Special Tiranga Barfi: 100 साल पहले शुरू हुआ था तिरंगा बर्फी का सफर, महात्मा गांधी भी चख चुके स्वाद!

Special Tiranga Barfi: 100 साल पहले शुरू हुआ था तिरंगा बर्फी का सफर, महात्मा गांधी भी चख चुके स्वाद!


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Independence Day Special Tiranga Barfi: खंडवा की ‘तिरंगा बर्फी’ सौ साल से स्वाद और देशभक्ति का प्रतीक है. केसर, मावा और पिस्ता से बनी यह मिठाई 15 अगस्त और 26 जनवरी पर खास होती है.

खंडवा: मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में एक ऐसी मिठाई बनती है जो न सिर्फ स्वाद में लाजवाब है, बल्कि आज़ादी के रंगों को भी अपने में समेटे हुए है. इसे कहते हैं “तिरंगा बर्फी” एक ऐसी मिठाई जिसमें केसरिया, सफेद और हरे तीनों रंग बड़े ही खूबसूरत अंदाज़ में नजर आते हैं. इसकी शुरुआत आज से करीब 100 साल पहले, वर्ष 1920 में हुई थी और आज भी इसकी मिठास पूरे प्रदेश में फैल रही है.

तिरंगा बर्फी की शुरुआत
1920 में इस खास मिठाई को बनाने की परंपरा की नींव रखी थी खंडवा के अग्रवाल परिवार के मुखिया रामसहाय जी अग्रवाल ने. मूल रूप से राजस्थान से आए इस परिवार ने खंडवा को अपना घर बनाया और मिठाई बनाने का कारोबार शुरू किया. यहीं पर पहली बार तिरंगा बर्फी तैयार हुई एक ऐसी मिठाई जो देखने में तिरंगे की तरह और खाने में बेहद स्वादिष्ट थी. उस समय आजादी का आंदोलन पूरे देश में तेज़ था. इस माहौल में तिरंगा बर्फी न सिर्फ मिठाई थी, बल्कि लोगों के लिए एक तरह का देशभक्ति का प्रतीक भी बन गई.

गांधी जी का आशीर्वाद
साल 1942 में जब महात्मा गांधी खंडवा आए थे, तो वे भी इस मिठाई की दुकान पर पहुंचे. उस दौर में खंडवा आजादी की गूंज से भरा हुआ था, और तिरंगा बर्फी लोगों के दिलों में देश के प्रति उत्साह भर देती थी.

पीढ़ी दर पीढ़ी चली परंपरा
रामसहाय जी के बाद उनके पुत्र रामगोपाल जी ने कारोबार को आगे बढ़ाया. साल 1986 में परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य दीपू अग्रवाल ने इसे और नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. अब यह काम चौथी पीढ़ी पुलकित और निहुल अग्रवाल के हाथों में है. परिवार की खासियत है कि उन्होंने मिठाई के स्वाद और शुद्धता पर कभी समझौता नहीं किया.

खंडवा से पूरे प्रदेश तक
तिरंगा बर्फी की लोकप्रियता सिर्फ खंडवा तक सीमित नहीं रही. अब यह मिठाई निमाड़ के साथ-साथ आसपास के जिलों और प्रदेश के कई हिस्सों तक पहुंचती है. त्योहार, शादी-ब्याह या राष्ट्रीय पर्व तिरंगा बर्फी की मांग हमेशा बनी रहती है.

स्वाद और शुद्धता का राज
इस बर्फी की खासियत यह है कि इसमें इस्तेमाल होने वाला हर सामग्री पूरी तरह शुद्ध होती है. केसरिया रंग के लिए केसर और गाजर का मिश्रण, सफेद हिस्से के लिए मावा और चीनी, और हरे रंग के लिए पिस्ता और पान के स्वाद का हल्का टच यह सब इसे बाकी मिठाइयों से अलग बनाता है. सिर्फ मिठाई ही नहीं, दीपू मिठाई वाला नाम आज सेव, मिक्चर, आलू-केला वेफर, चाकोली और अन्य नमकीनों के लिए भी मशहूर है. दुकान की साफ-सफाई, पैकिंग और ग्राहकों से विनम्र व्यवहार ने इसे एक भरोसेमंद ब्रांड बना दिया है.

आज भी बरकरार है देशभक्ति का जज्बा
आजादी के पहले बनी यह मिठाई आज भी राष्ट्रीय पर्वों पर लोगों के लिए गर्व और खुशी का कारण बनती है. 15 अगस्त और 26 जनवरी को तो इसकी बिक्री कई गुना बढ़ जाती है. दुकानदारों के मुताबिक, इन खास दिनों पर तिरंगा बर्फी खरीदना अब खंडवा की परंपरा बन चुका है.

खंडवा आने वालों के लिए खास जगह
खंडवा रेलवे स्टेशन से महज 2 मिनट की दूरी पर स्थित इस प्रतिष्ठान तक पहुंचना आसान है. धार्मिक पर्यटन के लिए प्रसिद्ध खंडवा आने वाले लोग जब ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग के दर्शन करने आते हैं, तो यहां की तिरंगा बर्फी का स्वाद लेना नहीं भूलते.

100 साल की मिठास का सफर
सदीभर का यह सफर सिर्फ मिठाई बनाने का नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और भावनात्मक यात्रा भी है. तिरंगा बर्फी खंडवा की पहचान बन चुकी है एक ऐसी पहचान जो स्वाद, शुद्धता और देशभक्ति की खुशबू के साथ आगे बढ़ रही है. इस 15 अगस्त, अगर आप खंडवा में हैं, तो तिरंगा बर्फी का स्वाद जरूर चखें. यह सिर्फ मिठाई नहीं, बल्कि 100 साल पुरानी उस कहानी का हिस्सा है, जिसमें मिठास के साथ देश के प्रति प्रेम भी घुला हुआ है.

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