धोनी और वैभव सूर्यवंशी से पहले बिहार का ये क्रिकेटर भी था स्टार, 90 के दशक में ऑस्ट्रेलिया में मचाया था धमाल

धोनी और वैभव सूर्यवंशी से पहले बिहार का ये क्रिकेटर भी था स्टार, 90 के दशक में ऑस्ट्रेलिया में मचाया था धमाल


पटना: बिहार… वो राज्य जिसे कभी क्रिकेट के नक्शे पर ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया. लेकिन वक्त बदला है और अब इसी मिट्टी से क्रिकेट के सितारे उगने लगे हैं. कभी महेंद्र सिंह धोनी ने उम्मीदों को पंख दिए, फिर ईशान किशन और आकाशदीप जैसे खिलाड़ी मैदान पर लहराने लगे. और अब वैभव सूर्यवंशी जैसे युवा नाम चमकने लगे हैं. लेकिन अगर हम थोड़ा पीछे जाएं तो देखेंगे कि 90 के दशक में बिहार का एक खिलाड़ी ऐसा भी था, जिसने ऑस्ट्रेलिया जैसे क्रिकेट के गढ़ में जाकर अपनी गेंदबाज़ी से दहशत फैला दी थी. नाम है सुब्रतो बैनर्जी. पटना में जन्मे इस तेज़ गेंदबाज़ की कहानी आज के युवाओं को प्रेरणा दे सकती है.

सुब्रतो बैनर्जी भारतीय टीम में तब शामिल हुए जब देश को एक तेज़ गेंदबाज़ की तलाश थी. उनकी असली प्रतिभा की पहचान MRF पेस फाउडेशन ने की. ये वो दौर था जब यहां से इक्के-दुक्के तेज गेंदबाज़ निकलते थे. 1991-92 में बैनर्जी को ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टीम में शामिल किया गया, जहां की तेज़ और उछाल भरी पिचें भारतीय गेंदबाज़ों के लिए हमेशा से चुनौती रही हैं.

पहले टेस्ट में मचाया तहलका
लेकिन पटना के इस लड़के ने कुछ अलग ही कर दिखाया. सिडनी टेस्ट में उन्हें चौथे सीमर के तौर पर मौका मिला. भारत ने उस मैच में बिना किसी स्पेशल स्पिनर के उतरने का जोखिम उठाया, और बैनर्जी को मौका मिला खुद को साबित करने का. उन्होंने पहले ही इनिंग्स में मार्क वॉ, मार्क टेलर और ज्योफ मार्श जैसे दिग्गज बल्लेबाज़ों को आउट कर ऑस्ट्रेलिया खेमे में हड़कंप मचा दिया. ये प्रदर्शन उस दौर के लिए बड़ा था – एक नया चेहरा, वो भी बिहार से, और ऑस्ट्रेलिया की धरती पर दहाड़ता हुआ.

मगर क्यों छोटी रह गई अंतरराष्ट्रीय पारी?
हालांकि सुब्रतो बैनर्जी की अंतरराष्ट्रीय यात्रा लंबी नहीं रही. उन्हें बेंसन एंड हेजेस वर्ल्ड सीरीज़ में मौका मिला, फिर साउथ अफ्रीका टूर में भी टीम का हिस्सा बने. लेकिन टेस्ट खेलने का दूसरा मौका उन्हें नहीं मिला. एक वजह ये मानी गई कि वो लगातार लंबी गेंदबाज़ी नहीं कर पाते थे, और उनकी गेंदें अक्सर शॉर्ट और वाइड जाती थीं.

टीम इंडिया के साथ सुब्रतो बैनर्जी
रणजी में जलवा
पर इसका मतलब ये नहीं कि उनका टैलेंट कम था. उन्होंने रणजी ट्रॉफी में लगातार शानदार प्रदर्शन किया. 1989-90 में त्रिपुरा के खिलाफ 7 विकेट सिर्फ 18 रन पर, और पूरे मैच में 12 विकेट लेकर उन्होंने साबित कर दिया कि वो फर्स्ट क्लास क्रिकेट के उस्ताद थे.

क्यों याद रखना चाहिए सुब्रतो को?
वो ऐसे वक्त में उभरे जब न तो सोशल मीडिया था, न आईपीएल जैसा कोई मंच. उन्होंने सिर्फ अपने हुनर के दम पर टीम इंडिया का दरवाज़ा खटखटाया. उन्होंने उस दौर में ऑस्ट्रेलिया में विकेट लिए, जब वहां किसी भी भारतीय गेंदबाज़ का टिकना आसान नहीं था.

पटना से सिडनी
आज जब हम वैभव सूर्यवंशी जैसे बिहार के नए सितारों की बात करते हैं, तो हमें सुब्रतो बैनर्जी को याद करना चाहिए – वो पहला बिहारी गेंदबाज़ जिसने इंटरनेशनल लेवल पर दुनिया को बताया कि बिहार भी क्रिकेट का दम रखता है. पटना की गलियों से सिडनी के मैदान तक, सुब्रतो बैनर्जी की कहानी हमें सिखाती है – अगर जज़्बा हो, तो कोई ज़मीन परायी नहीं होती, और कोई सपना अधूरा नहीं.



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