दादी सावित्री बताती हैं, गांव की एक बूढ़ी महिला ने अपने तीन बेटों से कहा कि बहन को वीरपोस देकर आओ. दो बेटों ने गरीबी का बहाना बनाकर मना कर दिया. तीसरे बेटे ने कहा कि “मेरे पास भी कुछ नहीं, लेकिन बहन तो हमारी ही है.” वह वीरपोस देने चल पड़ा. रास्ते में उसने नदी किनारे से गेहूं के बदले रेत, खेत से गुड़ के बदले मिट्टी का डल्ला, नारियल की जगह पत्थर और कपड़ों की जगह पलाश के पत्ते उठाकर थैली में रख लिए.
भाई को रास्ते में जहरीला सांप मिला
वीरपोस देने जा रहे युवक को रास्ते में एक सांप मिला. सांप बोला, “मैं तुझे अभी काटूंगा.” युवक ने कहा, “पहले बहन को वीरपोस दे लूं, फिर काट लेना.” लेकिन, सांप नहीं माना. अंत में भाई ने उसे पगड़ी में बिठाकर साथ ले चलने का प्रस्ताव दिया. सांप मान गया. जैसे ही सांप पगड़ी में बैठा, वीरपोस माता की कृपा (टूटमान) हुई. थैली की रेत गेहूं में, मिट्टी गुड़ में, पत्थर नारियल में और पत्ते कपड़ों में बदल गए, पर युवक को इसका आभास नहीं हुआ.
जब भाई बहन के घर पहुंचा तो वह बहुत खुश हुई. भाई ने पगड़ी ऊंचे स्थान पर रख दी, ताकि कोई बच्चा उसे छू न सके. लेकिन, बच्चों ने खेलते समय लकड़ी से पगड़ी गिरा दी. तभी चमत्कार हुआ. पगड़ी से निकला सांप सोने का बन गया और टूटकर दो हिस्सों में बंट गया. बहन चौंक गई, बोली, “भाई, मैं गरीब हूं तो तू ये सब क्यों लाया?” तब भाई ने पूरी बात बताई, कैसे वो वीरपोस देने के लिए निकला और कैसे सांप पगड़ी में बैठा आया.
भाई-बहन ने बांटा सोने का सांप
जब भाई ने सच्चाई बताई तो बहन की आंखें भर आईं. भाई बोला, “बहन, तू मेरी वीरपोस को क्या जाने. कोई साथ नहीं था, लेकिन मैं चला आया और वीरपोस माता की कृपा से यह चमत्कार हुआ.” फिर, भाई ने सोने के सांप को दो हिस्सों में बांट दिया. आधा बहन को और आधा खुद रखा और घर के लिए रवाना हो गया.
अंत में दादी सावित्री की सीख
दादी कहती हैं, “जब भाई बहन को वीरपोस देने जाता है, तो वीरपोस माता टूटमान (कृपा बरसती) हैं. सच्चे भाव से कोई जाए तो राह में चमत्कार होते हैं.” ये कहानी आज के दौर में भाई-बहन के रिश्ते की गहराई को समझाने के लिए एक मिसाल है. निमाड़ में इस दिन बहन अपने भाई का बड़ी बेसब्री से इंतजार करती है.