Rakshabandhan Brother Sister Story: मां की नहीं मिली ममता, बहन ने पाला…खुद चलाया टिफिन सेंटर, भाई को बनाया अफसर!

Rakshabandhan Brother Sister Story: मां की नहीं मिली ममता, बहन ने पाला…खुद चलाया टिफिन सेंटर, भाई को बनाया अफसर!


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Brother Sister Rakshabandhan Story: खंडवा की अंतिम पटेल ने अपनी मां की जगह लेकर चचेरे भाई को पाला, टिफिन सेंटर चलाकर पढ़ाया और आज वह एडीओ अफसर है. राखी के मौके पर यह कहानी हर दिल को छू लेगी.

खंडवा की यह कहानी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं है, बल्कि एक बहन के संघर्ष और उसके भाई के सपनों की सच्चाई है. खंडवा शहर के पदम कुंड मोहल्ले में रहने वाली अंतिम बाला पटेल ने अपनी मां की कमी पूरी करते हुए अपने चचेरे भाई प्रफुल पटेल को पढ़ाया-लिखाया. आज वही भाई कसरावद में एडीओ (एग्रीकल्चर डेवलपमेंट ऑफिसर) के पद पर कार्यरत है. यह कहानी दिखाती है कि कैसे अटूट प्यार और त्याग से कोई भी मुश्किल पार की जा सकती है.

कहानी की शुरुआत साल 2003 से होती है, जब प्रफुल पटेल का जन्म हुआ. जन्म के कुछ ही समय बाद उनकी मां का निधन हो गया. मां के जाने के बाद प्रफुल के जीवन में एक गहरा शून्य आ गया. पिता ने परिवार को संभाला, लेकिन मां की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता था. ऐसे मुश्किल समय में, अंतिम ने मां का किरदार निभाने का फैसला किया. प्रफुल जब छठी कक्षा में थे, तब उन्होंने बंधाना के नवोदय विद्यालय में प्रवेश लिया और अपनी पढ़ाई जारी रखी. इसके बाद उन्होंने होलकर कॉलेज से बीएससी की डिग्री हासिल की.

साल 2017 में, प्रफुल अपनी आगे की पढ़ाई के लिए अंतिम के पास खंडवा आ गए. अंतिम ने अपने भाई की पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए एक छोटा-सा टिफिन सेंटर शुरू किया. सुबह-शाम टिफिन बनाने और लोगों तक पहुँचाने के काम में उनका सारा समय चला जाता था. इस कठिन संघर्ष के दौरान भी, उन्होंने कभी हार नहीं मानी. प्रफुल की पढ़ाई का खर्च चलाने के साथ-साथ, अंतिम ने हमेशा उसे मां जैसा प्यार और समर्थन दिया.

अंतिम बताती हैं कि प्रफुल ने अपनी सफलता खुद की कड़ी मेहनत से हासिल की है. वह कहती हैं, “मेरा समर्थन तो हमेशा उसके साथ था, लेकिन वह अपनी सेल्फ स्टडी के कारण ही एडीओ बन पाया है.” प्रफुल हर शुक्रवार, शनिवार और रविवार को खंडवा आता है और अंतिम के साथ समय बिताता है. इस तरह, वह आज भी अपनी बहन के साथ गहरा रिश्ता साझा करता है. अंतिम का कहना है, “मैंने कभी उसे अपनी मां की कमी महसूस नहीं होने दी, और उसने भी हमेशा मेरे साथ बेटे जैसा व्यवहार किया.”

राखी का त्योहार उनके लिए एक खास अवसर होता है. हर साल प्रफुल राखी के लिए खंडवा आता है. यह त्योहार सिर्फ एक धागे का नहीं, बल्कि उनके संघर्ष और अटूट प्रेम का प्रतीक है. अंतिम और प्रफुल की कहानी हमें सिखाती है कि परिवार सिर्फ खून के रिश्तों से नहीं, बल्कि प्यार और समर्पण से बनता है. यह कहानी उन सभी भाई-बहनों के लिए एक प्रेरणा है, जो एक-दूसरे के सपनों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. प्रफुल की सफलता में, अंतिम की मेहनत और त्याग की गूंज आज भी सुनाई देती है.

अंतिम के अंकल (प्रफुल के पिता) मूल रूप से खरगोन जिले के पुनासला गांव के रहने वाले हैं. हालांकि, उनके अंकल अरुद गांव में रहते हैं, जहां उनकी एक किराना की दुकान है. उसी दुकान से उन्होंने अपने चार बच्चों को पढ़ाया है. अंतिम और प्रफुल का यह सफर दर्शाता है कि परिवार में चाहे कितने भी सदस्य हों, वे एक-दूसरे का सहारा बनकर बड़े सपने पूरे कर सकते हैं.

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