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Brahma Kamal benefits: ब्रह्मकमल एक दुर्लभ और पवित्र पुष्प है, जिसे खिलते देखना सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, जो न सिर्फ सौभाग्य के और इशारा करता है ,बल्कि औषधीय उपयोग और वैज्ञानिक पहलू भी हैं.
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
जैव विविधता विशेषज्ञ चंदन सिंह ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि ब्रह्मकमल मुख्यतः उत्तराखंड या हिमालय जैसे छेत्रों में पाया जाता है. साथ ही ये सनातन धर्म के सबसे पवित्र पौधों में गिना जाता है. वहीं ग्रंथों में इसकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी के आंसुओं से बताई गई है. यह आसानी से नहीं खिलता और कई वर्षों तक पौधे में कोई फूल नहीं आते. स्थानीय मान्यताओं के अनुसार जब यह फूल खिलता है, तो इसे भगवान की असीम कृपा का संकेत माना जाता है.
पुराने समय में जब किसी के घर यह फूल खिलता था, तो लोग लॉटरी आजमाने निकल पड़ते थे. आज भी ग्रामीण इलाकों में यही मान्यता कायम है. माना जाता है कि भगवान शिव को यह पुष्प अर्पित करने से वे शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं. प्राचीन काल में लोग इसे अपनी तिजोरी में रखते थे, जिससे अन्न और धन की प्राप्ति अधिक होती थी.
औषधीय उपयोग और वैज्ञानिक पहलू
चंदन ने बताया कि उन्होंने 2011 में अपने घर में इसका पौधा लगाया था और वर्ष 2025 में जाकर पहली बार उनके घर यह पुष्प खिला है. आयुर्वेद में इस फूल का विशेष महत्व है. इसका उपयोग बुखार, खांसी-जुकाम, हड्डियों के दर्द, लकवा, यकृत की सूजन, घाव और आंतों के रोगों के उपचार में किया जाता रहा है. इसके अलावा यह मानसिक रोगों जैसे चिंता, अवसाद और अनिद्रा को दूर करने में भी सहायक माना जाता है.
दुर्लभता और खिलने की प्रक्रिया
ब्रह्मकमल के पौधे ख़ुद पत्तियों से भी निकलते हैं. वहीं इसके पत्तियों से ही फूल विकसित होता है. इसके बीज को गमले में लगाने के बाद फूल आने में 5-6 महीने का समय लगता है, जबकि कली को पूरी तरह खिलने में लगभग 2-3 सप्ताह लगते हैं. इसी कारण यह पुष्प प्रकृति के सबसे दुर्लभ और पवित्र चमत्कारों में गिना जाता है.
Anuj Singh serves as a Content Writer for News18MPCG (Digital), bringing over Two Years of expertise in digital journalism. His writing focuses on hyperlocal issues, Political, crime, Astrology. He has worked a…और पढ़ें
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