है. कुलदीप की बात करें तो, वह खुश चेहरा दिखाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है। सच तो यह है कि आप इस मैच विनक के साथ ऐसा नहीं कर सकते.कुलदीप भी इंसान हैं, और आपको दुख और निराशा का एहसास होगा. आपका उत्साह दिन-ब-दिन कम होता जाएगा, और नेट्स पर आपकी गेंदबाजी जल्द ही प्रभावित होगी. बिना मैच खेले दिन-रात मैदान पर उतरना मुश्किल है, और कुलदीप के लिए इसे स्वीकार करना बेहद मुश्किल होगा.

मैनचेस्टर अब खत्म हो चुका है। लेकिन ओवल में अभी एक टेस्ट मैच बाकी है, और विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (WTC) को देखते हुए, हर मैच मायने रखता है. अंक दांव पर हैं, और सम्मान भी. क्या भारत अपनी रणनीति में सुधार करेगा और कुलदीप को टीम में शामिल करेगा, या फिर अपनी ज़िद पर अड़ा रहेगा और उसे बाहर ही रखेगा? यह फैसला भारतीय क्रिकेट की दिशा तय कर सकता है.



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