वर्गवार आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि सबसे अधिक 10.46 लाख बेरोज़गार युवा ओबीसी वर्ग से हैं. इनमें 5.73 लाख पुरुष और 4.72 लाख महिलाएं शामिल हैं. इसके अलावा 6.34 लाख सामान्य, 4.69 लाख एससी और 4.18 लाख एसटी वर्ग से हैं. कुल पंजीकृत युवाओं में 13.91 लाख पुरुष और 11.76 लाख महिलाएं हैं. यह साफ करता है कि महिला बेरोजगारी भी तेज़ी से बढ़ रही है. आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण और पिछड़े इलाकों के साथ-साथ शहरी वर्ग भी बेरोजगारी से जूझ रहा है.
सागर जिला 95,835 बेरोज़गार युवाओं के साथ पहले स्थान पर है. इसके बाद भोपाल (95,587), ग्वालियर (94,159), रीवा (89,326) और सीधी (86,737) जैसे जिले हैं. चौंकाने वाली बात ये है कि भोपाल और जबलपुर जैसे विकसित शहरों में भी बेरोजगारी की दर अधिक है. वहीं, पांढुर्णा में महज 2,852 पंजीकरण दर्ज हुए हैं. इंदौर और उज्जैन जैसे औद्योगिक जिलों का शीर्ष 10 में न होना भी बताता है कि औद्योगिक विकास अभी भी सीमित क्षेत्रों तक सिमटा है.
सरकारी दावा या आंकड़ों का खेल? विपक्ष ने उठाए सवाल
राज्यमंत्री गौतम टेटवाल ने दावा किया कि पिछले सात महीनों में बेरोज़गारी दर में 0.56% की गिरावट आई है, यानी 48,624 युवा रोजगार पा चुके हैं या पोर्टल से हटे हैं. हालांकि, विपक्ष ने इस दावे पर तीखा हमला किया. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि सरकार महज़ आंकड़े बदलकर स्थिति सुधारने का भ्रम फैला रही है. उन्होंने इसे “युवा-विरोधी नीति” करार देते हुए कहा कि भाजपा सिर्फ ‘सर्वे’ और ‘नामकरण’ की राजनीति कर रही है, समाधान नहीं.
‘आकांक्षी युवा’ बनाम वास्तविकता – ज़रूरत है ठोस कदमों की
विपक्ष ने कहा है कि रोजगारी के लिए केवल नया नाम देना समाधान नहीं है. ‘आकांक्षी युवा’ शब्द अच्छा लग सकता है, लेकिन इन युवाओं को कौशल प्रशिक्षण, उद्योग आधारित शिक्षा और स्वरोजगार योजनाओं से जोड़ना अधिक महत्वपूर्ण है. मध्यप्रदेश जैसे राज्य में जहाँ जनसंख्या और संसाधनों में असंतुलन है, वहाँ रोजगार सृजन का एकमात्र उपाय स्थानीय स्तर पर माइक्रो इंडस्ट्रीज़ और डिजिटल एंटरप्रेन्योरशिप को बढ़ावा देना होगा. जब तक ज़मीनी प्रयास नहीं होंगे, तब तक ये आंकड़े सिर्फ रिपोर्टों की शोभा बनकर रह जाएंगे.