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International Tiger Day 2025: हर साल 29 जुलाई को इंटरनेशनल टाइगर डे मनाया जाता है ताकि लोगों में बाघों के संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाई जा सके. विश्व टाइगर दिवस (World Tiger Day) के मौके पर पढ़े सफेद बाघ ‘मोहन’ की कहानी… (रिपोर्ट: वंदना रेवांचल तिवारी)
मध्य प्रदेश को यूं ही टाइगर स्टेट नहीं कहा जाता. ये तो सभी जानते हैं कि मध्य प्रदेश में बाघों की संख्या देश में सबसे ज्यादा है. लेकिन, यहां मिलने वाले पहले सफेद बाघ का इतिहास कम लोग ही जानते होंगे. 74 साल पहले रीवा की धरती पर सफेद बाघ मिला था. रीवा के राजा मार्तण्ड सिंह ने इस सफेद बाघ को अपना जिगरी दोस्त बनाकर महलों में रखा. इसका नाम ‘मोहन’ रखा गया था. इसकी खासियत थी कि ये सफेद बाघ हर रविवार को व्रत रखता था. इस दौरान वह आहार के रूप में केवल दूध लेता था.

बात 1951 की है. एक दिन रीवा के राजा मार्तण्ड सिंह ने जंगल में सफेद रंग के बाघ को देखा तो वे इस पर मोहित हो गए. उन्होंने इस सफेद बाघ को पकड़ने की योजना बनाई. मार्तण्ड सिंह ने सीधी के बरगड़ी के जंगल से सफेद बाघ को पकड़ा. सफेद बाघ से महाराजा मार्तण्ड सिंह को इतना लगाव हो गया कि उन्होंने इसे बड़े दुलार के साथ गोविंदगढ़ के किले मे रखा. सफेद शेर ‘मोहन’ की लाइफ वाइल्ड से बदलकर महलों वाली हो गई. बाघ की सफेद खाल और नीली रंग की आंखें देखकर राजा मार्तण्ड सिंह ही क्या महल का पूरा स्टाफ मोहित हो गया. ये सफेद बाघ अभी कम उम्र का था. समय के साथ ‘मोहन’ बड़ा हो गया.

इतिहासकारों के मुताबिक, “सफेद बाघ ‘मोहन’ की किले में खिदमत उसी तरह होती थी, जैसे किसी बघेल राजवंश के राजा की. मोहन की देखरेख करने वाले रियासत के कर्मचारी उससे बड़े ही अदब से पेश आते थे. सभी उसे मोहन सिंह कहकर पुकारते थे.” ‘मोहन’ की कहानी को जानने वाले बताते हैं “ये सफेद बाघ रविवार को खाना नहीं खाता था. फिर चाहे उसे खाना खिलाने के लिए राजा मार्तण्ड सिंह ही क्यों न मनाएं. रविवार को मोहन केवल दूध पीता था. मोहन फुटबाल खेलने का बड़ा शौकीन था.

इतिहासकार बताते हैं, “सफेद बाघ ‘मोहन’ की तीन रानिया बनीं. मोहन की एक रानी का नाम राधा था. इसके बाद 30 अक्टूबर 1958 को सफेद बाघ मोहन से बाघिन को 4 शावक हुए. इनके नाम राजा, रानी, मोहिनी और सकेशी रखा गया. धीरे-धीरे सफेद शेरों का कुनबा बढ़ता गया, जिसके बाद उनकी संख्या बढ़कर 34 हो गई. इसमें से 21 शावक सफेद थे. 11 साल बाद 19 दिसंबर 1969 को सफेद बाघ मोहन का निधन हो गया. राजकीय सम्मान के साथ मोहन को उसी गोविंदगढ़ किले के बगीचे मे दफनाया गया, जहां खेलकर वह बड़ा हुआ था. मोहन की याद मे उसी स्थान पर समाधि बनाई गई.”

साल 1976 के दौरान सफेद बाघ मोहन के आखिरी वंशज विराट की मौत हुई, मगर इससे पहले ही मोहन के कई शावक देश और दुनिया में स्थित चिड़ियाघरों में पहुंच चुके थे. मगर, रीवा से सफेद बाघों का अस्तित्व ही खत्म हो गया. जिस विंध्य की धरती ने दुनिया को सफेद बाघ की सौगात दी, उसी धरती से सफेद बाघ विलुप्त हो गए. 9 साल पहले विंध्य की धरती पर एक बार फिर सफेद बाघ की वापसी की कवायद शुरू की गई थी.

इतिहासकार डॉ. मुकेश येंगलके मुताबिक, “मंत्री रहे राजेंद्र शुक्ल ने सफेद बाघ की घर वापसी के लिए जोर लगाया. वर्ष 2016 में गोविंदगढ़ इलाके मे मुकुंदपुर स्थित टाइगर सफारी का निर्माण हुआ. इसका नाम रखा गया महाराजा मार्तण्ड सिंह जू देव व्हाइट टाइगर सफारी. टाइगर सफारी का लोकार्पण हुआ और एक बार फिर विंध्या नाम की सफेद बाघिन की विंध्य की धरती पर वापसी हुई.”

मोहन से कुल 34 शावक पैदा हुए, जिनमें से 21 सफेद थे. 30 अक्टूबर 1958 को बाघिन राधा और मोहन से चार सफेद शावकों राजा, रानी, मोहिनी और सकेशी का जन्म हुआ. यह चारों दुनिया के पहले स्वाभाविक रूप से जन्मे सफेद बाघ थे.

अकबरनामा में भी सफेद बाघों का उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि 1561 में मुगल बादशाह अकबर ने दो सफेद बाघों का शिकार किया था.