मऊगंज में लोगों ने कजलियां पर्व मनाया: एक-दूसरे को कजलियां भेंट कर दीं शुभकामनाएं, नदी में किया विसर्जन – Mauganj News

मऊगंज में लोगों ने कजलियां पर्व मनाया:  एक-दूसरे को कजलियां भेंट कर दीं शुभकामनाएं, नदी में किया विसर्जन – Mauganj News


मऊगंज में ग्रामीण अंचलों में कजलियां का त्योहार मनाया गया। शाम को लोग अपने घरों से निकलकर नईगढ़ी के हरफरी नदी स्थित बजरहा घाट सहित अन्य घाटों पर पहुंचे।

.

वहां परंपरागत तरीके से कजलियों का विसर्जन किया गया। इसके बाद लोग घर लौटकर एक-दूसरे को कजलियां भेंट करते हुए पर्व की शुभकामनाएं दीं।

घर-परिवार में सुख-समृद्धि का प्रतीक मानी जाती कजलियां

श्रावण मास के आगमन के साथ ही प्रकृति में हरियाली का विस्तार होता है। कजलियां इसी हरियाली और घर-परिवार में सुख-समृद्धि का प्रतीक मानी जाती हैं। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य आपसी मनमुटाव और भेदभाव को दूर करना है। साथ ही भाईचारे और मेलजोल को बढ़ावा देना है। लोग कामना करते हैं कि रिश्तों में मधुरता बनी रहे और सभी खुशहाल रहें।

नईगढ़ी के हरफरी नदी स्थित बजरहा घाट कजलियों का विसर्जन किया गया।

नागपंचमी के दूसरे दिन महिलाएं खेतों से मिट्टी लाकर बांस के बर्तन में गेहूं या जौ के बीज बोती हैं। रक्षाबंधन तक इन्हें पानी देकर सहेजा जाता है। इसमें उगने वाले छोटे-छोटे पौधों को ही ‘कजलियां’ कहा जाता है। त्योहार के दिन इन कजलियों का विसर्जन किया जाता है। इस दौरान एक-दूसरे के जीवन में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में कभी बड़े उत्साह और सामूहिकता के साथ मनाया जाने वाला यह त्योहार अब सीमित हो गया है। आधुनिकता और व्यस्त दिनचर्या के कारण यह कुछ घरों तक ही सिमट गया है। फिर भी गेहूं, जौ, बांस के बर्तन और खेत की मिट्टी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व आज भी बरकरार है।

कजलियां पर्व हरियाली और समृद्धि का संदेश देता है। यह रिश्तों में अपनापन और समाज में एकता की मिसाल भी कायम करता है।



Source link