योगेश बताते हैं कि “मैं दसवीं फेल हूं, लेकिन मेरे मन में था कि कोई ऐसा काम करूं जिसमें मैं अपने दम पर आगे बढ़ सकूं. पशुपालन का विचार आया और बस शुरुआत कर दी. धीरे-धीरे पशु बढ़े, दूध की मात्रा बढ़ी और अब स्थिति यह है कि हर महीने लाखों की आमदनी होती है.”
फिलहाल योगेश के पास 25 से 30 भैंसें हैं और वे रोजाना 200 लीटर से अधिक दूध डेयरियों में बेचते हैं. उन्होंने बताया कि इस व्यवसाय के चलते अब वे न सिर्फ खुद आत्मनिर्भर बने हैं, बल्कि 15 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार भी दे रहे हैं.
गांव के अन्य किसान भी योगेश से प्रेरणा ले रहे हैं और पशुपालन की ओर रुख कर रहे हैं. योगेश खुद उन्हें सरकारी योजनाओं और अनुदान की जानकारी निःशुल्क उपलब्ध कराते हैं.
योगेश का कहना है कि उन्होंने पशुपालन विभाग की अब तक तीन से अधिक योजनाओं का लाभ लिया है. इनमें पशुओं के लिए अनुदान, डेयरी इकाई विस्तार जैसी योजनाएं शामिल हैं. सरकारी मदद से उन्होंने अपने पशु व्यवसाय को व्यापक स्तर पर फैलाया.
वो कहते हैं कि “शुरुआत में मेरे पास कुछ नहीं था. मजदूरी करता था, लेकिन अब मैं खुद 15 लोगों को काम दे रहा हूं. मेरी यही कोशिश रहती है कि गांव के युवा भी इस क्षेत्र में आगे आएं और आत्मनिर्भर बनें.”
योगेश की कहानी उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो पढ़ाई में असफल होने के बाद खुद को असहाय मान लेते हैं. वे साबित करते हैं कि हुनर, मेहनत और निरंतर प्रयास से किसी भी क्षेत्र में सफलता पाई जा सकती है. उनका कहना है कि “पढ़ाई में सफल नहीं हुआ, लेकिन पशुपालन ने मुझे पहचान और आत्मसम्मान दोनों दिया है.”