मप्र के किसानों पर 1.62 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा कर्ज, देश में राज्य 7वें स्थान पर
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मध्यप्रदेश के किसानों पर 1.62 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज बकाया है। देश में प्रदेश सातवें नंबर पर है। यहां के 93 लाख 75 हजार बैंक खातों में किसानों पर कर्ज बकाया है। केंद्र सरकार ने कृषि लोन माफ करने से इंकार कर दिया है। वहीं राज्य सरकार ने प्रदेश में चल रही फसल ऋण माफी योजना के अंतर्गत बीते साल एक भी आवेदन नहीं करने की बात कही है।
बता दें कि 10 सांसदों के सवाल का लिखित जवाब देते हुए केंद्र सरकार ने किसानों का कर्ज माफ करने से इनकार कर दिया है। वहीं मध्यप्रदेश में विधायक सतीश सिकरवार के प्रश्न के जवाब में कृषि मंत्री एंदल सिंह कंषाना ने लिखित जवाब दिया कि फसल ऋण माफी योजना में वर्ष 2024-25 में किसानों द्वारा कोई आवेदन प्राप्त नहीं हुआ है।
न योजना चालू है और न ही बंद
मप्र में कृषि ऋण माफी योजना हमेशा ही विवादों में रही है। ये योजना कागजों में तो बंद नहीं हुई है, लेकिन व्यवहारिक रूप से बंद हो चुकी है। बजट 2025-26 में भी इस योजना का नाम तो है, पर बजट के नाम पर सिर्फ 3 हजार रुपये आवंटित हुए हैं। वह भी सिर्फ पत्राचार जैसे कामों के खर्च के लिए। कुल मिलाकर बजट ही नहीं होने से ये कहा जा सकता है कि प्रदेश में भी ऋण माफी जैसी कोई योजना नहीं है।
प्रदेश के 13 लाख किसानों को हुई निराशा
जय किसान फसल ऋण माफी योजना 2019 में लागू हुई थी। कैबिनेट में इसके लिए बाकायदा निर्णय हुआ कि 2 लाख रुपये तक के कर्जदार किसानों के ऋण माफ किये जाएंगे। मार्च 2020 तक करीब 27 लाख किसानों का ऋण माफ भी हुआ, लेकिन इनमें अधिक 50 हजार से 1 लाख रुपये तक के कर्जदार खाते ही थे। 13 लाख किसानों का भी ऋण माफ होना था, लेकिन उसके बाद से इस योजना में बजट ही नहीं आया। अब ये योजना मुख्यमंत्री फसल ऋण माफी के नाम से है।
आंकड़ा ये भी– 9,366 किसानों ने छोड़ दी सरकारी मदद
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत हर साल मिलने वाली छह हजार रुपए की सहायता को प्रदेश के 9,366 किसानों ने खुद छोड़ दिया है। बीते ढाई साल में यह संख्या दर्ज हुई है। 2023 में 4,171 किसानों ने योजना का लाभ लेना बंद किया। 2024 में 3,256 और 2025 में मई तक 1,939 किसान योजना से बाहर हो चुके हैं।
^फसल ऋणमाफी योजना अब सिर्फ कागजों में है, वास्तविकता में ये चल नहीं रही है। यदि विभाग को किसानों के आवेदन का इंतजार है तो वह हम कर देंगे। – केदार सिरोही, पूर्व सदस्य कृषि सलाहकार परिषद।