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Parasite Attack on Animals: विंध्य में इस बार अगस्त–सितंबर की बारिश भले ही खेतों और जलस्रोतों को भर दे लेकिन यही मौसम पशुधन के लिए गंभीर खतरे का कारण भी बन सकता है. विशेषज्ञ बताते हैं कि इस दौरान पालतू जानवरों …और पढ़ें
बरसात में बढ़ता है संक्रमण का ख़तरा
लोकल 18 से बातचीत में जिला पशु चिकित्सालय प्रभारी डॉ. बृहस्पति भारती ने बताया कि वर्षा ऋतु में सबसे अधिक गैस्ट्रो-इंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में इंडो पैरासाइट पाए जाते हैं जिन्हें आम भाषा में किर्मी कहा जाता है. ये कीड़े पशुओं की आंतों और आमाशय में पनपते हैं. बारिश के दिनों में तालाब, नालों, पोखरों आदि जलाशयों में पानी भरने से वहाँ घोंघे (स्नेल्स) की संख्या बढ़ जाती है. जब पशु चारा चरने आते हैं तो यही घोंघे उनके शरीर में पहुँचकर संक्रमण फैला देते हैं.
पेट में कीड़े लगने के कई लक्षण साफ देखे जा सकते हैं. जैसे पशुओं की त्वचा खुरदुरी हो जाना, बाल रूखे और बेजान होना, शरीर पर झुर्रियां दिखना आदि. अगर समय रहते इलाज न किया जाए तो यह संक्रमण और भी खतरनाक हो सकता है. कई मामलों में लंग्स वार्म, हार्ट वार्म और ऐम्फ़िस्टम्स जैसे परजीवी के चलते पशुओं की जान पर तक बन जाती हैं. ये ब्लड सकिंग पैरासाइट्स होते हैं जो शरीर के भीतर से पूरा पोषण चूस लेते हैं.
समय पर दवा ही है बचाव
विशेषज्ञों का कहना है कि बारिश शुरू होने से पहले ही पशुओं को पेट के कीड़ों की दवाई देना सबसे बेहतर बचाव है. अगर संभव हो तो हर तीन महीने में नियमित रूप से यह दवा पिलाई जानी चाहिए. वहीं नवजात बछड़ों या बच्चों में भी यह संक्रमण फैल सकता है. इसलिए उनके जन्म के 8–10 दिन बाद पेट के कीड़ों की दवा ज़रूर दी जानी चाहिए.
देसी नुस्खे से करें बचाव
जो लोग घरेलू उपाय अपनाना चाहते हैं उनके लिए नीम के पत्ते कारगर साबित हो सकते हैं. नीम की पत्तियों को गुड़ में मिलाकर पशुओं को खिलाने से पेट के कीड़े बड़ी मात्रा में साफ हो जाते हैं. किसानों और पशुपालकों के लिए यह समझना ज़रूरी है कि बरसात जहाँ खेतों को जीवन देती है वहीं पशुधन को बीमारियाँ भी देती है. ऐसे में समय पर इलाज, साफ-सफाई और घरेलू नुस्खों का प्रयोग ही उनके पालतू पशुओं की जान बचाने का सबसे बेहतर तरीका है.