नेत्र रोग विशेषज्ञों के मुताबिक, आंखों में होने वाली इस बीमारी को ‘फंगल कॉर्नियल इंफेक्शन’ कहा जाता है. यह बीमारी खासकर उन लोगों को होती है, जो मिट्टी से जुड़े काम करते हैं. जैसे किसान, माली, कुम्हार या निर्माण कार्य से जुड़े लोग. इसके अलावा छोटे बच्चों और बुजुर्गों में भी इसका खतरा ज्यादा रहता है, क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है. यह संक्रमण हवा के माध्यम से भी फैलता है.
खरगोन के नेत्र रोग सह-चिकित्सक डॉ. महेश पाटीदार बताते हैं कि फंगल संक्रमण के शुरुआती लक्षणों में आंखों में जलन, चिपकना, लालिमा और बहुत अधिक कीचड़ (डिस्चार्ज) आना शामिल है. यदि दो से तीन दिन में इलाज न हो, तो आंख की पुतली पर सफेद छाला बन जाता है, जो बाद में फूट जाता है. इस स्थिति में संक्रमण बढ़ जाता है और आंख की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है. एक बार दृष्टि चली जाने के बाद उसे वापस पाना मुश्किल हो जाता है.
किसे है ज्यादा खतरा?
इस संक्रामक बीमारी का खतरा सबसे ज्यादा किसान, माली, मजदूर और कुम्हार जैसे पेशे से जुड़े लोगों को रहता है. इनके अलावा छोटे बच्चे और बुजुर्ग, कम इम्युनिटी वाले व्यक्ति और आंखों की एलर्जी या पूर्व रोग से पीड़ित लोग भी जल्दी इस रोग के सम्पर्क में आते है. डॉ. पाटीदार के अनुसार, छोटे बच्चों में यह संक्रमण जल्दी बढ़ता है क्योंकि वे आंख में दर्द या जलन बता नहीं पाते. कई बार आंखें पूरी तरह चिपक जाती हैं और बच्चा आंख खोल भी नहीं पाता.
फंगल इंफेक्शन के लक्षण दिखते ही तुरंत नजदीकी नेत्र चिकित्सक से संपर्क करें. बिना डॉक्टर की सलाह के कोई आई ड्रॉप या स्टेरॉयड का इस्तेमाल न करें, इससे बीमारी बिगड़ सकती है. संक्रमित व्यक्ति का तौलिया, रुमाल या तकिया उपयोग न करें. मरीज की आंखों में सीधा देखने से बचें, क्योंकि यह हवा से फैलने वाली संक्रामक बीमारी है.
कैसे करें बचाव?
डॉक्टर बताते है कि, दिन में 6 से 7 बार साफ पानी से मुंह और आंखें धोएं. मिट्टी या खेत में काम करते समय चश्मा पहनें. आंखों में कोई भी जलन या चिपचिपाहट हो तो इसे नजरअंदाज न करें. संक्रमित व्यक्ति से दूरी बनाकर रखें, खासकर बच्चों को मिट्टी से दूर रखें. क्योंकि, बरसात में थोड़ी सी लापरवाही आंखों की रोशनी छीन सकती है.