Agriculture News: ‘सफेद सोना’ खतरे में! खंडवा में कपास पर कीटों का अटैक, जानिए बचाव के तरीके

Agriculture News: ‘सफेद सोना’ खतरे में! खंडवा में कपास पर कीटों का अटैक, जानिए बचाव के तरीके


खंडवा. निमाड़ सहित खंडवा ज़िले में इस समय किसान बड़े पैमाने पर कपास (जिसे सफेद सोना कहा जाता है) की खेती कर रहे हैं. हजारों एकड़ में लहलहाती कपास की फसल किसानों की मेहनत और सालभर की उम्मीदों का परिणाम है. लेकिन इस बार मौसम और कीटों ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है. कपास की फसल पर महुआ और तेला नाम की बीमारी का प्रकोप तेजी से फैल रहा है, जिससे न केवल कपास की गुणवत्ता पर असर पड़ रहा है, बल्कि उत्पादन में भी गिरावट की आशंका है.इस बारे में जय किसान कृषि क्लीनिक, खंडवा के कृषि विशेषज्ञ सुनील पटेल ने विस्तृत जानकारी दी और किसानों को समय रहते सावधान रहने की सलाह दी.

कैसे हो रहा है फसल पर हमला?
कृषि विशेषज्ञ पटेल के अनुसार, इस बार क्षेत्र में तापमान अधिक होने और मौसम में नमी की कमी के कारण कपास की फसल पर एफिड, जेसिड और थ्रिप्स जैसे कीटों का अधिक हमला देखा जा रहा है. इन्हें स्थानीय भाषा में तेलिया भी कहा जाता है.इन कीटों के हमले से कपास के पत्तों पर हल्की तेल जैसी परत जम जाती है.पत्ते चिपचिपे हो जाते हैं और उनका रंग पीला-तेला दिखाई देने लगता है.

लंबे समय तक उपचार न करने पर पत्तों की प्रकाश संश्लेषण की क्षमता कम हो जाती है, जिससे पौधे की वृद्धि और फूलों की संख्या पर असर पड़ता है. पटेल बताते हैं कि अगर समय पर इलाज न किया जाए तो कपास की फसल का उत्पादन 20 से 30 प्रतिशत तक घट सकता है, और तंतु की गुणवत्ता भी कमजोर हो सकती है.

बचाव और उपचार के उपाय
कृषि विशेषज्ञ सुनील पटेल ने किसानों को सलाह दी कि वे इन कीटों और बीमारियों से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं —
1. इमिडाक्लोप्रिड 75% डब्ल्यूजी — 10 ग्राम प्रति पंप की दर से छिड़काव करें.

2. क्लोरोपायरीफॉस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% — 30 मिलीलीटर प्रति पंप की दर से इमिडाक्लोप्रिड के साथ मिलाकर छिड़काव करें.

3. वैकल्पिक रूप से, डाईफेथ्यूरॉन 47.8% एससी को भी क्लोरोपायरीफॉस + साइपरमेथ्रिन के साथ 30 मिलीलीटर प्रति पंप मिलाकर स्प्रे किया जा सकता है.

4. स्प्रे करते समय सिलिकॉन बेस स्टिकर का प्रयोग करें, जिससे दवा पत्तियों पर अच्छे से चिपक सके और असर लंबे समय तक बना रहे.

सुनील पटेल का कहना है कि अगर किसान सही डोज और पर्याप्त मात्रा में पानी के साथ छिड़काव करेंगे, तो इन बीमारियों और कीटों पर लगभग 90 से 95 प्रतिशत तक नियंत्रण पाया जा सकता है.

समय पर उपचार का महत्व
कपास की फसल पर कीटों का हमला अचानक तेज हो सकता है, खासकर जब तापमान बढ़ा हो और बारिश कम हुई हो. ऐसे में किसान खेत की नियमित निगरानी करें और शुरुआती लक्षण दिखते ही उपचार शुरू करें.
देर करने से कीटों की संख्या तेजी से बढ़ जाती है, जिससे दवाओं का असर भी कम हो जाता है.
उपचार के बाद 7 से 10 दिन तक फसल पर निगरानी रखें और जरूरत पड़ने पर दोबारा स्प्रे करें.

किसानों के लिए सलाह
कृषि विशेषज्ञ सुनील पटेल ने किसानों को सलाह दी कि वे रासायनिक उपचार के साथ-साथ फसल प्रबंधन के प्राकृतिक तरीकों को भी अपनाएं.खेत की साफ-सफाई रखें और खरपतवार नियंत्रण करें.

फसल चक्र अपनाएं, ताकि कीटों का प्रकोप बार-बार न हो.संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें और अधिक नाइट्रोजन देने से बचें, क्योंकि इससे कीटों का प्रकोप बढ़ सकता है. कपास की खेती किसानों की आय का महत्वपूर्ण स्रोत है, लेकिन महुआ और तेला जैसी बीमारियां इस ‘सफेद सोने’ की चमक फीकी कर सकती हैं. सही समय पर पहचान और उपचार करके ही किसान अपने उत्पादन और गुणवत्ता को बचा सकते हैं. कृषि विशेषज्ञों के बताए उपायों को अपनाकर किसान इस संकट से बड़ी हद तक निपट सकते हैं.



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