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ये कहना है नवीन सैनी का जो 17 घंटे से सीहोर बाईपास के जाम में फंसे रहे। दरअसल 5 अगस्त को कुबेरेश्वर धाम में हुई भगदड़ के बाद दो महिलाओं की मौत हो गई। प्रशासन ने आनन-फानन में ट्रैफिक डायवर्ट कर दिया। इसके बाद 6 अगस्त बुधवार को जब कुबेरेश्वर धाम से कांवड़ यात्रा निकलनी थी तब इंदौर-भोपाल हाईवे पर 25 किलोमीटर लंबा और सीहोर बाईपास पर भारी जाम लग गया। करीब 36 घंटे जाम का सिलसिला चला।
इसी बीच कांवड़ यात्रा के आयोजन में शामिल होने आए तीन अन्य लोगों की बुधवार को मौत हो गई। दूसरी ओर कांवड़ यात्रा जारी थी, जिसमें कुछ अन्य लोग भी भीड़ के चलते घायल हुए। आयोजकों ने यात्रा के दौरान हेलिकॉप्टर से पुष्पवर्षा का इंतजाम किया गया था, लेकिन मरने वालों या घायलों के लिए आयोजकों की ओर से कोई इंतजाम नजर नहीं आए।
कांवड़ यात्रा के दौरान पंडित प्रदीप मिश्रा श्रद्धालुओं का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। पीछे एक सेवादार हाथ में छाता लिए चल रहा था ताकि पंडित मिश्रा को धूप से बचाया जा सके।
भास्कर ने किया था आगाह
भास्कर ने एक दिन पहले ही अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में कुबेरेश्वर धाम की अव्यवस्थाओं को लेकर आगाह किया था। कलेक्टर बालागुरु के और एसपी दीपक कुमार शुक्ला से इंतजामों को लेकर बात करने की कोशिश भी की थी लेकिन जिम्मेदार अफसरों ने चुप्पी साध ली।
हमने अपनी रिपोर्ट में धाम पहुंचे श्रद्धालुओं की समस्याएं और खासतौर पर महिला श्रद्धालुओं की शिकायत के बारे में बताया था। ये भी बताया था कि किस तरह भीड़ को नियंत्रित करने के इंतजाम नदारद थे।

भास्कर ने इस बदइंतजामी की तस्वीरें एक दिन पहले ही दिखाई थीं।
अब देखिए बुधवार को क्या हालात थे…
समय सुबह 11 बजे। सीहोर के बाईपास चौराहे से 11 किमी दूर कुबेरेश्वर धाम तक जाने वाला रास्ता बंद दिखा। पुलिस ने बैरिकेडिंग कर रखी थी। पुलिस के 4-5 जवान खड़े दिखे। ट्रैफिक पुलिस के एक जवान ने बताया कि ये रास्ता 5 अगस्त को दोपहर 2 बजे से ही 4 पहिया वाहनों के लिए बंद रखा गया है।
मैं पिछले 12 घंटे से यहां ड्यूटी कर रहा हूं। आप धाम तक तो नहीं पहुंच पाएंगे। शहर के अंदर से जाएंगे तो 5 किमी कम से कम पैदल चलना पड़ेगा। कल दिन में तो वहां से 4 पहिया वाहन अंदर धाम तक जा रहे थे, लेकिन कल रात 10 बजे के बाद से वहां भी वाहनों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया। पैदल ही जाना पड़ेगा।

इंदौर-भोपाल हाईवे और सीहोर बाईपास पर इस तरह जाम नजर आया।
इसके बाद हमने जैसे-तैसे शहर के अंदर एंट्री की। रास्ता कांवड़ियों से भरा हुआ था। हमारी गाड़ी धीरे-धीरे सोवन नदी पहुंची। कांवड़िए इसी नदी से पानी भरकर कुबेरेश्वर धाम की तरफ बढ़ रहे थे। पुल पार करते ही गाड़ी जाम में फंस गई। यहां से धाम की दूरी 11 किमी थी। इसके बाद हम गाड़ी से नीचे उतरे। रास्ते भर हमें पुलिस का कोई भी जवान नहीं दिखा जो कांवड़ियों को सही रास्ता बता सके या ट्रैफिक को हटाने की कोशिश कर रहा हो। जबकि धाम से बाहर की पूरी व्यवस्था प्रशासन को ही संभालनी थी।
हालांकि यहां धाम का भी कोई वॉलंटियर नहीं दिखा जो जाम में फंसी गाड़ियों को व्यवस्थित करा सके। कांवड़ियों को साइड से चलने को कह सके। यहां तक कि रास्ते भर कहीं भी यात्रियों के लिए कोई मेडिकल सुविधा दिखाई नहीं दी। कोई कांवड़िया या श्रद्धालु गंभीर बीमार हो जाए तो उसे संभालने वाला कोई मौजूद नहीं था।
महिलाएं बोलीं-खुले में शौच जाने को मजबूर
रास्ते में ही 50 साल की एक महिला पुष्पा गोडल से हमारी बात हुई। उन्होंने कहा, हम नागपुर से कांवड़ यात्रा में शामिल होने आए हैं। यहां कोई व्यवस्था नहीं है।

पुष्पा ने आगे कहा, लोग एक-दूसरे के ऊपर चढ़े जा रहे हैं, धकेल रहे हैं। किसी की सांस बंद हो रही है तो कोई दब रहा है। ऐसा कोई नहीं है जो बता पाए कि बाहर से आए लोगों को कहां जाना है? कैसे जाना है? क्या करना है? हमारे साथ बच्चे भी हैं। हम परेशान हो चुके हैं। अब यहां कभी नहीं आएंगे।
इसके बाद हम आगे बढ़े तो कई कांवड़िए बाईपास वाले रूट से वापस लौट रहे थे, लेकिन उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि ये रास्ता जाता कहां है। वो बार-बार लोगों से पूछते हुए दिख रहे थे कि स्टेशन या बस स्टैंड कहां है? उन्हें गाइड करने वाला वहां कोई भी नहीं था। वापसी वाले रूट पर थोड़ा आगे बढ़े तो देखा कुछ बाइक और ऑटो वाले आवाज लगा रहे थे- रेलवे स्टेशन, क्रिसेंट चौराहा।
बाइक और ऑटो के किराए से भी लोग नाराज
जबलपुर से आए विशाल कांवड़ यात्रा पूरी कर वापस लौट रहे थे। विशाल ने कहा, मैं पैदल ही बाईपास तक जा रहा हूं, क्योंकि यहां बाइक और ऑटो वालों ने लूट मचा रखी है। यहां बाईपास से चार पहिया वाहन आ नहीं पा रहे हैं। सिर्फ बाइक और कुछ ऑटो आ पा रही हैं। वो वापसी से सवारी ले जा रही हैं। ये लोग भोपाल तक जाने के लिए एक सवारी से रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड तक के 4-4 सौ रुपए तक मांग रहे हैं। 8 सौ से 1 हजार रुपए तक की डिमांड कर रहे हैं। इन्हें रोकने वाला यहां कोई नहीं है।
बाइक से सवारियां ले जा रहे अजय लोधी ने बताया कि यहां से डेढ़ किमी दूर क्रिसेंट चौराहे तक का दो सवारियों का 100 रुपए लेता हूं। स्टेशन और बस स्टैंड तक का जिस आदमी से जितनी बात होती है उतना ले लेता हूं। मैं दोपहर 3 बजे से यहां बाइक चला रहा हूं। 40-50 और लोग यहां बाइक चला रहे हैं। सब अपने मन मुताबिक रेट ले रहे हैं।
इसके बाद हम भोपाल-इंदौर हाईवे से सीहोर बाईपास पर पहुंचे। जहां 5 अगस्त की रात से ही कई किलोमीटर लंबा जाम लगा हुआ है। यहां से चार तरफ रास्ते जाते हैं। भोपाल, इंदौर, इछावर और सीहोर। यहां करीब 20 से 28 ट्रैफिक और पुलिस के जवान दिखे।

जहां ट्रैफिक और पुलिस के जवान खड़े थे वहां धीमी गति से ही सही, लेकिन वाहन आगे बढ़ते दिखे।
हर चीज ज्यादा दाम में मिलने की शिकायत
झांसी के नरेश राय अपने परिवार के साथ कांवड़ यात्रा में शामिल होने आए थे, लेकिन ट्रैफिक जाम में फंसने के कारण वो कांवड़ यात्रा में शामिल हो नहीं हो पाए। वो बताते हैं कि मेरी गाड़ी बाईपास से अब भी 3 किमी दूर खड़ी है। हम पिछले 6 घंटे से फंसे हैं। खाना तो दूर पीने का पानी तक नहीं मिला है। बच्चे और महिलाएं बिस्किट और चाय के सहारे काम चला रहे हैं। उसमें भी यहां लूट मची हुई है। हर चीज दोगुने या तीन गुने दाम पर मिल रही है। रास्ते भर ट्रैफिक को मैनेज करने वाला कोई नहीं दिखा। इसके चलते ये पूरी अव्यवस्था फैली हुई है। प्रशासन और धाम को पता था कि इतने लोग आने वाले हैं तो उन्होंने पहले से इसको तैयारी क्यों नहीं की।
खरगोन से आए वीरेंद्र कुमरावत ने कहा, हम सुबह तीन बजे से जाम में फंसे हैं। शाम 5 बजे यहां पहुंच पाए। किसी तरह धाम पहुंचे। बहुत भीड़ होने के चलते मेरा परिवार मुझसे बिछड़ गया है। यहां मोबाइल नेटवर्क भी नहीं मिल रहा है। मेरी उनसे बात नहीं हो पा रही है। एक बार कॉल कनेक्ट हुआ था। उन्हें अपनी लोकेशन बताई है। अब उनका इंतजार कर रहा हूं।

ट्रैफिक ज्यादा होने के कारण देर रात तक वाहन धीमी गति से ही चल पा रहे थे।
यहां हमने यात्रियों के अलावा कुछ पुलिसकर्मियों से भी बात की।
पूरी अव्यवस्था के पीछे 5 सबसे बड़े कारण निकले-
पहला कारण: भगदड़ के बाद अचानक ट्रैफिक पर काम शुरू हुआ
प्रशासन ने कांवड़ यात्रा के लिए एक दिन पहले यानी 5 अगस्त की रात से ट्रैफिक डायवर्शन का ऐलान किया था। 5 अगस्त की सुबह ही भगदड़ हुई और प्रशासन ने तुरंत एक्शन लेते हुए 5 अगस्त की दोपहर 2 बजे से ही ट्रैफिक डायवर्शन कर दिया। जबकि कुबेरेश्वर धाम में भारी तादाद में कांवड़ियों का आना दो दिन पहले ही शुरू हो गया था।

जब ट्रैफिक पर काम शुरू हुआ तो उसका असर भी दिखा।
दूसरा कारण: ट्रैफिक मैनेज करने वाले जवानों की कमी
पूरे ट्रैफिक को मैनेज करने में जवानों की कमी दिखी। 5 अगस्त को जब ट्रैफिक डाइवर्ट किया गया था तब वहां जवानों की संख्या 4 से 5 थी। वहीं कांवड़ यात्रा वाले दिन डायवर्शन वाली जगह पर 25 से 30 जवान ही मौजूद रहे। साथ ही पूरी यात्रा के दौरान कोई प्रशासनिक अधिकारी या कर्मचारी नहीं दिखा।
कोटवारों, पटवारियों, पंचायत सचिवों, शिक्षकों की ड्यूटी स्कूलों और यात्रा से दूर अन्य जगहों पर कांवड़ियों के रुकने की व्यवस्था के लिए लगाई गई। यात्रा वाले रास्ते पर इनकी ड्यूटी नहीं लगाई गई। जबकि मोटे अनुमान के मुताबिक करीब 3 लाख लोगों की आवाजाही सड़क पर थी।
तीसरा कारण: कांवड़ियों को गाइड करने वाले गायब थे
यात्रा के दौरान कांवड़िए इधर-उधर भटक रहे थे। उन्हें गाइड करने वाला कोई नहीं था जो उन्हें बता सके कि कहां से जाना है। साइड से चलना है या बीच रोड से। उन्होंने कोई रोकने वाला भी नहीं था।

यात्रा में शामिल होने कई राज्यों से लोग आए थे। इनमें कई पहली या दूसरी बार ही आए थे। कांवड़िए और अन्य श्रद्धालुओं को कोई गाइड करने वाला नहीं था।
चौथा कारण: शहर के अंदर आश्रम और प्रशासन का कोई नहीं था
शहर के अंदर लोगों की भीड़ को मैनेज करने के लिए प्रशासन या धाम का कोई भी वॉलंटियर मौजूद नहीं था। सभी श्रद्धालु और शहर के लोग बीच सड़कों पर चल रहे थे, इसलिए वाहनों को जाम में फंसना पड़ा। आश्रम के आसपास क्विक रिएक्शन फोर्स के कुछ जवान तो दिखे, लेकिन इतनी बड़ी भीड़ को संभालने के लिए आश्रम का कोई सेवादार नहीं दिखा। सड़क किनारे भी कई गाड़ियां पार्क दिखीं, जिससे पता चलता है कि पार्किंग की भी कोई उचित व्यवस्था नहीं की गई थी।
पांचवां कारण: पुरानी गलती से भी कोई सीख नहीं
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि कुबेरेश्वर धाम की वजह से इंदौर-भोपाल हाईवे पर कई घंटों का जाम लगा हो या अव्यवस्थाओं के चलते मौतें हुई हों। ऐसा पहले भी हो चुका है। 16 से 22 फरवरी 2023 रुद्राक्ष महोत्सव में इसी हाईवे पर 20 किमी लंबा जाम लगा था जिसमें 25 हजार वाहन फंसे थे। एक महिला की मौत भी हो गई थी। इससे प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया।

भीड़ को लेकर ठीक-ठीक अनुमान न तो धाम प्रबंधन को था और न ही जिला प्रशासन को। 2023 के हादसे से सबक लिया जाता तो ये भीड़ व्यवस्थित दिखती।
जिम्मेदारों का रवैया अब भी गैर जिम्मेदार
शाम 7 बजे हम हॉस्पिटल पहुंचे। जिम्मेदारों से बात करने की कोशिश की, लेकिन हमें कोई सटीक जवाब नहीं मिला। पोस्टमॉर्टम हाउस की तरफ गए जहां ताला लगा हुआ था। वहीं हॉस्पिटल में काम करने वाले सुरेश ने हमें बताया कि आज दोपहर 2.40 बजे कुबेरेश्वर धाम से 2 डेड बॉडी आई थीं। अभी शाम को 6 बजे तीसरी डेड बॉडी आई।
जिला प्रशासन ने इस पूरे आयोजन को लेकर कितनी तैयारियां की थीं? उनकी क्या प्लानिंग थी? कितने जवान तैनात थे? और किन कमियों को वजह से ये अव्यवस्था फैली?
ये जानने के लिए हमने सीहोर कलेक्टर बालागुरु के और एसपी दीपक शुक्ला से लगातार दूसरे दिन भी बात करने की कोशिश की। कलेक्ट्रेट और एसपी ऑफिस में उनसे मुलाकात नहीं हुई तो हमने उनसे कॉल पर संपर्क करने की कोशिश की। एसपी को कई कॉल किए, लेकिन फोन रिसीव नहीं हुआ। कलेक्टर ने भी कई कॉल करने पर कॉल रिसीव किया। इतना कहा कि मुझे बार-बार कॉल मर करिए, मैं नेटवर्क में नहीं हूं। हालांकि उनकी आवाज साफ नहीं आ रही थी, इससे स्पष्ट था कि कॉल में नेटवर्क की प्रॉब्लम संभव है। इसके बाद न उनका रिटर्न कॉल आया और न एसपी का।

बुधवार को कुबेरेश्वर धाम आए गुजरात के चतुर सिंह, हरियाणा के ईश्वर सिंह और रायपुर के दिलीप सिंह की मौत हो गई। वहीं मंगलवार को भगदड़ में जिन दो महिलाओं की मौत हुई उनकी पहचान गुजरात की जसवंती बेन और यूपी की संगीता के रूप में हुई है।