मंदिर कैसे बना सकता हूं, मैं तो गरीब हूं…यहां अपना मंदिर खुद बनवाने आए थे प्रभु, जानें पूरी कहानी!

मंदिर कैसे बना सकता हूं, मैं तो गरीब हूं…यहां अपना मंदिर खुद बनवाने आए थे प्रभु, जानें पूरी कहानी!


प्राचीन काल के मंदिर हमारे लिए ऐतिहासिक विरासत होते हैं, जिसमें उस युग की स्थापत्य कला देखने को मिलती है. इसी से समझ आता है कि उस जमाने के लोग कला में कितनी दिलचस्पी रखते थे. लेकिन जब पुराने जमाने में कोई निर्माण कार्य होता है, उससे जुड़े किस्से और कहानियां हमें आज भी सुनने को मिलती है. अब वह सत्य या मिथक, श्रद्धा का विषय माना जाता है. एक ऐसी ही कहानी बालाघाट के एक पौराणिक कृष्ण मंदिर से जुड़ी हुई है, जिसे आज भी ग्रामीण सच मानते हैं. वहीं, इस मंदिर से जुड़े ऐसे कई रहस्य हैं, जिसे मानना बेहद मुश्किल है. आइए जानते है, उस मंदिर की कहानी…

मंदिर निर्माण को लेकर अजब-गजब कहानी
जन्माष्टमी के मौके पर कृष्ण भगवान के उपासक मंदिरों में दर्शन करने पहुंचते हैं. ऐसे में हम आपको कृष्ण भगवान के एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहे हैं जो करीब पांच सौ साल पुराना है. वह मंदिर  चंदन नदी के किनारे बसे एक जराहमोहगाव गांव में स्थित है. बंग महाजन पंचेश्वर नाम के शख्स को एक सपना आया था और कृष्ण भगवान ने कहा कि मेरा मंदिर बनवाया जाए. ऐसे में उन्होंने ग्रामीणों को बताया कि भगवान का आदेश है कि मंदिर बनाया जाए लेकिन गांव वाले शख्स पर हंसते रहे. फिर अगले दिन बंग महाजन को फिर इसी तरह का सपना आता है और वह मंदिर बनाने के लिए तैयार हो जाते हैं.

गरीब बंग महाजन ने ऐसे बनवाया मंदिर
आज के दौर में इस तरह की बातों पर विश्वास नहीं किया जाता लेकिन ग्रामीण आज भी उस रहस्य को सच मानते हैं. दरअसल, बंग महाजन ने कृष्ण भगवान से कहा था कि मंदिर कैसे बना सकता हूं, मैं तो गरीब हूं… लेकिन भगवान कृष्ण ने कहा तू मंदिर का निर्माण कर धन मैं दूंगा. इसके बाद गांव के मालगुजार ने मंदिर के लिए जमीन दी. फिर मजदूरों ने मंदिर का काम शुरू किया.

बंग महाजन को मिला एक चमत्कारिक आरो
प्राचीन मान्यता के मुताबिक ग्रामीण बताते हैं कि बंग महाजन को मजदूरों को मजदूरी देने के लिए कृष्ण भगवान ने चमत्कार दिखाया था. बंग महाजन से भगवान ने कहा कि घर में एक आरो (दीवार में लगा आला) से धन मिलेगा. इसके बाद वह धन मजदूरों को मजदूरी के रूप में देते थे. ऐसा कहा जाता है कि इसी तरह वह आरो में हाथ डालते गए और मंदिर का निर्माण होता गया.

स्थानीय बताते हैं कि इस मंदिर के निर्माण में पत्थर, चने और गुड़ का इस्तेमाल किया गया है. ऐसे में इस मंदिर की इमारत काफी मजबूत मानी जाती है. लेकिन समय के साथ इस मंदिर का सौंदर्यीकरण और जीर्णोद्धार कराया गया है.

मंदिर में है एक चमत्कारी कुआं
ऐसी मान्यता है कि मंदिर की तरफ पीठ करने पर कुआं खारा पानी देता है. वहीं, मंदिर की ओर मुंह करने पर कुआं मीठा पानी देता है. अब कुएं का खारा पानी देने वाला हिस्सा बंद कर दिया गया है. लेकिन इसके पीछे का कारण क्या है किसी को नहीं पता.

ग्रामीणों ने देखा एक और चमत्कार
जराहमोहगाव के रहने वाले छवि मरठे बताते हैं कि वैशाख पूर्णिमा का दिन था. बहुत तेज बारिश हो रही थी. बादल गरज रहे थे और बिजली चमक रही थी. इस दौरान ग्रामीणों को अचानक बांसुरी की धुन सुनाई  देने लगी. लोग जिधर जाते थे उधर से आवाज आती थी. छवि मरठे बताते हैं कि ये वाक्या साल 2018 का है.

हर साल आता है चढ़ावा
लोगों का मानना है कि इस मंदिर में सच्चे मन से प्रार्थना करने वालों की मुराद जरूर पूरी होती है. ऐसे में वह मुराद पूरी होने पर सोने-चांदी के गहने चढ़ाते हैं. मंदिर समिति उन गहनों से मिलाकर मंदिर के लिए कुछ निर्माण कार्य भी करते हैं.



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