विराट रोहित के युग में पुजारा की पहचान कैसे बनी,टेस्ट क्रिकेट का कैरेक्टर हीरो

विराट रोहित के युग में पुजारा की पहचान कैसे बनी,टेस्ट क्रिकेट का कैरेक्टर हीरो


नई दिल्ली.चेतेश्वर पुजारा ने क्रिकेट के सभी फॉर्मेट से संन्यास ले लिया है. उनका करियर हमें ये सिखाता है कि क्रिकेट सिर्फ चौके-छक्कों का खेल नहीं, बल्कि धैर्य, संघर्ष और भरोसे की भी कहानी है. पुजारा के योगदान को सिर्फ उनके बनाए रन से नहीं मापा जा सकता, बल्कि उनके क्रीज़ पर टिके रहने की कला से समझा जा सकता है. ये महज़ एक संन्यास नहीं, बल्कि भारतीय टेस्ट क्रिकेट के एक सुनहरे अध्याय का अंत है. उनके करियर की कहानी हमें बताती है कि असली हीरो वही है, जो रोशनी में नहीं बल्कि परदे के पीछे टीम को संभालता है. पुजारा वही सिपाही थे—जो ढाल बनकर खड़े रहे, जब पूरी टीम डगमगा रही थी.

अपने पहले ही मैच में पुजारा ने जिस ठहराव के साथ बल्लेबाजी की थी वो आज भी अनिल कुंबले और अयाज मेमन जैसे वरिष्ठ पत्रकारों के जेहन में आज भी उसकी तासीर ताजा है. बैंगलुरु में खेले गए मैच में चेतेश्वर ने 70 रन की पारी महज एक ट्रेलर थी जिसकी पूरी पिक्चर हमनें अगले दस साल देखी. पुजारा की बल्लेबाजी का विशलेषण करेंगे तो पाएंगे कि वो पुराने स्कूल के वो छात्र थे जो नए दौर के लेसन भी सीखना चाहते थे.

सिर्फ रन ही नहीं, ठहराव की ताकत

पुजारा ने अक्टूबर 2010 में डेब्यू किया और तब से उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में 15,797 गेंदों का सामना किया. दुनिया में सिर्फ चार बल्लेबाज हैं जिन्होंने उनसे ज्यादा गेंदें खेली हैं – जो रूट, एलेस्टेयर कुक, अजहर अली और स्टीव स्मिथ. यही दिखाता है कि वो भारत के लिए कितने अहम थे. उनका औसत 43 के करीब रहा, लेकिन असली ताकत उनकी उस क्षमता में थी, जहां उन्होंने गेंदबाजों को थका दिया. 13 साल के करियर में उन्हें हर 99 गेंदों के बाद ही आउट किया जा सका. ऐसे खिलाड़ी कम ही होते हैं, जो गेंद दर गेंद विपक्षी टीम की सहनशक्ति की परीक्षा लें.

जब टीम को सहारा चाहिए था, पुजारा खड़े थे

पुजारा ने 7021 रन बनाए, लेकिन आंकड़ों से भी ज्यादा बड़ी बात ये है कि जब वो क्रीज़ पर थे, तब भारत ने 15,804 रन जोड़े. यानी 30% से ज्यादा रन उनकी मौजूदगी में बने. ये रिकॉर्ड सचिन तेंदुलकर और विराट कोहली जैसे दिग्गजों से भी ऊपर है. सोचिए, जब टीम दबाव में होती थी और विकेट गिर रहे होते थे, तब क्रीज़ पर पुजारा की मौजूदगी बाकी बल्लेबाजों के लिए आत्मविश्वास लेकर आती थी.

ऑस्ट्रेलिया की धरती पर लिखा स्वर्णिम अध्याय

2018-19 की ऑस्ट्रेलिया सीरीज़ को कौन भूल सकता है? उस सीरीज़ में पुजारा ने 521 रन बनाए और तीन शतक ठोके. उन्होंने 1258 गेंदों का सामना किया – यानी हर दिन, हर सेशन में ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों को जकड़कर रखा. भारत की पहली ऐतिहासिक टेस्ट सीरीज़ जीत में पुजारा की ये पारी अमर हो गई.

गिरावट भी आई, लेकिन भरोसा बना रहा

2018 के बाद से उनके रन बनाने की गति धीमी हुई. घरेलू मैदानों पर भी शतक का सूखा पड़ा. पहले जहां उनका घरेलू औसत 63 के आसपास था, वही 2018 के बाद 31 तक गिर गया. लेकिन इसके बावजूद कप्तान और साथी खिलाड़ी उन्हें “टीम का सबसे भरोसेमंद खिलाड़ी” मानते रहे.

पुजारा का असली योगदान

पुजारा ने 19 शतक लगाए और 7000 से ज्यादा रन बनाए. लेकिन उनकी सबसे बड़ी ताकत ये थी कि उन्होंने टीम को वो आधार दिया, जिस पर बाकी बल्लेबाज बड़ी पारियां खेल सके. राहुल द्रविड़ के बाद उन्हें ही “नई दीवार” कहा गया और ये उपाधि उन्हें बिल्कुल सही मिली.

चेतेश्वर पुजारा सिर्फ एक बल्लेबाज नहीं थे, वो भारतीय टेस्ट क्रिकेट की आत्मा थे. उन्होंने हमें याद दिलाया कि तेज़ क्रिकेट के इस दौर में भी धैर्य, तकनीक और जज़्बे से मैच जीते जा सकते हैं. संन्यास ने एक दौर को खत्म जरूर किया है, लेकिन उनकी पारियां हमेशा क्रिकेट प्रेमियों की यादों में जिंदा रहेंगी.



Source link