सिर्फ कुंडली नहीं, अब ‘मेडिकल कुंडली’ भी मिलाइए: एमपी में सिकल सेल के 31 हजार मरीज; रियलिटी शो-बीमारी से एक साथ लड़ रही अवनी – Betul News

सिर्फ कुंडली नहीं, अब ‘मेडिकल कुंडली’ भी मिलाइए:  एमपी में सिकल सेल के 31 हजार मरीज; रियलिटी शो-बीमारी से एक साथ लड़ रही अवनी – Betul News


टीवी रियल्टी शो इंडिया टेलेंट फाइट की टॉप 50 में जगह बनाने वाली दस साल की अवनी के पैर जब थिरकते है तो देखने वालों की सांसे थम जाती है। कथक से लेकर नृत्य की कई विधाओं में अपना लोहा मनवाने वाली इस मासूम ने टैलेंट की फाइट तो जीत ली पर अब उसे जीवन की एक

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यह फाइट उस दर्द से है। जब वह उठता है तो असहनीय पीड़ा से अंग-अंग टूटने लगते है। बुखार की हरारत भी उसे तोड़ देती है। यह संघर्ष उसकी एक अनुवांशिक बीमारी सिकल सेल एनीमिया से जुड़ा है, जिसके कारण उसे हर एक-दो माह रक्त की जरूरत होती है।

प्रदेश में उसके जैसे कई ऐसे मासूम है जो इसी दर्द से गुजर रहे है। अकेले बैतूल में ऐसे बच्चो का आंकड़ा 1300 है। पूरे मध्यप्रदेश में 21 जिले ऐसे है, जहां इस बीमारी ने पैर पसारे हुए है। जिसका सितंबर 31 तक सर्वे चल रहा है। इसके बाद साफ होगा कि सूबे में इस बीमारी से पीड़ित कितने मासूम और जवान इस बीमारी के शिकार हैं।

जानिए आखिर यह बीमारी है क्या, जो वर-वधु की कुंडली नहीं बल्कि ब्लड रिपोर्ट (मेडिकल रिपोर्ट) साझा करनी की हिमायत करती है। दैनिक भास्कर ने अवनी उसके परिजनों और मेडिकल एक्सपर्ट से बात कर इस बिमारी के बारे में जाना। पढ़िए यह रिपोर्ट…

दस साल की अवनी ने रियल्टी शो इंडिया टेलेंट फाइट की टॉप 50 में जगह बनाई है।

जनजातीय आबादी में 14 प्रतिशत लोग वाहक

मध्यप्रदेश में सिकल सेल एनीमिया एक गंभीर बीमारी के रूप में सामने आई है, विशेष रूप से अनुसूचित जनजाति बाहुल्य जिलों में यह रोग देखने को मिलता है। यह मुख्यतः अनुवांशिक होता है और इससे प्रभावित व्यक्ति की लाल रक्त कोशिकाएं आधे चांद (सिकल) के आकार की हो जाती हैं, जिससे शरीर में खून के संचार में रुकावट आती है।

राज्य के आदिवासी बहुल जिलों जैसे अलीराजपुर, झाबुआ, धार, मंडला, डिंडोरी, बालाघाट, बड़वानी, बैतूल, छिंदवाड़ा और शहडोल में यह रोग अधिक पाया जाता है। इन क्षेत्रों में जनजातीय आबादी में लगभग 10 से 14 प्रतिशत लोग सिकल सेल जीन के वाहक होते हैं। कुछ स्थानों पर यह प्रतिशत 20% तक भी पाया गया है।

प्रदेश के बैतूल जिले में करीब 1300 बच्चे इस बीमारी से पीड़ित है।

प्रदेश के बैतूल जिले में करीब 1300 बच्चे इस बीमारी से पीड़ित है।

केस 1: मां बोलीं- काश शादी से पहले टेस्ट करवाया होता

बैतूल की पीड़िता अवनि की मां बरखा पंडाग्रे ने बताया कि साल 2015 में उनकी शादी के बाद पहली बेटी अवनी हुई। जब वह 5-6 माह की हुई तो उसे बुखार रहने लगा। डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने उसे सिकल सेल की आशंका जताई जिस पर किए गए टेस्ट में वह पॉजिटिव आया। अब कई बार अवनी जब बीमार पड़ती है तो उसे खूब बॉडी पेन होता है। बुखार नहीं उतरता। फिर उसे ब्लड चढ़ाना पड़ता है, जिसके बाद वह नॉर्मल हो पाती है।

‘इंडियाज टैलेंट फाइट’ की टॉप 50 प्रतिभागियों में शामिल

बाल कलाकार अवनी पंडाग्रे ने अपनी कला और हुनर से पहचान बनाते हुए टीवी रियलिटी शो ‘इंडियाज टैलेंट फाइट’ में टॉप 50 में स्थान हासिल किया है। परिजनों ने बताया कि 27 अप्रैल 2025 को उत्तराखंड के रुड़की स्थित होटल सेंट्रम में आयोजित मेगा ऑडिशन में अवनी ने शानदार प्रदर्शन किया और निर्णायकों को प्रभावित करते हुए देशभर से चुनी गई शीर्ष 50 प्रतिभाओं में अपनी जगह पक्की की। अब अवनी सितंबर में होने वाले अगले राउंड में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगी लेकिन इस बीमारी के कारण उसे कई बार कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

10 साल की अवनी ने बताया-

कुंडली मिलाने से पहले ब्लड रिपोर्ट मिलाएं

बैतूल के पैथोलॉजिस्ट HL कसेरा ने वर्षों पहले यह बता दिया था कि अगर इस बीमारी से बचना है, तो समाज को बच्चो की कुंडली मिलाने से बेहतर उनके ब्लड की रिपोर्ट का मिलान करना चाहिए, जिससे यह बीमारी खत्म हो सके। उन्होंने इसका नाम मेडिकल कुंडली दिया था।

उनके पैथोलॉजिस्ट बेटे अभय कसेरा ने दैनिक भास्कर को बताया-

मेरे पिता ने 25 साल पहले इस पर शोध किया था। उस समय इसे ट्रेस करने के लिए उतने संसाधन भी नहीं थे। तब उन्होंने लोगों को यह सलाह देना शुरू कर दिया था कि वे कुंडली मिलाने से बेहतर अपनी मेडिकल कुंडली बनाए जिससे आनुवांशिक बीमारियों पर रोक लगाई जा सके। अब तो नई तकनीक की मशीनें ,HPLC की मशीनें आ गई है। लेकिन, उन्होंने उस दौर में पेपर जेल एट्रोफोरेसिस की मदद से इस बीमारी का प्रतिशत निकालने की शुरुआत की थी।

पैथोलॉजिस्ट अभय कसेरा ने बताया कि मेडिकल कुंडली मिलाने से आनुवांशिक बीमारियों पर रोक लगाई जा सकती है।

पैथोलॉजिस्ट अभय कसेरा ने बताया कि मेडिकल कुंडली मिलाने से आनुवांशिक बीमारियों पर रोक लगाई जा सकती है।

जानिए कैसे एक से दूसरे में पहुंचती है यह बीमारी

बैतूल जिले में इस बीमारी के रोकथाम के लिए सिकल सेल एनीमिया सर्वे अभियान चलाया जा रहा है। अभियान की जिला नोडल अधिकारी डॉ. अंकिता शीते ने बताया कि यह बीमारी पूरी तरह आनुवंशिक (Genetic) होती है और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में DNA और आनुवंशिक गुणधर्म के माध्यम से पहुंचती है।

डॉ. अंकिता ने बताया-

उन्होंने बताया कि यदि दोनों में से केवल एक व्यक्ति वाहक या पीड़ित है, तो अगली पीढ़ी में यह बीमारी आने की संभावना काफी कम होती है, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह बीमारी HBS जीन में होने वाले बदलाव के कारण होती है, जो शरीर में हीमोग्लोबिन के निर्माण को प्रभावित करता है।

यदि बच्चे को यह जीन दोनों माता-पिता से मिलता है, तो वह रोग से प्रभावित हो सकता है। अगर यह जीन केवल एक माता-पिता से मिलता है, तो बच्चा वाहक (Sickle Cell Trait) बनता है, जिसमें रोग के लक्षण नहीं होते, लेकिन वह इस जीन को अगली पीढ़ी में पहुंचा सकता है। सर्वे के दौरान ऐसे अधिकतर केस में इसकी पुष्टि हुई है।

डॉ. अंकिता ने बताया-

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इस बीमारी की रोकथाम में जेनेटिक काउंसलिंग की अहम भूमिका है। इसमें जोड़े को शादी से पहले या गर्भधारण से पहले सिकल सेल की जांच कराने की सलाह दी जाती है। यदि दोनों व्यक्ति वाहक पाए जाते हैं, तो उन्हें गर्भावस्था के दौरान प्रेनेटल डायग्नोसिस और मेडिकल विकल्पों की जानकारी दी जाती है, जिससे भविष्य की पीढ़ी को इस बीमारी से बचाया जा सके।

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एमपी में 13 अगस्त तक मिले 31 हजार मरीज

प्रदेश के सिकल बचाव अभियान सेल से मिली जानकारी के मुताबिक प्रदेश में इस समय 0 से 40 साल के व्यक्तियों की स्क्रीनिंग की जा रही है। इनमें अब तक एक करोड़ 14 लाख लोगों की स्क्रीनिंग की जा चुकी है। जिसमें 31 हजार सिकल के मरीज जबकि लगभग दो लाख इस बीमारी के वाहक मिले है।

अब तक साढ़े सात लाख लोगों की स्क्रीनिंग

इसे देखते हुए स्कूल, काॅलेज, छात्रावासों में स्वास्थ्य विभाग कैंप कर रहा है। जहां बच्चों की स्क्रीनिंग के अलावा उन्हें इस बीमारी के प्रति जागरूक किया जा रहा है। जानकारों के अनुसार, बैतूल जिले में खासतौर पर आदिवासी, यादव और मुस्लिम समाज में इसके मरीज मिलते रहे है।

बैतूल में स्वयं सेवी संगठन चला रहे शैलेन्द्र बिहारिया ब्लॅड डोनेशन को लेकर वर्षों से मुहिम चला रहे है। किसी भी व्यक्ति को अगर रक्त की जरूरत पड़ती है। तो सबसे पहली नजर शैलेन्द्र की ओर ही उठती है।

इसे देखते हुए स्कूल, , छात्रावासों में स्वास्थ्य विभाग कैंप लगाकर जागरूकता अभियान चला रहा है।

इसे देखते हुए स्कूल, , छात्रावासों में स्वास्थ्य विभाग कैंप लगाकर जागरूकता अभियान चला रहा है।

उन्होंने बताया-

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मेरे पास हर माह सैकडों परिजन पहुंचते है, जिनके बच्चों को ब्लड चढ़ाना पड़ता है। ऐसे माता पिता की पीड़ा उस समय देखते ही दुख होता है। पीड़ित बच्चे दर्द बुखार से भरे होते है। वे बार बार ब्लड यूनिट अरेंज नहीं कर पाते है। ऐसे में समाजसेवी युवाओं की मदद से उन्हें रक्त उपलब्ध करवाया जाता है।

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एम्स ने एक संस्था के साथ लगाया था शिविर

एम्स भोपाल और मध्यप्रदेश थैलेसीमिया जन जागरण समिति ने मिलकर 28 जून को आमला के बोदरझी में पैराडाइज स्कूल में एक दिन का मुफ्त स्वास्थ्य शिविर लगाया। इस शिविर का मुख्य उद्देश्य लोगों को सिकल सेल एनीमिया और थैलेसीमिया जैसी खून की बीमारियों के बारे में जागरूक करना था। शिविर में कुल 169 लोगों की जांच की गई, जिनमें 101 बच्चे और 68 बड़े लोग थे। जांच में 44 लोग संदिग्ध पाए गए, जिन्हें एम्स भोपाल में आगे की जांच के लिए भेजा गया। अंतिम जांच में 28 लोगों में सिकल सेल का हल्का रूप, 14 लोगों में सिकल सेल की गंभीर बीमारी और 2 लोगों में थैलेसीमिया पाया गया।

केस 2 : माता-पिता नार्मल, बच्चा सिकल सेल पॉजिटिव

बैतूल के भीमपुर ब्लॉक की महिला होलिका गोहे ने 15 अगस्त को अपने तीन साल के बेटे को जिला अस्पताल में भर्ती कराया। उन्होंने बताया कि उनके बेटे को एक साल पहले सिकल सेल से पीड़ित होने की जानकारी एक निजी अस्पताल में हुए टेस्ट से पता चली थी। अभी वे बेटे को भर्ती कर अस्पताल में है।

बेटे की जैसे ग्रोथ होनी चाहिए वह उम्र के लिहाज से कम है। उसे जोड़ों, हाथ-पैर और पेट में तेज दर्द उठता है। यह ब्लड चढ़ाने के बाद ही कम होता है। वे खुद भी हैरान है कि न तो उनके पति और न वे इस बीमारी से पीड़ित और वाहक रहे है लेकिन उनका बेटा इस बीमारी से जूझ रहा है। इस मामले में नोडल अधिकारी डॉ शीते ने जांच की बात कही है।

होलिका ने बताया कि उनके बेटे को एक साल पहले सिकल सेल से पीड़ित होने की जानकारी पता चली थी।

होलिका ने बताया कि उनके बेटे को एक साल पहले सिकल सेल से पीड़ित होने की जानकारी पता चली थी।

दुनिया में करीब 44 लाख लोग सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में करीब 44 लाख लोग सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित हैं। इससे प्रभावित लोगों की 90% आबादी नाइजीरिया, भारत और कांगो में रहती है। ये आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं।

यह बीमारी कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक जुलाई, 2023 को ‘राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन’ की शुरुआत की थी। मिशन का मकसद है वर्ष 2047 तक सिकल सेल एनीमिया को भारत से पूरी तरह खत्म करना।

अब एक्सपर्ट से जानिए यह क्या है, कैसे होती है और इससे बचाव कैसे किया जा सकता है।

आगरा के बाल रोग विशेषज्ञ और देश के जाने-माने डॉक्टर गौरव खंडेलवाल ने इस बीमारी के बारे में विस्तार से बताया।

हंसिए के आकार की हो जाती हैं लाल रक्त कणिकाएं

डॉ. खंडेलवाल ने बताया कि सिकल सेल एनीमिया में शरीर की लाल रक्त कणिकाओं का आकार बदलकर हंसिए की तरह हो जाता है और वो एक-दूसरे में फंसकर रक्त के प्रवाह को बाधित करती हैं।

इसे और सरल ढंग से ऐसे समझते हैं। हमारे शरीर में शिराओं और धमनियों में रक्त लगातार प्रवाहित हो रहा है। इस रक्त में मौजूद रेड ब्लड सेल्स (RBC) का आकार गोल और लचीला होता है। यह एक-दूसरे से टकराते हुए आसानी से खून में इधर-उधर मूव करती रहती हैं।

लेकिन जिसे सिकल सेल एनीमिया है, उसकी लाल रक्त कणिकाओं की आकृति सिकल यानी हंसिए की तरह होकर आपस में फंसने लगती है। इससे खून का प्रवाह बाधित होता है और जिस-जिस जगह पर ये हंसिए जैसी रेड ब्लड सेल्स आपस में उलझती हैं, वहां तेज दर्द होता है। यह स्थिति कई बार इतनी गंभीर होती है कि तुरंत मौत भी हो सकती है।

क्यों बदल जाता है RBC का आकार

लाल रक्त कोशिकाओं का आकार हंसिये की तरह होने का कारण एक असामान्य हीमोग्लोबीन प्रोटीन है। दरअसल, इन कोशिकाओं में पाया जाने वाला हीमोग्लोबीन (Hb) पूरे शरीर को ऑक्सीजन सप्लाई करता है। लेकिन आनुवांशिक गड़बड़ी की वजह से हीमोग्लोबीन प्रोटीन के स्वरूप में बदलाव आ जाता है। WHO के मुताबिक पूरी दुनिया में हर साल 3 लाख से ज्यादा बच्चे सिकल सेल एनीमिया के साथ जन्म लेते हैं।

सिकल सेल एनीमिया में RBC का लाइफ स्पैन कम

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. गौरव खंडेलवाल ने बताया कि रेड ब्लड सेल्स की उम्र 120 दिन की होती है। लेकिन जब यह सिकल का आकार ले लेतीं हैं तो इनकी लाइफ महज 20 से 30 दिन ही रह जाती है। हमारे शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं को लेकर एक खास सिस्टम बना हुआ है। ये कोशिकाएं नियंत्रित तरीके से 120 दिन की जिंदगी जीकर खुद ही नष्ट हो जाती हैं।

इनकी जगह स्वस्थ कोशिकाएं ले लेती हैं। लेकिन सिकल सेल एनीमिया होने पर नई लाल रक्त कोशिकाओं के बनने की प्रक्रिया बहुत धीमी हो जाती है। साथ ही उनका लाइफ स्पैन भी कम हो जाता है। इसलिए इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति हमेशा एनीमिक रहता है यानी उसके शरीर में खून की कमी होती है।

नीचे दिए गए ग्राफिक से समझिए कि सिकल सेल एनीमिया के लक्षण

जानें सिकल सेल एनीमिया का क्या है इलाज

डॉ. गौरव खंडेलवाल बताते हैं कि सिकल सेल एनीमिया को जड़ से खत्म करने की कोई दवा नहीं है। हां, अगर समय पर इसका पता लगा लिया जाए तो सिकल सेल एमीनिया से होने वाली परेशानी को कम किया जा सकता है।

इसके लिए शरीर में फोलिक एसिड, विटामिन बी-12 और आयरन की कमी नहीं होने देनी चाहिए क्योंकि यह शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं और हीमोग्लोबीन को बनाने में मदद करता है।सिकल सेल एनीमिया में खून की कमी होने पर खून चढ़ाने की नौबत आ जाती है।

गंभीर मामलों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए एक हद तक इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। लेकिन यह इलाज बहुत महंगा है और इस इलाज के दौरान भी मरीज को कई तरह की परेशानियों से जूझना पड़ता है।

क्या है हाइड्रॉक्सीयूरिया, जो इसके इलाज में मददगार

हाइड्रॉक्सीयूरिया एक दवा है, जो हीमोग्लोबीन बनाने में मदद करती है। साथ ही यह रेड ब्लड सेल्स को गोल और लचीला बनाए रखती है। हाइड्रॉक्सीयूरिया से रक्त का प्रवाह बेहतर होता है और शरीर में ऑक्सीजन ज्यादा आसानी से पहुंचता है।

इससे शरीर को ज्यादा एनर्जी मिलती है और दर्द भी कम रहता है। इसके लिए हीमोग्लोबीन इलेक्ट्रोफोरेसिस नाम का एक ब्लड टेस्ट होता है, जिससे पता लगाया जा सकता है कि कहीं आप सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित तो नहीं हैं।



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