खरीफ फसलों को खा जाते हैं बरसाती कीड़े, मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंग, उड़द सब पर भारी ये रोग, जानें बचाव

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Agriculture Tips: खरीफ सीजन में किसान कपास और सोयाबीन के साथ-साथ मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंग, उड़द, अरहर और धान जैसी फसलों की भी बड़े पैमाने पर खेती करते हैं. पर बरसात के मौसम में कुछ रोग इनके लिए काल बन जाते हैं. प्रमुख फसलों पर लगने वाले रोग और उनके बचाव….

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बरसात के मौसम में मक्का, ज्वार, बाजरा, मूंग, उड़द, अरहर और धान की फसलों पर कई प्रकार के गंभीर रोग लग जाते हैं, जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि समय रहते सही पहचान और उचित दवा का उपयोग कर किसान अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं.

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खरगोन के कृषि वैज्ञानिक डॉ. राजीव सिंह बताते हैं कि मक्का की फसल में मृदु रोमिल आसिता रोग सबसे सामान्य है. इसके लक्षण पत्तियों पर हल्की हरी या पीली धारियों के रूप में दिखते हैं, जो बाद में गहरे लाल रंग में बदल जाते हैं. इस रोग के नियंत्रण के लिए किसान मैंकोजेब 75 डब्ल्यूपी या कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.

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ज्वार की फसल में अक्सर एंथ्रेक्नोज रोग फैल जाता है. इसके लक्षण पत्तियों पर छोटे-छोटे लाल धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो बारिश के दौरान तेजी से फैलते हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि इस रोग से बचाव के लिए मैंकोजेब 75 डब्ल्यूपी की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना जरूरी है.

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मूंग और उड़द की फसलें बरसात में पीला मोजेक वायरस से प्रभावित होती हैं. इस रोग में पौधों की पत्तियां पीली हो जाती हैं. संक्रमित पौधों को तुरंत उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए. शुरुआती अवस्था में किसान लेम्बडा सायहॅलोथ्रीन + थायमेथोक्साम (125 मिली/हेक्टेयर) या बीटा साइफ्लुथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड (350 मिली/हेक्टेयर) का प्रयोग करें. बाद की अवस्था में एसिटामिप्रिड + बायफेंथ्रिन (250 मिली/हेक्टेयर) उपयोगी है.

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अरहर की फसल में फायटोप्थोरा ब्लाईट गंभीर समस्या है. इस रोग में पौधे पीले होकर सूखने लगते हैं और तनों पर अनियमित गांठ जैसी वृद्धि होने लगती है. इस समस्या से बचने के लिए मेटालेक्सिल + मेन्कोजेब की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.

खरीब फसलों में लगने वाले गंभीर रोग की पहचान, एग्रीकल्चर टिप्स, खरीब फसलों में बरसाती बीमारी, local18, khargone letest news, Madhya Pradesh hindi news

धान की फसल में खैरा रोग जिंक की कमी से होता है. यह लक्षण रोपाई के 30 से 35 दिन बाद दिखाई देते हैं. शुरुआत में पत्तियों पर हल्के पीले धब्बे बनते हैं, जो बाद में कत्थई रंग में बदल जाते हैं. बचाव के लिए किसान जिंक सल्फेट 21% की 25 किलो या जिंक सल्फेट 33% की 12.5 किलो मात्रा प्रति हेक्टेयर उपयोग करें.

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धान में ही एक और गंभीर रोग शीथ ब्लाइट भी है. इसमें पत्तियों पर शीथ के पास पानी के ऊपर अनियमित धब्बे बनने लगते हैं, जिससे तना और पत्तियां भी प्रभावित होती हैं. इसके नियंत्रण के लिए प्रोपिकोनाजोल 20 ईसी की 500 मिली या हेक्साकोनाजोल 5 ईसी की 1 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए.

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कृषि वैज्ञानिक किसानों को सलाह देते हैं कि बारिश के मौसम में खेतों का निरीक्षण नियमित रूप से करें. रोग के शुरुआती लक्षण मिलते ही तुरंत उपचार करें. साथ ही, दवा का छिड़काव सुबह या शाम के समय करें, ताकि असर लंबे समय तक बना रहे.

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