दूध उत्पादन में प्रतिस्पर्धा और हकीकत
किसान भावेश पटेल बताते हैं कि आज के समय में दूध उत्पादन भी एक तरह का कंपटीशन बन चुका है. किसान दूध की मात्रा और कीमत बढ़ाने के चक्कर में कई बार गलत नस्ल की भैंस खरीद लेते हैं. यह समस्या खासकर उन किसानों के साथ होती है जिन्हें नस्ल की पहचान की ज्यादा जानकारी नहीं होती. कुछ व्यापारी इसका फायदा उठाते हैं और कम दूध देने वाली भैंस को ज्यादा दूध देने वाली बताकर बेच देते हैं. इसलिए किसान को सही जानकारी होना बेहद जरूरी है.
भैंस खरीदते समय किन बातों पर ध्यान दें
२. दांत और उम्र – भैंस की उम्र जानने के लिए उसके दांत देखे जाते हैं. जवान और पहली-दूसरी बार बच्चा देने वाली भैंस लंबे समय तक अच्छा दूध देती है.
४. व्यवहार और सक्रियता – सक्रिय और चौकस भैंस हमेशा स्वस्थ रहती है और ज्यादा दूध देती है. सुस्त और कमजोर दिखने वाली भैंस से परहेज करना चाहिए.
भारत में कई नस्लों की भैंस पाई जाती हैं, लेकिन उनमें से कुछ नस्लें दूध उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती हैं:
मुर्रा नस्ल – यह भैंस हरियाणा और पंजाब की प्रमुख नस्ल है, लेकिन अब पूरे देश में पाई जाती है. यह प्रतिदिन दस से अठारह लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है.
जाफराबादी नस्ल – गुजरात की यह नस्ल बड़े आकार और ज्यादा दूध के लिए जानी जाती है. इसकी औसत दूध देने की क्षमता प्रतिदिन आठ से बारह लीटर तक होती है.
मेहसाणा नस्ल – गुजरात की ही एक और नस्ल, जो सात से दस लीटर तक दूध देती है.
नागपुरी और पंढरपुरी नस्ल – महाराष्ट्र क्षेत्र की यह भैंसें भी किसानों के लिए लाभकारी मानी जाती हैं और प्रतिदिन छह से आठ लीटर तक दूध देती हैं.
ठगी से कैसे बचें?
किसानों को सलाह दी जाती है कि वे भैंस खरीदने से पहले किसी अनुभवी पशुपालक या पशु चिकित्सक से राय लें. बिना जांच-पड़ताल किए सिर्फ दिखावे पर भरोसा न करें. कई बार बाजार में व्यापारी भैंस को खरीदने से पहले ज्यादा दूध पिलाकर या दवा देकर उसकी थन को फुला देते हैं, जिससे वह ज्यादा दूध देने वाली लगती है. लेकिन असलियत कुछ और होती है.
पशुपालन किसानों की आय बढ़ाने का अहम साधन है, लेकिन सही जानकारी और सतर्कता के बिना यह घाटे का सौदा भी बन सकता है. ज्यादा दूध देने वाली भैंस खरीदने के लिए किसान को नस्ल की पहचान, शारीरिक बनावट और दूध उत्पादन की क्षमता को समझना जरूरी है. मुर्रा और जाफराबादी जैसी नस्लें जहां अधिक दूध देती हैं, वहीं सामान्य स्थानीय नस्लें कम दूध देती हैं. इसलिए किसान को चाहिए कि वे जागरूक बनें और सही निर्णय लें.