मऊगंज के हनुमना जनपद के हर्रई प्रताप सिंह गांव में स्थित आदिवासी कन्या छात्रावास की स्थिति दयनीय है। 2011 में छात्राओं की शिक्षा और सुरक्षा के लिए बनाया गया यह छात्रावास अब खंडहर में तब्दील हो चुका है।
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छात्रावास की छतें टूट रही हैं। दीवारें दरक गई हैं। यहां 40 से अधिक छात्राएं अत्यंत सीमित संसाधनों के साथ रहने को मजबूर हैं। छात्रावास में न तो शिक्षक हैं, न उचित भोजन और न ही पर्याप्त बिस्तर।
छात्राओं ने बताया कि उन्हें सुबह का नाश्ता और रात का खाना नहीं मिलता। दोपहर में केवल दाल-चावल और रोटी दी जाती है। दीवार पर लगा मेनू कार्ड सिर्फ औपचारिकता है।
छह कर्मचारी होना चाहिए, तैनात केवल तीन
रिकॉर्ड के अनुसार छात्रावास में छह कर्मचारियों की तैनाती होनी चाहिए। लेकिन वास्तव में केवल तीन कर्मचारी – दो भृत्य और एक रसोइया ही मौजूद हैं। यहां कोई शिक्षक नहीं है और न ही कोई शैक्षणिक गतिविधि होती है।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि 40 बच्चियों के लिए मात्र दो बिस्तर हैं। वे भी कर्मचारियों के उपयोग के लिए हैं। छात्राएं या तो जमीन पर सोती हैं या अंधेरा होते ही उन्हें घर भेज दिया जाता है।
जब छात्रावास की अधीक्षिका से संपर्क किया गया, तो स्पष्ट जवाब नहीं मिला। बताया गया कि अधीक्षिका अक्सर अनुपस्थित रहती हैं। छात्रावास की जिम्मेदारी चपरासियों पर है।
पहले ही कर चुके शिकायत
चपरासी दद्दू लाल सिंह ने स्वीकार किया कि भवन जर्जर है। इसकी शिकायत पहले ही की जा चुकी है। उन्होंने बताया कि बारिश और कृषि सीजन में अधिकांश बच्चे धान की रोपाई में चले जाते हैं। वर्तमान में छात्राएं केवल दिन में आती हैं और दोपहर के भोजन के बाद घर लौट जाती हैं।
छात्रा ने बताया, “मैं चार साल से यहां पढ़ रही हूं। सुबह 10 बजे आती हूं, 4 बजे चली जाती हूं। भोजन डेढ़ बजे मिलता है। पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक नहीं आता।”
जर्जर छात्रावास की तस्वीरें





