मप्र हाई कोर्ट में वर्ष 2014 में जजों के कुल स्वीकृत 40 से बढ़ाकर 53 किए गए। लगभग सभी से 11 अगस्त 2025 तक मप्र हाई कोर्ट को कुल 92 जज मिले। इसके बाद भी जजों के सारे पद कभी भी भर नहीं सके।
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वर्तमान में कुल 44 जज पदस्थ हैं। ये संख्या सर्वाधिक है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि इतनी संख्या में जज मिलने के बाद भी सभी पद क्यों नहीं भर सके ? जब इसकी पड़ताल की और हाईकोर्ट की वेबसाइट से जानकारी निकाली तो पता चला कि कुल 92 जजों में से 51 जज ऐसे थे।
जो न्यायिक अधिकारी थे। चूंकि, इनकी शुरुआती नियुक्ति ही सिविल जज के पद पर होती है। डिस्ट्रिक्ट जज बनने के भी कुछ साल बाद इनका हाई कोर्ट जज बनने का नंबर आता है।
जज की रिटायरमेंट आयु 62 वर्ष है। ऐसे में न्यायिक अधिकारी जब हाई कोर्ट में जज बनते हैं तो उनका कार्यकाल अधिकतम 6 से 7 साल तक का ही रह पाता है। हालांकि, एक जस्टिस इस मामले में अपवाद हैं। उनका कार्यकाल लगभग पौने नौ साल रहेगा।
न्यायिक अधिकारी के कोटे से जज बनने वालों की संख्या ज्यादा होने के कारण मप्र हाई कोर्ट को जज मिलते तो हैं, लेकिन कुछ वर्ष में ही रिटायरमेंट होने के कारण पद फिर से रिक्त हो जाते हैं। बता दें कि दिसंबर 2025 में एक अन्य हाई कोर्ट जज भी रिटायर होंगे।
भास्कर एक्सपर्ट – जस्टिस राकेश सक्सेना, (रिटा.) मप्र हाई कोर्ट
जज बनने की प्रक्रिया दिखने में सरल, वास्तविकता में थोड़ी जटिल
^न्यायिक अधिकारियों और वकीलों के हाई कोर्ट जज बनने की प्रक्रिया अलग है। न्यायिक अधिकारियों के मामले में उनके काम की गुणवत्ता, सीआर पर गौर किया जाता है और फिर वरिष्ठता (ग्रेडेशन लिस्ट) के आधार पर निर्णय लिया जाता है। रही बात वकीलों की, तो अक्सर ये देखने को मिलता है कि जब किसी वकील का नाम हाई कोर्ट जज के लिए जाता है, तो शिकायतों का दौर शुरू हो जाता है। सरकार का दखल भी रहता है। आसान शब्दों में कहें तो ये प्रक्रिया दिखने में सरल, लेकिन वास्तविकता में थोड़ी जटिल है। इसलिए नाम क्लियर होने में अक्सर देरी हो जाती है।
आंकड़ों से समझिए , मप्र हाई कोर्ट की स्थिति
2014 से अब तक 56 जज रिटायर हुए तो 16 का अन्य हाई कोर्ट में ट्रांसफर हुआ। जस्टिस वंदना कसरेकर का 2020 में कोविड के चलते निधन हुआ तो जस्टिस यूसी महेश्वरी ने 27 जून 2016 को इस्तीफा दिया। बाद में वह मप्र के उप-लोकायुक्त बने।
13 को रिटायर हुए जस्टिस पीएन सिंह
जस्टिस प्रदीप मित्तल ने सोमवार को हाई कोर्ट जज के रूप में शपथ ली। जिसके बाद जजों की संख्या 44 पहुंच गई लेकिन 13 अगस्त को जस्टिस पीएन सिंह रिटायर हुए। ऐसे में संख्या घटकर 43 हो गई। बता दें कि उक्त समस्त आंकड़े व जानकारी मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की वेबसाइट से ली गई है।
रिक्त पदों से क्या नुकसान
जजों के पद रिक्त रहने का सबसे बड़ा नुकसान लंबित केसों पर पड़ता है। आबादी बढ़ने के साथ ही केस फाइल होने का ग्राफ बढ़ रहा है। जबकि पूर्व से लंबित केसों की संख्या पहले से ही बहुत ज्यादा है। ऐसे में जब तक पूरे पद नहीं भरेंगे, लंबित केसों की संख्या में तेजी से कमी नहीं आ पाएगी।