Success Story: मां ने जिस अस्पताल में दम तोड़ा…उसी मेडिकल कॉलेज में बेटा बना डीन, ICU रोज करता है भावुक

Success Story: मां ने जिस अस्पताल में दम तोड़ा…उसी मेडिकल कॉलेज में बेटा बना डीन, ICU रोज करता है भावुक


Jabalpur News: ये कहानी उस बेटे की है, जिसने एक बड़ा मुकाम हासिल किया, लेकिन इस ऊंचाई को देखने के लिए उनकी मां अब जीवित नहीं है. ये कहानी, जितनी प्रेरणादायक है, उतनी ही भावुक करने वाली भी. जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद बोस मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. नवनीत सक्सेना युवाओं के लिए मिसाल हैं. सबसे खास बात ये कि जिस मेडिकल कॉलेज में डॉ. नवनीत डीन हैं, कभी उसी कॉलेज के अस्पताल में उनकी मां की मौत हो गई थी.

उनकी मां को कैंसर था. वह मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती थी. उस समय डॉ. नवनीत सिर्फ नवनीत थे. अस्पताल में मां के साथ पलंग के बगल में फर्श पर सोया करते थे. जब नवनीत की मां आईसीयू में भर्ती थी, तब बेटे ने इस अस्पताल में रहकर मां की सेवा की. अब, उसी मेडिकल कॉलेज में डीन बन गए हैं. कहते हैं, आज भी जब आईसीयू के बगल से गुजरता हूं तो मां की याद आ जाती है.

16 साल की उम्र में पास कर लिया था एग्जाम
डॉ. नवनीत सक्सेना ने लोकल 18 को बताया, बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना था. हाई सेकेंडरी परीक्षा पास होने के बाद प्री-मेडिकल टेस्ट मतलब PMT की तैयारी शुरू की. इसके लिए बिना कोचिंग की मदद से परीक्षा को पास भी किया. लेकिन, उम्र कम होने के कारण मेडिकल कॉलेज में प्रवेश नहीं मिला. इस दौरान उन्होंने 250वीं रैंक हासिल की थी. इसके बाद दोबारा उन्होंने PMT दिया और टॉप-100 में रैंक पाई. तब एमबीबीएस में प्रवेश मिल गया.

माता-पिता का सपना था बेटे को डॉक्टर बनाना 
आगे बताया, 16 साल की उम्र में पहली बार पीएमटी की परीक्षा पास कर ली थी. पिताजी डॉक्टर थे और माता-पिता दोनों का ही सपना मुझे डॉक्टर बनाने का था. इसके चलते मेडिकल फील्ड में आए. लिहाजा, पढ़ाई के बाद नवनीत कुशल नेत्र रोग विशेषज्ञ बन गए. मेडिकल कॉलेज में अध्यापन कार्य कराने लगे. वहीं, अब डॉ. नवनीत सक्सेना मेडिकल कॉलेज के डीन पद हैं. डॉ नवनीत सक्सेना मूलत: इंदौर के रहने वाले हैं, जिनकी शिक्षा इंदौर में ही हुई थी. जहां उन्होंने इंदौर के शासकीय मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और नेत्र रोग में पोस्ट ग्रेजुएशन किया था.

आईसीयू से गुजरने के बाद आती है, मां की याद 
उन्होंने संदेश दिया, युवाओं को लक्ष्य के पीछे तब तक भागना चाहिए, जब तक लक्ष्य हासिल नहीं होता. अपने पैशन को ही प्रोफेशन बनाना चाहिए. माता-पिता की सेवा करने से सफलता जरूर हासिल होती है. उन्होंने बताया, मां को कैंसर था, बेहतर उपचार की भरपूर कोशिश की. लेकिन, मां का साथ छूट गया. आज उसी कॉलेज में जब भी आईसीयू के बगल से गुजरता हूं, तब भावुक हो जाता हूं. मेरे जीवन में सबसे बड़ी क्षति माता-पिता का साथ छूट जाना है, लेकिन अब डॉक्टर बनकर मरीजों की सेवा करना ही पहला धर्म और कर्तव्य हैं.



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