आरसेटी की ट्रेनर दे रहीं प्रशिक्षण, महिला-बंदी भी हो रही शामिल
जेल में बंदियों को यह प्रशिक्षण इंडियन बैंक द्वारा संचालित ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आरसेटी) की अनुभवी ट्रेनर मीना पटेल दे रही हैं. लोकल 18 से बातचीत में उन्होंने बताया कि वह पिछले 15 वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रही हैं लेकिन पहली बार केंद्रीय जेल सतना में प्रशिक्षण दे रही हैं. उन्होंने बताया कि महिला और पुरुष दोनों ही बंदियों ने पूरी लगन से प्रशिक्षण में भाग लिया और एक ही सत्र में चीजें सीख लीं.
प्रशिक्षण के दौरान कैदियों ने बताया कि वे उत्पादों को जैविक व घरेलू तरीकों से बना रहे हैं जिनमें किसी भी तरह का हानिकारक केमिकल नहीं मिलाया जा रहा. धारा 302 में बंद मनोज चौरसिया ने बताया कि साबुन, फिनायल, हार्पिक सभी उत्पाद देसी तरीके से बिना केमिकल बनाए जा रहे हैं. वहीं साबुन की वेरायटी में गुलाब जेल, ग्लिसरीन, नीम और एलोवेरा जैसे प्राकृतिक तत्वों का उपयोग हो रहा है.
कैदी खुद समझा रहे साबुन-निर्माण की प्रक्रिया
बंदी उपेंद्र ने बताया कि साबुन बनाना बेहद आसान है. 100 ग्राम एलोवेरा का पेस्ट निकालकर पीसकर छाना जाता है, फिर 120°C की हीट पर इसे इंडक्शन में चढ़ाया जाता है. इसके बाद 900 ग्राम कच्चा सोप डाला जाता है और कुछ देर हिलाने के बाद खुशबू के लिए दो बूंद सेंट मिलाकर साँचे में डाल दिया जाता है. सूखने के बाद साबुन तैयार हो जाता है. इसी विधि से सभी प्रकार के साबुन तैयार किए जा रहे हैं.
302 के कैदी हीरामन पटेल ने बताया कि फिनायल 10-15 मिनट में आसानी से बन जाता है. वहीं हार्पिक के लिए एसिड थिनर, स्काई ब्लू कलर और सेंट का उपयोग किया जाता है. धारा 302 में आरोपी महिला बंदी सुमन सिंह ने बताया कि उन्हें इस कार्य में आत्मसंतोष मिल रहा है और वे रिहाई के बाद भी इन उत्पादों को घरेलू उपयोग में लाएंगी.
धारा 366 की सजा काट रही सुनीता वर्मा ने बताया कि एक कुंटल डिटर्जेंट 24 घंटे में बनकर तैयार हो जाता है. इसमें सोडा, नमक, डोलमाइट आदि जैसे पदार्थों का प्रयोग होता है. वहीं 302 के आरोपी बृजेन्द्र सिंह ने कहा कि इन उत्पादों को बनाना सीखकर उन्हें बाहर जाने के बाद रोजगार की नई राह मिल सकती है.
जेल अधीक्षक लीना कोष्टा ने लोकल 18 को बताया कि इंडियन बैंक ग्रामीण स्वरोजगार योजना के तहत यह तीन दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया है जिसमें 35 महिला और पुरुष बंदियों ने भाग लिया. यह प्रशिक्षण उन्हें आत्मनिर्भर बनाकर समाज की मुख्यधारा में जोड़ने में मदद करेगा. उन्होंने यह भी बताया कि भविष्य में सतना जेल में इन उत्पादों की एक स्थायी यूनिट स्थापित करने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है ताकि इन सस्ते और जैविक उत्पादों की आपूर्ति मध्यप्रदेश की अन्य जेलों में भी हो सके.
इन उत्पादों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये बाजार की कीमतों से 10% से 20% तक सस्ते हैं और गुणवत्ता के मामले में एरियल, टाइड जैसे ब्रांड्स को टक्कर देते हैं. जेल में तैयार हो रहे ये उत्पाद अब सुधार, आत्मनिर्भरता और पुनर्वास की दिशा में एक नई मिसाल बनकर उभर रहे हैं.