मप्र में संचालित 108 एम्बुलेंस सेवाओं को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। इन एम्बुलेंस का श्रमिक ठेका पंजीयन नहीं हुआ है। यह जानकारी पंचायत एवं ग्रामीण विकास तथा श्रम मंत्री प्रहलाद पटेल ने सोमवार को विधानसभा में दी।
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मंत्री पटेल ने बताया कि इस सेवा का संचालन कर रही मां अंबे कंपनी ने पंजीयन के लिए जो दस्तावेज जमा किए थे, उनमें गंभीर खामियां थीं। इस कारण पंजीयन निरस्त कर दिया गया। बिना वैध श्रमिक पंजीयन के संचालन करने पर कंपनी के विरुद्ध भोपाल जिला न्यायालय में प्रकरण संख्या 8394/24 के तहत मामला दर्ज कराया गया है।
कांग्रेस विधायक जयवर्द्धन सिंह ने यह सवाल उठाया था। मंत्री द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, मां अंबे कंपनी को 3 वर्षों में इस सेवा के लिए 900 करोड़ का भुगतान किया गया है। इसका अर्थ यह है कि औसतन एक एम्बुलेंस पर 45 लाख रुपए खर्च किए गए , जबकि एक एम्बुलेंस की अनुमानित कीमत लगभग 15 लाख रुपए होती है।
बेरोजगार कैसे हो गए ‘आकांक्षी युवा’
मध्य प्रदेश सरकार ने बेरोजगार युवाओं को ‘आकांक्षी युवा’ नाम देने का निर्णय क्यों लिया? इस पर कांग्रेस विधायक प्रताप ग्रेवाल के सवाल के जवाब में मंत्री गौतम टेटवाल ने बताया कि एमपी पोर्टल पर आवेदन करने वाले युवाओं को बेरोजगार नहीं बल्कि पंजीकृत आवेदक माना गया है, इसलिए उन्हें आकांक्षी युवा कहा जा रहा है। हालांकि आकांक्षी आंकड़ों में बड़ा विरोधाभास सामने आया है। 2018 में इनकी संख्या 26.82 लाख थी, जो 2019 में बढ़कर 31.55 लाख हो गई।
फिर 2020 में घटकर 24.72 लाख रह गई। 2023 में आकांक्षी युवाओं की संख्या 33.13 लाख थी, लेकिन 2024 में यह घटकर 26.18 लाख हो गई। इस अवधि में केवल 52,000 युवाओं को ही रोजगार मिला। मंत्री ने बताया कि पुणे की यशस्वी कंपनी को 2021 में 25,000 युवाओं को रोजगार दिलाने का ठेका दिया गया था। कंपनी ने 11,680 युवाओं की सूची प्रस्तुत की, जिनमें से केवल 4,433 ही पात्र पाए गए। इसके बदले कंपनी को 4.17 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया।
8.40 लाख श्रमिक कम हुए
विस में खुलासा हुआ कि निर्माण श्रमिकों के पंजीयन पर 2017-18 में श्रम विभाग ने जन अभियान परिषद को 20.54 करोड़ रुपए दिए। परिषद ने 18.50 करोड़ खर्च कर केवल 64,220 श्रमिकों का पंजीयन किया और बचे 2.05 करोड़ अगस्त 2023 में लौटाए। कांग्रेस विधायक पंकज उपाध्याय के सवाल पर मंत्री प्रहलाद पटेल ने बताया कि 2011 में 17.09 लाख श्रमिक पंजीकृत थे, जो 2018 में 26.04 लाख हुए, लेकिन 2019 से जून 2025 के बीच यह संख्या घटकर 17.26 लाख रह गई, यानी 8.40 लाख की कमी हुई।