हम सभी अपने बच्चों के लिए खिलौने खरीदते समय यही सोचते हैं कि वो अच्छे हों, रंग-बिरंगे हों, बच्चों को पसंद आएं और लंबे समय तक टिकें। लेकिन क्या हम यह सोचते हैं कि यह खिलौने पर्यावरण को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं?
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AIIMS भोपाल के नर्सिंग महाविद्यालय में एमएससी पीडियाट्रिक नर्सिंग की स्टूडेंट प्रगति कुमारी के एक नए अध्ययन ने इसी सवाल का जवाब ढूंढा और नतीजे हैरान करने वाले हैं।
कीमत और रंग-रूप पहले, पर्यावरण बाद में रिसर्च के अनुसार, माता-पिता खिलौने खरीदते समय सबसे पहले कीमत (66.9%) और टिकाऊपन (56.6%) को देखते हैं। इसके बाद रंग-रूप और डिजाइन (48.2%), बच्चे की उम्र के हिसाब से उपयुक्तता (45.4%) और सुरक्षा (43.4%) जैसे पहलू आते हैं।
इसके अलावा, खिलौना कितना सुंदर दिखता है (37.8%), बच्चे की क्षमता और कौशल (36.7%) और उसकी पसंद-नापसंद (34.7%) भी खरीदारी में अहम भूमिका निभाते हैं। कुछ माता-पिता यह भी देखते हैं कि खिलौना बच्चे की शारीरिक गतिविधियों (34.3%) या सामाजिक मेलजोल (32.7%) में मदद करता है या नहीं।
पर्यावरण को भूल जाते हैं माता-पिता सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि केवल 64.1% माता-पिता ही खिलौने के पर्यावरणीय प्रभाव को ध्यान में रखते हैं। यानी, एक-तिहाई से ज्यादा लोग इस पहलू को नजरअंदाज कर देते हैं। अध्ययन में यह भी सामने आया कि बच्चे का जेंडर, खिलौने की पॉपुलैरिटी या आकार जैसे पहलू खरीदारी में कम मायने रखते हैं।
251 माता-पिता पर हुआ अध्ययन यह रिसर्च भोपाल के बरखेड़ा पठानी क्षेत्र में की गई, जिसमें 251 माता-पिता को शामिल किया गया। अध्ययन ने यह भी दिखाया कि खिलौना खरीदने का निर्णय सिर्फ पसंद पर नहीं, बल्कि माता-पिता की उम्र, बच्चों की संख्या, परिवार की आर्थिक स्थिति और घर में किसका अंतिम फैसला चलता है, इन बातों पर भी निर्भर करता है।
क्यों जरूरी है पर्यावरण-अनुकूल सोच विशेषज्ञों का कहना है कि अगर खिलौने पर्यावरण के अनुकूल हों जैसे लकड़ी, कपड़े या रीसाइकलिंग मटीरियल से बने हों तो वे न केवल बच्चों के लिए सुरक्षित होते हैं, बल्कि धरती को भी नुकसान नहीं पहुंचाते। हेल्थ एक्सपर्ट, शिक्षक और सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं कि इस तरह के अध्ययन से न केवल माता-पिता जागरूक होंगे, बल्कि खिलौना निर्माता कंपनियां भी अपने प्रोडक्ट में बदलाव लाने को प्रेरित होंगी।