भाई डायलिसिस पर पहुंचा तो बहन ने बचाई जान: 64 साल की बहन बोली-पति से पूछा किडनी दे दूं, वह बोले जरूरत हो मैं भी दे दूंगा – rajgarh (MP) News

भाई डायलिसिस पर पहुंचा तो बहन ने बचाई जान:  64 साल की बहन बोली-पति से पूछा किडनी दे दूं, वह बोले जरूरत हो मैं भी दे दूंगा – rajgarh (MP) News


रक्षाबंधन पर राजगढ़ से एक ऐसी कहानी सामने आई है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को नई ऊंचाइयों पर ले जाती है। आमतौर पर बहनें भाइयों से रक्षा का वचन लेती हैं, वहीं राजगढ़ में रहने वाली 64 वर्षीय शकुंतला शर्मा ने अपने छोटे भाई की जान बचाने के लिए अपनी एक

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मई 2024 में, जब उनके 58 वर्षीय भाई गिरीश शर्मा की दोनों किडनियां फेल हो गईं, तब इस रिटायर्ड शिक्षिका ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी किडनी दान करने का फैसला किया। यह कहानी सिर्फ एक भाई-बहन की नहीं, बल्कि एक ऐसे संयुक्त परिवार की भी है, जहां आज भी प्रेम, त्याग और एकता की मिसाल कायम है।

गंगाबाई शर्मा के इस परिवार ने दिखाया है कि रक्षाबंधन सिर्फ एक धागे का त्योहार नहीं, बल्कि जीवन की रक्षा का वह पवित्र बंधन है, जहां बहन ने अपने शरीर का एक हिस्सा देकर भाई को नया जीवन दिया।

गंगाबाई शर्मा का संयुक्त परिवार, जहां आज भी है अपनापन

राजगढ़ शहर के वार्ड 08 राणा प्रताप मार्ग पर रहने वाली 88 वर्षीय गंगाबाई शर्मा का परिवार आज भी एक साथ है। पति डॉ. पीएन शर्मा का निधन 1994 में हो गया था, लेकिन उनके छह बच्चे-शकुंतला शर्मा (64), शिला शर्मा (62), विजय शर्मा (60), गिरीश शर्मा (58), उत्तम शर्मा (56) और प्रभा शर्मा (54) आज भी आपस में जुड़कर रहते हैं। परिवार में तीनों बेटे और उनका परिवार मां गंगाबाई के साथ रहते हैं। घर में एक ही टीवी है, खाना एक साथ बनता है। परिवार का हर सदस्य मिलजुलकर जीवन बिताता है।

बीमारी ने तोड़ी खुशियाँ, डायलिसिस तक पहुंची बात साल 2021 में परिवार की खुशियों पर अचानक ग्रहण लग गया। गिरीश शर्मा (58), जो पेशे से वकील हैं, लंबे समय से शुगर के मरीज थे। अचानक उनके पैरों में सूजन आई और तबीयत बिगड़ने लगी। जब स्थानीय इलाज से आराम नहीं मिला तो परिवार उन्हें इंदौर के एक निजी अस्पताल ले गया। डॉक्टरों ने बताया कि उनके लंग्स में पानी भर गया है। पानी तो निकाल दिया गया, लेकिन बाद की जांच में उनका क्रिएटिनिन बढ़ा हुआ मिला। आगे जांच में पता चला कि गिरीश की दोनों किडनी खराब हो चुकी हैं। इलाज चलता रहा लेकिन दवाओं से कोई लाभ नहीं हुआ। साल 2022 में उनका पहला डायलिसिस हुआ। इसके बाद उन्हें नियमित डायलिसिस पर रहना पड़ा। दो बार फिस्टुला ऑपरेशन हुए, फिर भी उन्हें राहत नहीं मिली। डॉक्टरों ने साफ कहा कि अब किडनी ट्रांसप्लांट ही उनकी जान बचा सकता है।

मई 2024 में किडनी ट्रांसप्लांट के दौरान गिरीश और बहन शकुंतला।

मई 2024 में किडनी ट्रांसप्लांट के दौरान गिरीश और बहन शकुंतला।

पूरा परिवार आगे आया, बहन ने दी किडनी

जब किडनी ट्रांसप्लांट की बात आई तो गिरीश की पत्नी शैलजा शर्मा और उनके पांचों भाई-बहन ने तुरंत किडनी देने की इच्छा जताई। परिजनों ने रतलाम मेडिकल कॉलेज में जांच करवाई। सबसे पहले उनकी सबसे बड़ी बहन शकुंतला शर्मा (64), जो उज्जैन में रिटायर शिक्षिका हैं, जांच के लिए आगे आईं। किस्मत ने साथ दिया और शकुंतला की किडनी पूरी तरह मैच हो गई।

24 मई 2024 का दिन इस परिवार के लिए हमेशा यादगार रहेगा। एक निजी अस्पताल में सफल सर्जरी कर शकुंतला ने अपने छोटे भाई गिरीश को अपनी किडनी दान कर दी। इस ऑपरेशन से गिरीश की जान बच गई। दो महीने बाद ही वह पूरी तरह स्वस्थ होकर राजगढ़ लौट आए और अब दोबारा वकालत करने लगे हैं।

गिरीश शर्मा कहते हैं – “बहन राखी पर रक्षा का वचन लेती है, लेकिन मेरी बहन ने उससे बढ़कर मेरे जीवन की रक्षा की। मैं आज अपनी बहन और परिवार की वजह से ज़िंदा हूँ और इस रक्षाबंधन को अपनी नई जिंदगी के साथ मना रहा हूँ।”

किडनी पीड़ित गिरीश अपने पांच भाई-बहनों के साथ।

किडनी पीड़ित गिरीश अपने पांच भाई-बहनों के साथ।

शकुंतला बोलीं-भाई की जान बचाना सबसे बड़ा उपहार है गंगाबाई के परिवार की सबसे खास बात यह है कि आज भी संयुक्त परिवार की परंपरा को निभाया जा रहा है। बड़े भाई-बहन से लेकर छोटे तक, सभी एक-दूसरे का सहारा बने हुए हैं। शादीशुदा बेटियाँ भी समय-समय पर मायके आकर परिवार का हिस्सा बनती हैं। इस घटना के बाद परिवार के सभी सदस्य कहते हैं कि यह सिर्फ एक किडनी डोनेशन नहीं, बल्कि एकता, त्याग और भाई-बहन के अमर रिश्ते की मिसाल है। शकुंतला कहती हैं – “भाई की जान बचाना मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार है। भाई स्वस्थ है तो मुझे सबसे ज्यादा खुशी मिलती है।”

राखी पर भाई गिरीश को राखी बांधती बहन शकुंतला।

राखी पर भाई गिरीश को राखी बांधती बहन शकुंतला।

22 साल पहले बुआ ने दी थी बहू को किडनी गिरीश शर्मा के छोटे भाई उत्तम शर्मा ने बताया कि हमारे परिवार में ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब परिवार की बेटी ने अपना अंग दान कर अपने परिजन की जान बचाई हो। 22 साल पहले बुआ स्व. गीता देवी ने भी अपनी किडनी बहू को देकर जान बचाई थी। इसके बादअब मेरी बड़ी बहन शकुंतला शर्मा ने अपनी एक किडनी देकर हमारे बड़े भाई की जान बचाई है

उज्जैन की रिटायर्ड शिक्षिका शकुंतला शर्मा ने वह कर दिखाया, जिसकी मिसाल बहुत कम मिलती है। उनके छोटे भाई गिरीश की दोनों किडनी खराब हो गई थीं। घर में चिंता का माहौल था। बड़े भाई विजय ने तुरंत कहा – “मैं अपनी किडनी दे देता हूं”, लेकिन उनके पैर का ऑपरेशन हो चुका था और तबीयत भी पूरी तरह ठीक नहीं थी। इसलिए उन्हें मना कर दिया गया।

पिछले साल एकसाथ तीनों बहनों ने तीनों भाईयों की आरती उतारी।

पिछले साल एकसाथ तीनों बहनों ने तीनों भाईयों की आरती उतारी।

शकुंतला ने पति से पूछा, कहा-बिल्कुल दे दो

शकुंतला बताती हैं – “मैं सबसे बड़ी हूं और स्वस्थ भी। मैंने सोचा, क्यों न मैं ही अपनी किडनी दूं। सबसे पहले मैंने अपने पति राजेंद्र प्रसाद शर्मा से पूछा – ‘क्या मैं छोटे भाई को किडनी दे दूं?’ उन्होंने बिना एक पल सोचे कहा – ‘हां, बिल्कुल दे दो।’ यहां तक कि उन्होंने यह भी कहा कि अगर जरूरत पड़ी, तो वे खुद भी किडनी देने को तैयार हैं। लेकिन डॉक्टरों ने बताया कि बहन की किडनी जल्दी मैच हो जाती है, तो मैंने तय कर लिया कि किडनी मैं ही दूंगी।”

इसके बाद उनकी सभी मेडिकल जांच हुईं और किडनी ट्रांसप्लांट सफल रहा। शकुंतला शर्मा भावुक होकर कहती हैं – “मुझे तो इंजेक्शन से भी डर लगता था, लेकिन जब भाई की जिंदगी बचाने की बात आई, तो ईश्वर ने मेरा मन इतना मजबूत कर दिया कि मैं बिना डरे ऑपरेशन के लिए तैयार हो गई। कुछ लोगों ने कहा था कि जिसे इंजेक्शन से डर लगता है, वह किडनी कैसे देगी? लेकिन मैंने ठान लिया था कि भाई को बचाना है। डॉक्टरों ने भी ऑपरेशन के दौरान मेरा बहुत ध्यान रखा।”



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