1857 की दास्तान, जब अंग्रेजों ने 150 क्रांतिकारियों को दी फांसी, मंडलेश्वर में आज भी गूंजती वीरों की चित्कार

1857 की दास्तान, जब अंग्रेजों ने 150 क्रांतिकारियों को दी फांसी, मंडलेश्वर में आज भी गूंजती वीरों की चित्कार


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Independence Special: 1857 की क्रांति के दौरान जब देशभर में आजादी की चिंगारी उठी, तब मंडलेश्वर किले पर भी हमला हुआ. इतिहासकारों के अनुसार, अंग्रेजों ने क्रांतिकारी भीमा नायक के करीब 150 साथियों को पकड़ लिया और …और पढ़ें

Khargone News. हर साल जब 15 अगस्त को देश आजादी का जश्न मनाता है, तब मध्यप्रदेश के खरगोन जिले की वो घटना याद आती है जब अंग्रेजों ने आजादी के दीवानों को बड़ी बेरहमी से न सिर्फ फांसी पर चढ़ाया बल्कि उनके शवों को मगरमच्छों के सामने फेंक दिया. मंडलेश्वर की एक ऊंची पहाड़ी पर आज भी इस घटना की गवाही देती है. इस जगह को अब फांसी बैड़ी के नाम से ही जाना जाता है. यहां एक स्मारक बना है, जो हर साल हमें याद दिलाता है कि देश की आजादी कितनी बड़ी कुर्बानियों के बाद मिली है.

इतिहासकारों के मुताबिक, अंग्रेजों के शासनकाल में मंडलेश्वर को निमाड़ रेंज का सबसे बड़ा सेंटर माना जाता था. यहां अंग्रेज अफसर रहते थे और उनकी घुड़सवार और पैदल सेना भी थी. 1857 की क्रांति के दौरान जब देशभर में आजादी की चिंगारी उठी, तब मंडलेश्वर किले पर भी हमला हुआ. अंग्रेजों ने निमाड़ के क्रांतिकारी भीमा नायक के 150 से ज्यादा साथियों को पकड़ लिया और उन्हें सबक सिखाने के लिए फांसी पर लटका दिया.

जंगल में बने नीम के पेड़ों पर दी फांसी
मंडलेश्वर से कसरावद रोड की तरफ एक पहाड़ी है, जहां अब वो पेड़ तो नहीं रहे लेकिन आज भी यह जगह फांसी बैड़ी नाम से जानी जाती है. इतिहास के जानकार दुर्गेश राजदीप बताते हैं कि उस वक्त वहां बहुत सारे नीम के पेड़ थे. अंग्रेजों ने सभी क्रांतिकारियों को एक-एक कर इन पेड़ों पर फांसी दे दी. उनके शवों को घसीटते हुए नर्मदा किनारे ले जाकर मगरमच्छों वाले घाट मगरडाब में फेंक दिया गया. ताकि परिजनों को उनके शव तक नहीं मिले.

भीमा नायक की मां को भी बनाया निशाना
अंग्रेज भीमा नायक को तो नहीं पकड़ पाए, लेकिन उन्होंने उनकी मां सुरमिबाई को पकड़ लिया. उन्हें मंडलेश्वर की जेल में लाकर इतना टॉर्चर किया गया कि उनकी मौत हो गई. इसके बाद भीमा नायक के साथियों ने गुस्से में 3 जुलाई 1857 को किले हमला कर दिया और कब्जा भी कर लिया. लेकिन फिर अंग्रेजों ने बड़ी फौज भेजकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. फिर उसी पहाड़ी पर एक-एक कर सभी को फांसी पर लटका दिया गया.

अब भी मौजूद है वीरों की याद में बना स्मारक
जहां ये फांसियां दी गई थीं, वहीं आज भी एक पुराना स्मारक बना है. जिसे क्रांतिकारियों ने ही बनवाया था. देखरेख के अभाव में यह जगह अब झाड़ियों और पेड़ों से ढकी हुई है, ना कोई व्यवस्थित रास्ता है, लेकिन जब आप वहां पहुंचते हैं तो हर चीज अपने आप बोलती नजर आती है. फांसी बैड़ी आज भी बताती है कि देश की आजादी कैसे-कैसे बलिदानों के बाद मिली है. कुछ लोग 15 अगस्त पर यहां श्रद्धांजलि देने जरूर पहुंचते हैं, लेकिन इस जगह को अब भी वो पहचान नहीं मिल पाई जो मिलनी चाहिए.

Dallu Slathia

Dallu Slathia is a seasoned digital journalist with over 6 years of experience, currently leading editorial efforts across Madhya Pradesh and Chhattisgarh. She specializes in crafting compelling stories across …और पढ़ें

Dallu Slathia is a seasoned digital journalist with over 6 years of experience, currently leading editorial efforts across Madhya Pradesh and Chhattisgarh. She specializes in crafting compelling stories across … और पढ़ें

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1857 की दास्तान, मंडलेश्वर में यहां 150 क्रांतिकारियों को दी गई फांसी



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