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Balaghat News: बालाघाट का स्वराजदीप सुन और बोल नहीं सकता, लेकिन क्रिकेट, फुटबॉल, डांस और पढ़ाई में मेडल पर मेडल जीतकर सबको हैरान कर रहा है. गरीबी के बावजूद उसका हुनर मिसाल है. पढ़िए उसकी संघर्ष और प्रेरणा से भर…और पढ़ें
लोकल 18 रिपोर्टर ने उससे इशारों में बातचीत की कोशिश की लेकिन थोड़ी देर बाद समस्या बनने लगी. कॉपी पेन पर लिखकर बातचीत की. रिपोर्टर ने जीवन में क्या करना चाहते हो, तो उसने लिखा नगर पालिका में सफाई कर्मी…ये सुनकर रिपोर्टर चौक पड़ा. ये सोचना लगा कि इतना प्रतिभाशाली लड़का और सफाई कर्मी का काम, तब उसने बताया कि उसकी दो बहने भी उसी की तरह सुन और बोल नहीं सकती लेकिन उनमें लगभग उतनी ही प्रतिभाएं. वह उनके लिए कुछ करना चाहता है. और उन्हें जीवन में आगे बढ़ाने के लिए ये मेहनत करना चाहता है.
मां ने मजदूरी कर बच्चों को भेजा स्कूल
बच्चों में प्रतिभा को देख उनके माता-पिता ने उन्हें पढ़ाने के लिए गोंदिया एक मूक बधिर स्कूल में पढ़ाया. वहां पर बच्चों को इशारों की भाषा में पढ़ाया जाता है. वहां पर न सिर्फ पढ़ाया जाता है बल्कि बच्चों को खेल सहित तमाम प्रतिभाओं को निखारा जाता है. लेकिन उनके पिता की मौत के बाद मां राजवंती धुर्वे पर ही सारी जिम्मेदारी आ गई.
कक्षा 12वीं में 80 प्रतिशत अंक हासिल करने वाले स्वराजदीप आगे महाराष्ट्र के नागपुर कॉलेज से बीए की पढ़ाई करना चाहता है. लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ रही है. वहीं, बड़ी बहन रक्षा की भी पढ़ाई छूट चुकी है. लेकिन स्वराजदीप अपनी छोटी बहन रानी और भाई जयदीप को पढ़ाने के लिए मेहनत मजदूरी करना चाहता है. रानी फिलहाल नागपुर के स्कूल से 11वीं की पढ़ाई कर रही है. हाल ही में उसने बालाघाट नगरपालिका में सफाईकर्मी की नौकरी के लिए आवेदन किया है.
मात्र 600 रुपए पेंशन से चल रही जिंदगी
स्वराजदीप और उसकी दोनों बहनों को सामाजिक सुरक्षा विकलांगता पेंशन योजना के तहत 600 रुपए की पेंशन मिल रही है. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना के तहत राजवंती धुर्वे को भी महज 600 रुपए की मासिक पेंशन मिल रही है. परिवार का कहना है कि इससे स्कूल-कॉलेज की फीस भरना मुश्किल हो रहा है. ऐसे में उनकी प्रतिभाओं के साथ अन्याय हो रहा है.
सरकार से मदद मांगी लेकिन मिली नाकामी
स्वराजदीप ने परिवार की मदद की गुहार शासन-प्रशासन से लगाई. इसके लिए स्वराजदीप कलेक्टर कार्यालय भी गए लेकिन वहाँ से भी कोई मदद नहीं मिल सकी. पढ़ाई, खेल और नृत्य में आगे होने के बावजूद गरीबी ने उसे पीछे धकेल दिया.