भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्ला गद्दार थे या नहीं? एमपी में इस पर राजनीतिक बहस छिड़ी है। हमीदुल्ला को गद्दार बताने वाला एक धड़ा तर्क दे रहा है कि जिस समय रियासतों का भारत में विलय हो रहा था, उस समय नवाब ने भोपाल रियासत के विलय से इनकार कर दिया था। इसलि
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वहीं दूसरे धड़े का तर्क है कि मप्र सरकार को मिंटो हॉल, हमीदिया अस्पताल, स्कूल, कॉलेज की जमीन देने वाले नवाब के राष्ट्रवादी न होने पर सवाल क्यों खड़े किए जा रहे हैं? इस बहस के बीच दैनिक भास्कर ने इतिहासकारों से बात की। उनसे समझा कि आखिर हमीदुल्ला को गद्दार कहने वाले सही हैं या न कहने वाले। पढ़िए रिपोर्ट…
कैसे शुरू हुआ गद्दार पर सियासी गदर…? 24 जुलाई को भोपाल नगर निगम परिषद की बैठक में बीजेपी पार्षद देवेंद्र भार्गव ने हमीदिया अस्पताल, कॉलेज और स्कूल के नाम बदलने का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव पास होते ही सदन में हंगामा हो गया। बीजेपी और कांग्रेस पार्षदों के बीच काफी नोक-झोंक हुई, हाथापाई तक की नौबत आ गई।
निगम बैठक में प्रस्ताव रखने वाले बीजेपी के पार्षद देवेंद्र भार्गव ने बताया कि हमीदिया अस्पताल, स्कूल और कॉलेज। ये तीन संस्थाएं पूर्व नवाब हमीदुल्ला के नाम पर है। इसे बदलने के लिए मैंने प्रस्ताव रखा। ये मेरा अधिकार है। देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था, लेकिन भोपाल 2 साल बाद हुआ।
यहां पर पोस्ट मास्टर ने जब तिरंगा फहराया तो लाठियां बरसाई गईं। दो साल बाद भोपाल आजाद हो सका। भारत सरकार ने नवाब की संपत्ति शत्रु संपत्ति घोषित कर रखी है। यह मैंने तो किया नहीं।

सूर्यवंशी बोले- पाकिस्तान का वजीर बनने का सपना था नगर निगम अध्यक्ष किशन सूर्यवंशी ने भी कहा कि नवाब हमीदुल्ला गद्दार थे, यह मैं ही नहीं पूरे भोपाल के देशभक्त मानते हैं। सबको पता है कि भोपाल रियासत को नवाब हमीदुल्ला ने 2 साल तक भारत में विलय नहीं होने दिया, बल्कि वे पाकिस्तान में शामिल कराना चाहते थे। वे पाकिस्तान का वजीर बनना चाहते थे। ये मेरे शब्द नहीं है, बल्कि इतिहास है।
इसके लिए देशभक्तों को विलीनीकरण आंदोलन चलाना पड़ा। हमीदुल्ला ने यह नौबत पैदा कर दी थी। आंदोलन करने वाले राष्ट्रभक्तों पर नवाब ने गोलियां चलवाई। क्या ये देशभक्ति की श्रेणी में आता है? वह देश का गद्दार था। ये प्रमाण है। कांग्रेसी साथ देते हैं, ये भी सामने आ चुका है।

कांग्रेस विधायक ने कहा- नवाब को गद्दार कहना गलत सदन में कांग्रेस पार्षदों ने आपत्ति ली और हंगामा किया तो बाहर मध्य विधायक आरिफ मसूद ने एतराज जताया। विधायक मसूद ने कहा कि, सबसे पहले, उन्होंने भोपाल के नवाब को “गद्दार” कहकर संबोधित किया, जो सरासर गलत है। यह जानना जरूरी है कि देश की 526 रियासतों में से केवल भोपाल रियासत ने महात्मा गांधी को आमंत्रित किया था।
साल 1929 में महात्मा गांधी सरकारी मेहमान बनकर आए थे और तीन दिनों तक भोपाल नवाब ने उनकी मेहनमान नवाजी में कोई कसर नहीं छोड़ी। दूसरा, परिषद में हमीदिया अस्पताल, कॉलेज और स्कूल के नाम बदलने का प्रस्ताव पारित किया गया, जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और एहसान फरामोशी जैसा प्रतीत होता है।

अब जानिए क्या कहते हैं इतिहासकार?

सबसे पहले गद्दार कहे जाने के समर्थन में 4 तर्क
1. भारत में विलय से इनकार और देरी इतिहासकार राजेश गुप्ता कहते हैं कि 15 अगस्त 1947 में देश की आजादी के बाद जब ज्यादातर रियासतें भारत में शामिल हो गईं थी। उस वक्त कई रियासतें भारत या पाकिस्तान में विलय को लेकर असमंजस में थी। हैदराबाद और जूनागढ़ जैसे कुछ रियासतों ने भारत में विलय से इनकार किया था,तो भोपाल के नवाब हमीदुल्ला ने भी विलय का फैसला करने में देरी की।
उन्होंने शुरुआत में भोपाल रियासत को पाकिस्तान में विलय करने में दिलचस्पी दिखाई थी। उनका भारत की स्वतंत्रता में कोई योगदान नहीं रहा और उन्होंने इसे लेकर कई आपत्तियां लगाई थीं।
2. प्रधानमंत्री बनने पाकिस्तान जाना पाकिस्तानी लेखक अकील अब्बास जाफरी ने किताब ‘पाकिस्तान क्रॉनिकल’ में नवाब हमीदुल्ला से जुड़े एक घटनाक्रम का जिक्र करते हुए लिखा कि, तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने के लिए अपने मित्र नवाब हमीदुल्ला को प्रधानमंत्री पद के लिए पाकिस्तान आने का निमंत्रण दिया।
अगले ही दिन नवाब कराची में थे और वो राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा के घर रुके थे। हालांकि, बाद में उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
3. जिन्ना से नजदीकी और पाकिस्तान से जुड़ाव राजेश गुप्ता कहते हैं कि नवाब पढ़े लिखे और ज्ञान संपन्न व्यक्ति थे, लेकिन उनकी निष्ठा भारत की बजाय पाकिस्तान की ओर थी। ऐसे में हमीदुल्लाह को देशभक्त कैसे कहा जा सकता है?

4. रायसेन के बोरास में गोलीकांड इतिहासकार गुप्ता ने अनुसार, नवाब का भारत की स्वतंत्रता में कोई योगदान नहीं रहा। विलय की आवाज उठाने वाले ‘प्रजा पुकार’ अखबार को नवाब ने भोपाल में बंद करवा दिया। देश आजाद हो गया, लेकिन भोपाल को स्वतंत्र रियासत के रूप में बनाए रखने का उन्होंने प्रयास किया।
विलय के समर्थन में रायसेन के पास बोरास गांव में तिरंगा फहराने और भारत माता के जयकारे लगाने वालों पर नवाब की पुलिस ने गोलियां चलाईं, जिसमें छह लोग मारे गए थे। इस घटना ने नवाब के भारत-विरोधी धारणाओं को और मजबूत किया।

हमीदुल्ला गद्दार नहीं इसके समर्थन में 4 तर्क
1. भारत में रहे और यहीं दफन हुए इतिहासकार अब्दुल खालिद गनी कहते हैं कि नवाब हमीदुल्लाह भोपाल में पैदा हुए और यहीं दफन हुए। उन्होंने पाकिस्तान जाकर बसने या वहां कोई पद लेने का फैसला नहीं किया। 5 फरवरी 1960 का अखबार ‘आफकार’ दिखाते हुए गनी ने कहते हैं, नवाब को 19 तोपों की सलामी थी। उनकी मृत्यु पर सरकारी कार्यालयों के झंडे झुका दिए गए।
भोपाल, सीहोर, रायसेन के स्कूल बंद कर दिए गए, दफ्तरों में छुट्टी कर दी गईं। भोपाल विधानसभा के तत्कालीन स्पीकर कुंजीलाल दुबे ने विधानसभा की कार्रवाई अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दी। ऑल इंडिया रेडियो से जनाजे की जुलूस का आंखों देखा हाल प्रसारित किया गया।
2. शिक्षा और आधुनिकता को बढ़ावा दिया प्रोफेसर अशहर किदवई कहते हैं, ’नवाब हमीदुल्ला शिक्षित और आधुनिक सोच रखने वाले शासक थे। वे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के चांसलर रहे। उन्होंने भोपाल रियासत में कई स्कूल और कॉलेज खोले। खासतौर पर महिलाओं की शिक्षा पर ध्यान दिया।

3. बिना किसी कार्रवाई शांतिपूर्वक विलय प्रोफेसर अशहर किदवई का तर्क है, भारत में शामिल न होने वाली रियासत हैदराबाद में ऑपरेशन पोलो के तहत सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी और जूनागढ़ में जनमत संग्रह कराया गया। इसके उलट भोपाल के नवाब बिना किसी कार्रवाई के रियासत को भारत में विलय किया। अपनी संपत्ति सरकार को सौंपी और अंतिम सांस तक भोपाल में ही रहे।
4. कई महापुरुषों से नवाब के अच्छे संबंध इतिहासकार खालिद गनी कहते हैं, सरोजनी नायडू 1925 में नवाब हमीदुल्लाह से मिलने आईं, राष्ट्रगान के रचयिता रविंद्रनाथ टैगोर ने भी मुलाकात की। भारत की 526 रियासतों में से हमीदुल्लाह खान एकमात्र नवाब थे, जिन्होंने 1929 में महात्मा गांधी को भोपाल में सरकारी मेहमान के रूप में आमंत्रित किया था।
