कराहल क्षेत्र में रविवार को भुजरिया पर्व पर आदिवासी सहरिया समुदाय में उत्साह देखा गया। सुबह से ही गांव-गांव में महिलाएं, युवतियां और बच्चे पारंपरिक वेशभूषा में तैयार हुए। गोरस के बड़ा सहराना में सैकड़ों महिलाएं सिर पर सजे हुए भुजरिया वल्ला लेकर पहुंच
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महिलाओं ने धूमधाम से विसर्जन यात्रा निकाली। DJ की धुन और ढोल-नगाड़ों की थाप पर लोग झूमते-गाते आगे बढ़ते रहे। यात्रा में शामिल महिलाओं के सिर पर मिट्टी के कलश में रोपित हरी-भरी पौध थी। फूलों से सजा भुजरिया वल्ला विसर्जन स्थल तक ले जाकर जल में प्रवाहित किया गया।
रास्ते भर पारंपरिक गीत गाए गए और नृत्य होते रहे। युवाओं ने पारंपरिक नृत्य और आधुनिक DJ धुनों का मेल कर माहौल को रंगीन बना दिया। भुजरिया पर्व आदिवासी समाज का एक प्रमुख पारंपरिक त्योहार है। यह प्रकृति से गहरे जुड़ा हुआ है।
स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार, यह पर्व वर्षा, भरपूर फसल और सुख-समृद्धि की कामना के लिए मनाया जाता है। सहरिया समाज प्रकृति पूजक है। इस अवसर पर जल, वन और मिट्टी के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है।

विसर्जन यात्रा के बाद सामूहिक भोज का आयोजन किया गया। इसमें गांव के लोग एक साथ बैठकर भोजन ग्रहण करते हैं। इससे आपसी भाईचारा और एकता मजबूत होती है। पूरे क्षेत्र में दिनभर उत्सव का माहौल बना रहा। महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों ने मिलकर इस परंपरा को निभाते हुए अपनी सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रखा।