Bundelkhand: बुंदेलखंड में क्यों मनाते हैं कजली महोत्सव? आल्हा-ऊदल से जुड़ी है ये परंपरा, जानें इतिहास

Bundelkhand: बुंदेलखंड में क्यों मनाते हैं कजली महोत्सव? आल्हा-ऊदल से जुड़ी है ये परंपरा, जानें इतिहास


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Bundelkhand Kajli Mahotsav: बुंदेलखंड में रक्षाबंधन पर्व के साथ ही कजली महोत्सव भी शुरू हो जाता है. ये महोत्सव पूरे 2 सप्ताह तक चलता है. इस महोत्सव को देखने के लिए यूपी और एमपी से लाखों की संख्या में लोग आते ह…और पढ़ें

Mahoba Kajli Mahotsav: कजली महोत्सव मध्य प्रदेश की प्राचीन परंपरा का प्रारूप है. खासकर छतरपुर और छतरपुर से लगे महोबा में रक्षाबंधन के अगले दिन इसकी शुरुआत होती है. साथ ही इस दिन वीर योद्धा आल्हा-ऊदल की वीरता को याद करते हुए विशाल कजली महोत्सव विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है. इसमें हाथी, ऊंट और नाचते हुए घोड़ों के साथ झांकियां निकाली जाती हैं. इसे देखने के लिए लाखों की भीड़ जुटती है. बता दें, 10 अगस्त से 15 दिवसीय कजली मेला महोत्सव शुरू हो चुका है. इमें आल्हा-ऊदल की वीरता को याद किया जाएगा.

क्या है कजली का महत्व?
दुर्गा नवरात्र में जो जवारे रखे जाते हैं, वैसे ही सावन में भी जवारे रखे जाते हैं. इन्हें ही कजली या भुजरिया कहा जाता है. इन्हें कजली देवी भी कहा जाता है. विवाहित महिलाएं और कन्याएं राखी पर्व के बाद इसे पानी में विसर्जित करती हैं, जो विवाहितएं होती हैं, वे कजली देवी से पति और बच्चों की लंबी उम्र मांगती हैं. साथ ही अविवाहित अच्छा वर मांगती हैं.

कजली महोत्सव का इतिहास
सन् 1182 में राजा परमाल की पुत्री चंद्रावलि 1400 सखियाें के साथ भुजरियों (कजली) के विसर्जन के लिए महोबा में स्थित कीरत सागर जा रही थीं. रास्ते में पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चामुंडा राय ने आक्रमण कर दिया था.

वीर आल्हा-उदल ने लड़ा युद्ध
पृथ्वीराज चौहान की योजना चंद्रावलि का अपहरण कर उसका विवाह अपने बेटे सूरज सिंह से कराने की थी. इसके चलते 1182 ईसवी में चंदेलों और पृथ्वीराज चौहान की सेना के बीच यह युद्ध सावन की पूर्णिमा के दिन कीरत सागर के किनारे हुआ. चंदेलों की तरफ से सेनापति आल्हा-ऊदल ने कमान संभाली थी. इन्हीं वीर योद्धाओं से दिल्ली का राजा पृथ्वीराज चौहान की सेना हारी थी. महोबा के इस ऐतिहासिक शोर्य और पराक्रम को याद करने के लिए सावन माह में कजली मेला सैकड़ों वर्षों से चला आ रहा है.

कजली महोत्सव में आते हैं लाखों
महोबा में लगने वाले इस मेले में उत्तर प्रदेश के जनपद से ही नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश से भी लोग आते हैं. इस मेले की खासियत शोभा यात्रा होती है. जिसके देखकर आल्हा-ऊदल और उनके गुरु ताला सैय्यद को याद किया जाता है.

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क्यों मनाते हैं कजली महोत्सव? आल्हा-ऊदल से जुड़ी है ये परंपरा, जानें इतिहास



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