खराब बल्लेबाजी नहीं गुटबाजी का शिकार हुई शेफाली,महिला क्रिकेट में मनमानी

खराब बल्लेबाजी नहीं  गुटबाजी का शिकार हुई शेफाली,महिला क्रिकेट में मनमानी


नई दिल्ली.  भारत जैसे देश में क्रिकेट सिर्फ खेल नहीं, बल्कि जुनून है. यहाँ हर गल्ली में ऐसे खिलाड़ी मिल जाएंगे, जिनमें इंटरनेशनल लेवल तक जाने की क्षमता है. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या टीम में जगह सिर्फ टैलेंट और परफॉर्मेंस से मिलती है? या फिर पुरुषों की तरह महिला क्रिकेट में भी गुटबाजी और मनमानी का खेल चलता है? ताजा मामला शेफाली वर्मा का है

शेफाली का गुनाह ये था कि वो  रन बनाना जानती है. धाकड़ ओपनर शेफाली वर्मा उन खिलाड़ियों में से हैं, जिन्होंने बहुत कम उम्र में अपनी पहचान बनाई.  लेकिन इस बार महिला वर्ल्ड कप के लिए उनका नाम लिस्ट से बाहर कर दिया गया. कारण – “कंसिस्टेंसी की कमी” बताया गया लेकिन जब रिकॉर्ड्स की तरफ देखते हैं तो यह तर्क खोखला नजर आता है.

बल्लेबाजी नहीं ग्रुपबाजी वजह 

शेफाली को लेकर सोशल मीडिया पर भी फैन्स सवाल उठा रहे हैं अगर इतनी धांसू फॉर्म में रहने के बावजूद शेफाली टीम से बाहर हो सकती हैं, तो बाकी खिलाड़ियों का क्या होगा. शेफाली ने घरेलू क्रिकेट में उन्होंने 527 रन बनाए, औसत 75.28 और स्ट्राइक रेट 152.31 रहा. बंगाल के खिलाफ 115 गेंदों में 197 रनों की पारी खेली, जो किसी भी बल्लेबाज के लिए सपना जैसी है. WPL 2025 में दिल्ली कैपिटल्स की ओर से खेलते हुए 304 रन बनाए, स्ट्राइक रेट 152.76 के साथ. इतना सब होने के बावजूद उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया. जबकि चयनकर्ताओं ने उनके मुकाबले उस खिलाड़ी को जगह दी, जिसकी परफॉर्मेंस भले स्थिर रही हो, लेकिन शेफाली जैसी धमाकेदार शुरुआत देने की ताकत उसमें नहीं है.

पुरुष क्रिकेट जैसा ही खेल

ये सिर्फ महिला क्रिकेट की कहानी नहीं। पुरुष टीम में भी यही हाल है. श्रेयस अय्यर, जिन्होंने इस साल IPL में 604 रन बनाए, औसत 50.33 और स्ट्राइक रेट 175 के साथ, उन्हें भी बाहर कर दिया गया. वहीं यशस्वी जायसवाल, जिन्होंने राजस्थान रॉयल्स के लिए 559 रन ठोके, स्ट्राइक रेट 159.71 के साथ, उनका भी नाम रिजेक्टेड लिस्ट में चला गया. यानी परफॉर्मेंस चाहे जैसा भी हो, अगर आप “गुट” के हिसाब से फिट नहीं बैठते, तो दरवाजा आपके लिए बंद है.

क्या खोएगा भारत?

शेफाली की गैर-मौजूदगी सिर्फ एक खिलाड़ी को बाहर करना नहीं है, बल्कि टीम से उस आक्रामक अंदाज़ को छीन लेना है, जिसकी जरूरत बड़े टूर्नामेंट में होती है. वहीं यशस्वी और श्रेयस को नजरअंदाज करना, उस टैलेंट को दबा देना है, जो भारत को खिताब जिताने में अहम साबित हो सकता था. लोग अक्सर सोचते हैं कि गुटबाजी सिर्फ राजनीति में होती है. लेकिन हकीकत ये है कि भारतीय क्रिकेट में भी “मनमानी” और “ग्रुपिज़्म” का बोलबाला है. जो सेलेक्टर्स के करीब है, या जिन्हें टीम मैनेजमेंट का समर्थन है, वही लगातार मौके पा रहा है. बाकी खिलाड़ियों के लिए चाहे वो कितना भी बेहतर क्यों न खेल लें, दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं.  चयनकर्ताओं की ये मनमानी सिर्फ खिलाड़ियों के करियर पर नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीय फैन्स की उम्मीदों पर भी भारी पड़ सकती है। सवाल यही है – क्या टीम इंडिया की जर्सी परफॉर्मेंस से मिलेगी या फिर गुटबाजी से.



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