सरकारी नौकरी भी हासिल कर ली…
बालाघाट के ग्राम बोरी में एक परिवार के चार सदस्यों के तीन तरह के जाति प्रमाण पत्र जारी हुए हैं. शिकायतकर्ताओं ने बताया, परिवार सामान्य वर्ग में आने वाली सिंगरोड़ जाति का है, जबकि उनके सदस्यों के अलग-अलग जाति प्रमाणपत्र हैं. शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि उसी घर में एक शख्स का मांझी, महिला का सिंगरहा और दो अन्य सदस्यों का कहार जाति का प्रमाणपत्र बना है, जबकि, इनके पूर्वज सिंगरौड़ जाति से ताल्लुक रखते थे. इन फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी भी हासिल करने का आरोप है.
ढीमर समाज संगठन के सचिव बेनीराम मेश्राम का अराेप है कि फर्जी जाति प्रमाणपत्र एक ही परिवार ने नहीं बनवाए हैं, बल्कि 80 से ज्यादा लोगों ने मछुआरा समाज से जुड़ी जातियों के प्रमाणपत्र बनवाए हैं. इनमें ढीमर, मांझी, सिंगराहा और कहार जाति के प्रमाणपत्र हैं. इसमें मत्स्य सहकारी समिति मर्यादित पांढरवानी, राजीव गांधी सहकारी समिति बोरी में 60 सदस्य और मिलन मछुआरा सहकारी समिति मर्यादित टेकाड़ी 20 लोग फर्जी जाति प्रमाण पत्र समिति में घुसपैठ कर रहे हैं.
मूल समाज के लोग बाहर
समिति में शामिल क्षेत्रीय प्रतिनिधि सोहनलाल बाउके ने बताया, पहले समिति में मूल समाज के लोग शामिल थे. लेकिन 2016 के बाद से दूसरी जाति के लोग फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाकर समिति में जगह बना रहे हैं. ऐसे में मूल मछुआरा समाज के लोग बाहर होते चले गए.
मामले के व्हिसिल ब्लोअर शेखर जायसवाल ने लोकल 18 को बताया, जाति प्रमाण पत्र बनना आसान काम नहीं है. इसमें सरपंच, ग्राम पटेल सहित कई अधिकारियों के हस्ताक्षर लगते हैं. वहीं, ये मामला एक साल पहले उजागर हुआ था. जनसुनवाई में कलेक्टर साहब के संज्ञान में मामले को लाया गया था. इसके बाद एक जांच समिति बनाई गई. इसमें पाया गया कि जाति प्रमाणपत्र के पुर्खे दूसरी जाति के हैं. लेकिन, अब तक संतोष जनक कार्रवाई नहीं की गई.
फर्जी प्रमाणपत्र से अधिकार छीनने का आरोप
शेखर जायसवाल ने बताया, वंशानुगत मछुआरा में सिर्फ 19 जातियां है, जिसमें सिंगरौड़ जाति बिल्कुल नहीं है. ऐसे में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए वंशानुगत मछुआरों के अधिकारों पर डाका है. इससे न सिर्फ मछुआरा समुदाय के लोगों के अधिकारों हनन है, बल्कि ओबीसी वर्ग से आने वाले लोगों के भी अधिकारों का हनन है. समिति से लेकर सरकारी नौकरी में मिलने वाले आरक्षण में भी हिस्सेदारी लेकर ओबीसी समुदाय के अधिकारों का हनन है.
जिम्मेदार मामले को लेकर गंभीर नहीं
इस मामले में मछुआरा समाज के लोगों ने कलेक्टर से मिलने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. इसके बाद मत्स्योद्योग उपसंचालक कार्यालय पहुंचे. वहां भी उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया. जब मीडिया ने सहायक संचालक पूजा रोडगे से इस बारे में बात करनी चाही तो वह मीटिंग का हवाला देते हुए बिना जवाब दिए वहां से चली गईं.