मध्यप्रदेश में पिछले 15 साल में राज्य के सरकारी स्कूलों (कक्षा 1 से 8) में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 1.05 करोड़ से घटकर महज 54.58 लाख रह गई। यानी आधे से ज्यादा बच्चे ‘गायब हो गए। यह कमी केवल सरकारी स्कूलों तक सीमित नहीं है। निजी स्कूलों में भी नामा
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मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों से पिछले 15 साल में साढ़े 50 लाख से ज्यादा बच्चे ‘गायब’ हो गए। विधानसभा में सरकार ने खुद जो आंकड़े पेश किए, उनसे साफ है कि 2010-11 में पहली से आठवीं तक 1 करोड़ 5 लाख 30 हजार बच्चे पढ़ते थे। लेकिन 2025-26 तक यह संख्या घटकर 54 लाख 58 हजार रह गई। निजी स्कूलों में भी नामांकन 48.94 लाख से घटकर 43.93 लाख हो गया। यानी बच्चे न सरकारी स्कूलों में हैं और न ही निजी में। ऐसे में सवाल है कि आखिर गए कहां?
15 साल में 50.72 लाख बच्चे नामांकन से बाहर हुए। यानी हर साल औसतन 3.85 लाख छात्र ड्रॉप आउट होते गए। सिर्फ 2021-21 यानी कोविडकाल में 3.18 लाख बच्चे बढ़े। मिड-डे मील, यूनिफॉर्म और किताबों पर हर साल प्रत्येक छात्र पर औसतन 3000 रुपए खर्च होते हैं।
कोविडकाल को हटा दें तो 14 साल में इन छात्रों के नाम पर 1617 करोड़ रुपए जारी किए गए। विशेषज्ञों का कहना है कि हर साल इतनी बड़ी संख्या में बच्चे पढ़ाई छोड़ दें, यह संभव नहीं। शक इसलिए गहराता है कि बड़ी संख्या में फर्जी एनरोलमेंट दिखाए गए।
कैग (नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक) भी इन आंकड़ों पर सवाल उठा चुका है। 2016 की रिपोर्ट में कहा गया कि मप्र के नामांकन और आउट-ऑफ-स्कूल बच्चों के डेटा भरोसेमंद नहीं हैं। 2021 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री ने विधानसभा में माना कि चाइल्ड ट्रैकिंग से आंकड़े सुधारे गए। यानी पहले जो डेटा था, वह फर्जी था।
सालाना औसतन 3.85 लाख ड्रॉपआउट, कोविड में 3.18 लाख बढ़े
फरवरी 2021 में नामांकन 1.05 करोड़ से घटकर 64.34 लाख रह गया, तब तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार का विधानसभा में जवाब-
तर्क-1: आरटीई के तहत बच्चों ने निजी स्कूलों में दाखिला लिया हकीकत: 2010-11 में निजी स्कूलों में 48.94 लाख नामांकन थे, जो 2024-25 में घटकर 43.93 लाख रह गए। यानी यह तर्क भी सही नहीं ठहरता।
तर्क-2: 0-6 आयु वर्ग में संख्या घटी, इसलिए नामांकन कम हकीकत: अगर 0-6 आयु वर्ग में बच्चों की संख्या कम हो रही थी तो असर पहली कक्षा पर दिखना चाहिए था। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2012-13, 2016-17, 2017-18, 2019-20 और 2021-22 में पहली कक्षा का नामांकन बढ़ा है। कक्षा 2 से 8 तक हर साल नामांकन में लगातार गिरावट दर्ज हुई। यानी 0-6 आयु वर्ग में कमी वाला तर्क सही नहीं है।
छात्र इच्छा से स्कूल नहीं छोड़ते, उन्हें व्यवस्था से धकेला जाता है
भास्कर एक्सपर्ट – डॉ. अनिल सद्गोपाल, शिक्षाविद्
छात्र कभी अपनी इच्छा से स्कूल नहीं छोड़ते, बल्कि उन्हें शिक्षा व्यवस्था से बाहर धकेला जाता है। नामांकन रजिस्टर में गलत प्रविष्टियां करके उनके नाम पर मिलने वाली राशि हड़पना इसका सिर्फ एक तरीका है। कई और भी तरीके हैं। संविधान के अनुच्छेद 45 ने 1960 तक 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने का लक्ष्य तय किया था, पर 2025 में भी मप्र सरकार आंकड़ों की बाजीगरी में उलझी है। ‘सीएम राइज स्कूल’ जैसे प्रयोग भी भ्रांति हैं।
क्या है 1617 करोड़ का हिसाब
मिड डे मील, यूनिफॉर्म और किताबों पर ही सालाना औसतन 3 हजार रुपए का खर्च
1. मिड-डे मील : मार्च 2025 में विधायक प्रताप ग्रेवाल के सवाल के जवाब में स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने बताया कि 2020-21 में 65.86 लाख बच्चों को मध्याह्न भोजन (मिड-डे मील) दिया गया। वहीं, साल 2021 में पूछे गए एक सवाल के जवाब में तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री ने बताया था कि वर्ष 2020-21 में प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं के बच्चों के मध्याह्न भोजन पर 1617.89 करोड़ रु. खर्च किए गए। इस हिसाब से औसत निकाला जाए तो हर बच्चे पर सालाना 2,456 रुपए खर्च किए गए। 2. गणवेश : प्रत्येक बच्चे पर सालाना औसतन 600 रुपए खर्च। 3. पुस्तक : औसतन 325 रुपए खर्च किए गए।
- यानी केवल मध्याह्न भोजन, गणवेश व पुस्तकों पर मिलाकर 3,381 रुपए प्रति बच्चा प्रतिवर्ष खर्च किया गया।
- हालांकि, महंगाई के हिसाब से इसका न्यूनतम औसत भी निकालें पर प्रति छात्र 3000 रुपए खर्च किए गए।
- इसके बावजूद 2010 के बाद से हर साल औसतन 3.85 लाख बच्चे स्कूल सिस्टम से बाहर हुए। केवल 2021-22 (कोविड काल) में ही बच्चों की संख्या में थोड़ी वृद्धि दर्ज हुई थी।
- अगर इन 14 वर्षों में बाहर हुए 3.85 लाख बच्चों पर किए गए खर्च का कुल आंकड़ा देखें तो यह लगभग 1,617 करोड़ रुपए बैठता है।
इधर, मंत्री बोले- पेरेंट्स का रुझान निजी स्कूलों की ओर, इसलिए ड्रॉप आउट बढ़ा
इस साल स्थिति थोड़ी बेहतर हुई है। सरकारी स्कूलों में बच्चों का ड्रॉपआउट बढ़ने के दो मुख्य कारण हैं: जन्म दर में कमी और माता-पिता का प्राइवेट स्कूलों की ओर रुझान। जब तक लोग यह समझें कि सरकारी स्कूलों का रिजल्ट और सुविधाएं बेहतर हैं, तब तक देर हो चुकी होती है। -राव उदयप्रताप सिंह, स्कूल शिक्षा मंत्री