सचिन और सुब्रतो की दोस्ती की शुरुआत 1989 की ईरानी ट्रॉफी के दौरान हुई. बैनर्जी ने पहली बार सचिन को दिल्ली के खिलाफ खेलते देखा. सचिन की बल्लेबाज़ी में बड़े मंच के लिए जुनून और आत्मविश्वास साफ दिखता था. तभी बैनर्जी को लग गया था कि यह लड़का एक दिन बहुत बड़ा बनने वाला है. धीरे-धीरे दोनों के बीच जबरदस्त दोस्ती हो गई.
1991-92 में भारत के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर यह दोस्ती और गहरी हो गई. सिडनी में सचिन तेंदुलकर ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना पहला शतक (148*) लगाया. उस ऐतिहासिक पल का गवाह दूसरे छोर पर खड़े सुब्रतो बैनर्जी ही थे. यह बैनर्जी का डेब्यू टेस्ट भी था. ऑस्ट्रेलिया का तेज गेंदबाजी आक्रमण- क्रेग मैकडॉरमट, ब्रूस रिड और मर्व ह्यूज भारतीय बल्लेबाजों को परेशान कर रहा था. लेकिन सचिन का शांत स्वभाव पूरे मैच में छाया रहा. बैनर्जी के मुताबिक सचिन के पास गजब का क्रिकेटिंग दिमाग था. वह हालात को सबसे जल्दी और सटीक तरीके से समझ लेता था.
दोस्ती जो मैदान से बाहर भी जारी रही
सचिन और बैनर्जी का रिश्ता सिर्फ खेल तक नहीं रहा. 2002 के बाद बैनर्जी ऑस्ट्रेलिया में बस गए. 2003 में भारत जब फिर ऑस्ट्रेलिया पहुंचा तो सचिन ने सीरीज में रन ना बनने पर बैनर्जी से नेट्स में गेंदबाजी करवाई. सचिन ने घंटों आउटस्विंगर प्रैक्टिस की, थकने के बाद भी बल्ला चलाते रहे. उनके इसी अभ्यास के बाद सचिन ने सिडनी में 241 रनों की नाबाद पारी खेली. यही नहीं, सचिन अक्सर बैनर्जी के घर डिनर पर आते और बहुत कम दोस्तों के बीच क्रिकेट की रणनीति साझा करते थे.
आईपीएल की शुरुआत में भी सचिन ने बैनर्जी को मुंबई इंडियंस के साथ बॉलिंग कोच बनने का सुझाव दिया. सचिन ने बैनर्जी से भारत वापस आने और युवा खिलाड़ियों को ट्रेनिंग देने का सुझाव दिया था. इसके बाद बैनर्जी ने न सिर्फ आईपीएल में बल्कि झारखंड टीम को कोचिंग दी और उमेश यादव जैसे तेज गेंदबाज को तराशा.
करियर पर असर और मुंबई इंडियंस से जुड़ाव
सुब्रतो ने कहा था कि वो सचिन की सलाह पर ही वापस भारत लौटे और कोचिंग में हाथ आजमाया. सचिन ने उन्हें मुंबई इंडियंस से जुड़ने में भी मदद की. सुब्रतो ने कई युवा खिलाड़ियों को गाइड किया, जिनमें टीम इंडिया के तेज गेंदबाज उमेश यादव भी शामिल हैं. बाद में वे झारखंड टीम के चीफ कोच भी बने.
यह दोस्ती अगले जेनरेशन तक भी पहुंची. जब सचिन का बेटा अर्जुन तेंदुलकर 14 साल का हुआ और तेज गेंदबाज बनना चाहता था, तो सचिन ने बैनर्जी से उसे कोचिंग देने की खास गुज़ारिश की. अर्जुन के शुरुआती कोच सुब्रतो बैनर्जी बने, और उन्होंने अर्जुन को वही मैदान का हुनर और मेहनत सिखाई जिसे कभी सचिन ने खुद देखा था.
दोस्ती का असली मतलब
आज भले ही सुब्रतो बैनर्जी ने केवल एक टेस्ट और छह वनडे खेले हों, लेकिन सचिन के साथ उनकी दोस्ती उन्हें हमेशा सुर्खियों में रखती है. यह रिश्ता बताता है कि असली दोस्ती सिर्फ नाम और शोहरत से नहीं, बल्कि भरोसे और साथ निभाने से बनती है. सचिन और सुब्रतो की दोस्ती क्रिकेट से शुरू हुई थी, लेकिन वक्त के साथ यह जिंदगी का हिस्सा बन गई.