मादक पदार्थ की तस्करी करने के आरोपी के खिलाफ नारकोटिक्स थाने के पुलिस निरीक्षक भरत नोटिया ने केस दर्ज किया था। इसके बाद विवेचना की गई और जिला एवं सत्र न्यायालय में 2018 में चालान पेश किया गया। इसके बाद आरोपी को सजा दिलाने के लिए ट्रायल शुरू हुआ। छह स
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इस बीच कोर्ट से उन्हें बयान दर्ज कराने के लिए समन जारी किए जाते रहे। एक-दो नहीं, बल्कि पूरे 25 बार उन्हें समन देकर कोर्ट ने बयान देने बुलाया गया। लेकिन डीएसपी ने समन में नहीं आने का हमेशा एक ही कारण बताया कि वह ड्यूटी में व्यस्त हैं।
आखिर में कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए उन्हीं के खिलाफ केस दर्ज कर लिया। दो दिन पहले यह मामला सुनवाई के लिए कोर्ट में लगा था। अब उन्हें बयान दर्ज कराने तो आना ही है, कोर्ट का सम्मान नहीं करने पर केस भी झेलना होगा।
केवल उन्हें अकेले ही ड्यूटी नहीं करना होती है
कोर्ट ने अपनी प्रोसिडिंग में उल्लेख किया कि कानून व्यवस्था संभालना पुलिस की आवश्यक ड्यूटी होती है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि केवल उन्हें अकेले ही ड्यूटी करना होती है। पूरा पुलिस बल तैनात रहता है।
25 बार पेशी पर नहीं आने पर उनके द्वारा केवल एक ही कारण बताया जाता रहा- ड्यूटी लगी होने की वजह से वह नहीं आते। उनका यह कारण स्वीकार योग्य प्रतीत नहीं होता। उनके खिलाफ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 389 के तहत संक्षिप्त ट्रायल किए जाने का पर्याप्त आधार बनता है।
पहली पेशी में अकसर नहीं आते अफसर
अधिवक्ता सौरभ मिश्रा के मुताबिक, ट्रायल शुरू होने पर पुलिस व प्रशासनिक अफसर अकसर पहली तारीख पर आते ही नहीं हैं। जब तक तीन-चार बार समन, वारंट जारी नहीं हो जाते, तब तक उपस्थिति दर्ज नहीं कराते। इस वजह से ट्रायल प्रोग्राम लंबा खिंच जाता है। कई बार गैर जमानती वारंट जारी होने के बाद अफसर बयान दर्ज कराने आते। इसमें आधे बयान दर्ज कराने के बाद बाकी के बयान अगली तारीख पर दर्ज कराने का निवेदन कर लेते हैं। इस वजह से भी प्रकरणों का निराकरण लंबा खिंच जाता है।