जितना रंगीन, उतना ही खतरनाक
सागर स्थित जूलॉजी विभाग के एक्सपर्ट डॉ. मनीष जैन बताते हैं कि उत्तर-पूर्व भारत और वेस्टर्न घाट के सघन वर्षा वनों में ऐसे कई मेंढक पाए जाते हैं, जिनके शरीर पर तड़क-भड़क वाले रंग होते हैं. ये रंग वास्तव में उनके शरीर में मौजूद जहरीले तत्वों की चेतावनी होते हैं.
डॉ. जैन के अनुसार, “जितना ज्यादा रंग चमकीला होता है, उतना ही मेंढक जहरीला होता है. कुछ प्रजातियों में तो जहर की ताकत साइनाइड से भी अधिक पाई गई है.”
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के चमकीले और जहरीले मेंढक उत्तर-पूर्व भारत (अरुणाचल, मेघालय, मिजोरम) और पश्चिमी घाट (केरल, कर्नाटक) जैसे इलाकों में अधिक पाए जाते हैं. इन क्षेत्रों में आज भी घने जंगल और स्थायी नमी मौजूद है, जो इन प्रजातियों के लिए आदर्श पर्यावरण है.
हालांकि बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में इनका मिलना दुर्लभ है क्योंकि यहां मौसमी असंतुलन ज्यादा होता है कभी बहुत बारिश, तो कभी तेज धूप.
चमकीले रंगों को समझें ‘प्राकृतिक चेतावनी’
डॉ. जैन कहते हैं कि यह रंग सिर्फ सौंदर्य नहीं है, यह प्राकृतिक वॉर्निंग सिग्नल है. जो जीव इन मेंढकों को शिकार बनाना चाहें, उनके लिए यह रंग “खतरनाक हूँ” जैसा संकेत होता है. कई बार मनुष्य भी अनजाने में इन्हें छू लेते हैं, जिससे एलर्जी, जलन या ज़हर का असर हो सकता है.
उन्हें दूर से देखें, लेकिन छूने की कोशिश बिल्कुल न करें.
अगर कहीं बच्चों को ऐसे मेंढक मिलें तो उन्हें जागरूक करें.
इन मेंढकों की तस्वीरें या वीडियो लेकर वन विभाग को सूचना दें, ताकि उचित निगरानी हो सके.