हम बात कर रहे हैं — शीशम यानी इंडियन रोज़वुड की. अगर आज का किसान पारंपरिक फसलों जैसे गेहूं, चना और सोयाबीन के साथ-साथ इस बहुउपयोगी पेड़ की खेती करना शुरू कर दे, तो वह आने वाले वर्षों में लाखों की कमाई कर सकता है — वो भी बिना ज्यादा मेहनत के.
शीशम एक कठोर और टिकाऊ लकड़ी का पेड़ है, जिसकी मांग फर्नीचर उद्योग, भवन निर्माण, दरवाजे-खिड़कियों और लकड़ी के सजावटी सामानों में बहुत अधिक है. इसकी लकड़ी पानी और दीमक से भी सुरक्षित रहती है, और यही वजह है कि बाजार में इसकी कीमत कई फसलों से कहीं ज्यादा मिलती है.
एक बार लगाइए, ज़िंदगी भर कमाइए
शीशम का पेड़ एक बार लगाने पर दस से बारह साल में पूरी तरह तैयार हो जाता है. लेकिन मज़े की बात ये है कि इसके तने और शाखाओं को बीच में भी काटकर लकड़ी के रूप में बेचा जा सकता है. इससे हर 4 से 5 साल में अच्छा रिटर्न मिल सकता है.एक हेक्टेयर ज़मीन में करीब चार सौ से पाँच सौ पेड़ आराम से लगाए जा सकते हैं. जब ये पेड़ पूरी तरह विकसित हो जाते हैं, तब एक पेड़ से तीन से पांच क्यूबिक फीट लकड़ी प्राप्त होती है. वर्तमान बाजार भाव के अनुसार, यह लाखों में कमाई का ज़रिया बन सकता है.
शीशम के पेड़ को ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती. इसे ज़्यादा पानी की भी आवश्यकता नहीं होती, और यह कम उपजाऊ जमीन पर भी आसानी से उग सकता है. कीटनाशकों का उपयोग भी बहुत कम करना पड़ता है. यानी खेती पर खर्च भी कम और मुनाफा ज़्यादा.
पर्यावरण के लिए भी वरदान
शीशम न केवल कमाई का साधन है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी बेहद लाभकारी है. यह हवा को साफ करता है, जमीन की गुणवत्ता को सुधारता है और भूमि कटाव रोकने में मदद करता है. अगर हर किसान अपनी ज़मीन के किनारे या खाली जगह में इस पेड़ को लगाए, तो न सिर्फ अपनी आर्थिक स्थिति सुधार सकता है बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी हरियाली की सौगात दे सकता है.
एक्सपर्ट की सलाह
पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि आज के बदलते मौसम और जलवायु संकट के दौर में किसानों को सिर्फ अनाज की खेती तक सीमित नहीं रहना चाहिए. ऐसी पेड़ आधारित कृषि मॉडल को अपनाना चाहिए जो कम समय में ज्यादा रिटर्न दे, और लंबी अवधि में टिकाऊ कमाई का जरिया बने. शीशम एक ऐसा ही विकल्प है, जो पारंपरिक फसलों के साथ लगाकर मिश्रित खेती (intercropping) में भी किया जा सकता है.शीशम का पेड़ किसानों के लिए सिर्फ एक पौधा नहीं, बल्कि स्थायी आमदनी का स्त्रोत बन सकता है. यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है और किसानों की आर्थिक मजबूती का रास्ता भी. अब वक्त आ गया है कि किसान पारंपरिक फसलों के साथ ऐसे विकल्पों को अपनाएं जो कम मेहनत में ज़्यादा मुनाफा दें. तो अगली बार जब आप खेती की योजना बनाएं, तो एक कोना इस ”हरित एटीएम” के लिए भी जरूर रखें.