चाय बेचते पिता के साथ प्रशांत राजपूत।
कोलार के स्लम एरिया में रहने वाले छात्र प्रशांत राजपूत ने गरीबी और संघर्ष के बीच मेहनत से वह मुकाम हासिल किया है, जिसे शब्दों में बयां करना आसान नहीं। उनके दादाजी बैरसिया के पास एक छोटे से गांव में रहते थे। पिताजी लीला किशन राजपूत ने बचपन से ही तंगी
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प्रशांत की पढ़ाई के लिए पूरा परिवार कोलार के स्लम एरिया में आकर रहने लगा और पिताजी ने बंसल हॉस्पिटल के पास फुटपाथ पर चाय का ठेला शुरू कर दिया। मां रीना, जो 7वीं तक पढ़ी हैं, घर पर सिलाई करने लगीं।
प्रशांत के प्रेरणास्रोत भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम रहे हैं। बचपन से ही उनका सपना एक बड़ा वैज्ञानिक बनने का था। इसी जज्बे के साथ संघर्ष की शुरुआत हुई। सरकारी स्कूल में प्रारंभिक पढ़ाई के बाद पिताजी ने मेहनत कर उन्हें महर्षि दयानंद विद्यालय में इंग्लिश मीडियम में दाखिला दिलाया।
यहां से उन्होंने आठवीं कक्षा 90% से अधिक अंकों के साथ उत्तीर्ण की। इसके बाद एक्सीलेंस स्कूल की नवमी कक्षा में प्रवेश परीक्षा दी और सफल रहे। 2019 में दसवीं में 95.8% अंक लाकर स्कूल टॉप किया। वे चार साल तक कोलार से 10 नंबर स्टॉप तक साइकिल से स्कूल गए।
संघर्ष का अगला चरण 11वीं से शुरू हुआ, जब कोविड आ गया और पढ़ाई ऑनलाइन हो गई। घर में केवल मां का एक छोटा एंड्रॉयड मोबाइल था, जिससे प्रशांत और उनके दो भाई-बहन बारी-बारी से क्लास अटेंड करते थे। बड़ी बहन सुप्रिया बीए कर रही थीं, और छोटा भाई ऋतिक प्राइमरी कक्षा में था।
घर का खर्च चलता रहे, इसलिए पिताजी ने चाय की गुमटी बंद नहीं की। प्रशांत ने 12वीं में पढ़ते हुए हर सुबह 6 बजे दुकान पर पानी भरना शुरू किया, 8:30 तक पिताजी की मदद करते और फिर 9 बजे स्कूल जाते। दसवीं में महज दो अंक से मेरिट से चूक जाने को उन्होंने चुनौती माना और ठान लिया कि 12वीं में स्टेट मेरिट में आना ही है।
दोपहर 2:30 बजे स्कूल से लौटने के बाद सिर्फ आधा घंटा आराम मिलता था। फिर 3 से रात 9 बजे तक वे जेईई की ऑनलाइन कोचिंग अटेंड करते थे। मेहनत रंग लाई और 12वीं में स्टेट मेरिट में 8वीं रैंक हासिल की। इसके लिए उन्हें सरकार से स्कूटी और लैपटॉप मिला, जिसका पूरा उपयोग पढ़ाई में किया। प्रशांत ने जेईई एडवांस 2025 भी पास किया।
जनरल कैटेगरी में वे ईडब्ल्यूएस के अंतर्गत 2465वीं रैंक पर रहे। 17 जुलाई को उनका चयन इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी में बीटेक कोर्स के लिए हो गया।
प्रशांत की ये उपलब्धियां भी
11वीं में स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ में मप्र से नागालैंड गई टीम में मप्र का प्रतिनिधित्व किया। { स्कूल शिक्षा विभाग के साल भर के सबसे बड़े कार्यक्रम ‘अनुगंज’ में एंकरिंग की।
संघर्ष के बीच पिता के लिए ऐसा समर्पण
प्रशांत ने बताया कि सरकार से मिली स्कूटी को मैंने रेपिडो में अटैच करके लोगों को उनके गंतव्य तक छोड़ा। इससे तीन महीने में ₹12,000 जोड़े। इसी पैसे से पापा और मैं दोनों फ्लाइट से तिरुवनंतपुरम गए। पहली बार फ्लाइट में बैठने का मौका मिला।