सिर्फ पूजा नहीं, यह है समाज की पुकार
खंडवा के युवाओं ने इस यात्रा को भक्ति से जोड़कर सामाजिक प्रश्न खड़ा किया है “जब सरकार नहीं सुनती, तो भोलेनाथ तो सुनेंगे!” इनका मानना है कि खंडवा जैसे बड़े जिले में उद्योगों की कमी, बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दे केवल नारों से हल नहीं होंगे. इसी सोच के साथ उन्होंने कावड़ को अपनी आवाज बना दिया.
हर साल सावन में ये युवा ओंकारेश्वर से जल लेकर खंडवा के महादेवगढ़ मंदिर पहुंचते हैं. रास्ता भले ही 65 किलोमीटर का हो, लेकिन उनके कंधों पर सिर्फ कावड़ नहीं, बल्कि एक मौन प्रदर्शन है. बरसात, कीचड़, बाढ़, पथरीले रास्ते कुछ भी उनकी आस्था और उम्मीद को नहीं डिगा पाया.
“भोलेनाथ कंपनी थोड़ी लगवाएंगे” पहले लोग हंसते थे
टीम के सदस्य अर्जुन कटोड़ा कहते हैं, “शुरुआत में लोग हंसी उड़ाते थे, कहते थे भोलेनाथ कंपनी थोड़ी लगवाएंगे. लेकिन अब वही लोग कहने लगे हैं तुम लोग कुछ अलग कर रहे हो.” इस यात्रा ने अब गांव-गांव में उम्मीद और चर्चा दोनों जगा दी है.
इन युवाओं की मंशा है कि खंडवा में फिर से उद्योग लगें, कंपनियां आएं और स्थानीय युवाओं को पलायन ना करना पड़े. यह कावड़ यात्रा सरकार और प्रशासन को एक संकेत है कि खंडवा का युवा अब हार नहीं मानेगा, बल्कि अपने शहर के भविष्य के लिए हर रास्ता अपनाएगा चाहे वो धार्मिक हो या सामाजिक.
अब शासन और समाज को देनी चाहिए जवाबदारी
इन युवाओं की पांच साल की निरंतरता इस बात का प्रमाण है कि यह सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि एक प्रतिबद्ध सामाजिक आवाज है. अब ज़रूरत है कि शासन, प्रशासन और निजी उद्योग जगत खंडवा की इस पुकार को गंभीरता से सुने.