Balaghat News: बच्चियां बीमार पड़ जाएं तो…पानी टंकी पर चढ़ खोजते हैं नेटवर्क, डिजिटली डिस्कनेक्ट हैं नक्सल प्रभावित गांव!

Balaghat News: बच्चियां बीमार पड़ जाएं तो…पानी टंकी पर चढ़ खोजते हैं नेटवर्क, डिजिटली डिस्कनेक्ट हैं नक्सल प्रभावित गांव!


“हमारे बच्चे बाहर छात्रावास में पढ़ते हैं. उनसे महीने-दो महीने में ही मुलाकात होती है. अगर उनकी तबीयत खराब हो जाए, तो उनकी खबर तक नहीं मिलती. सरकार से कोई उम्मीद नहीं है कि वह टावर लगा दे.”

ये कहना है माटे की रहने वाली यमुना उइके का, जिनकी बेटी बालाघाट के पास के गांव स्थित सरकारी होस्टल में रहकर पढ़ती है. दरअसल, उनके गांव में सालों से नेटवर्क की समस्या है. ऐसे में उन्हें कोई समस्या आ जाए, तो फोन पर बात करने के लिए टीले पर चढ़ना पड़ता है.

मानव की मूलभूत सुविधा में रोटी, कपड़ा और मकान को गिना जाता रहा है. लेकिन बीते कुछ सालों में बिजली और इंटरनेट को मानव की अहम जरूरतें मानी जा रही है. ऐसा इसलिए है क्योंकि शासन की सारी योजनाएं भी ऑनलाइन हो गई. कम्प्यूटर, लैपटॉप का इस्तेमाल पढ़ाई लिखाई से व्यवसायों में होने लगा. वहीं, इन सब के लिए बिजली की भी जरूरत पड़ने लगी. लेकिन यह कहा जाए के देश के कुछ गांव इन बुनियादी सुविधाओं से वंचित रह रहे हैं, तो हैरानी होना लाजमी है. जी हां, मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के नक्सल प्रभावित गांवों में आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. ऐसे में बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी को समस्या का सामना करना पड़ता है. देखिए लोकल 18 की ग्राउंड रिपोर्ट…

नेटवर्क नहीं तो सुविधाएं नहीं
गांव के लोगों को बिना नेटवर्क कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कई बार गर्भवती महिलाओं के लिए एम्बुलेंस बुलाना हो तो इसके लिए अक्सर समस्या आती है. कावेली निवासी अशोक उइके ने बताया कि गांव में मनरेगा, आवास योजना सहित सारे काम ऑनलाइन होते हैं. ऐसे में पंचायत को कोई काम करवाना होता है, तो उन्हें बालाघाट या उकवा ले जाना पड़ता है.

बैंक मित्र के भी काम ठप
इस नक्सल प्रभावित इलाके में बैंक मित्र भी है. ये ग्रामीणों को मनरेगा से मिलने वाली मजदूरी या पेंशन के पैसे विड्रॉल करने का काम करता है. लेकिन नेटवर्क नहीं होने से सारे काम ठप है.

मोहनपुर में बीएसएनएल का टावर लगा लेकिन बंद
इसी इलाके में मोहनपुर नाम का गांव है, जहां पर बीएसएनएल का टावर लगा है. लेकिन यह बंद पड़ा है. इसके लिए कभी ग्रामीण जनों ने कभी कलेक्टर कार्यालय आकर ज्ञापन सौंपा. कभी हाईवे जाम किया लेकिन अब तक समस्या का समाधान नहीं पाया है.

डिजीटली डिस्कनेक्ट है बालाघाट के गांव
बालाघाट जिला मुख्यालय से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर 16 गांवों में इंटरनेट तो दूर बात है. इन गांवों में नेटवर्क तक नहीं है. बालाघाट जिले की चार पंचायतों के 16 गांव ऐसे हैं, जहां आज भी इंटरनेट नहीं पहुंच पाया है. ये गांव परसवाड़ा तहसील के बैहर विधानसभा में आते है. इनमें ग्राम पंचायत कावेली के कोड़का, बोदल बहरा, लत्ता, गांव है. वहीं, ग्राम पंचायत चलिसबोडी के पाला गोंदी, माटे, नया टोला गांव है.  ग्राम पंचायत मोहनपुर से सोनवानी, कन्हाटोला, उस्कालचक, कुलपा, और ग्राम पंचायत कसंगी के कुआं गोनी, सर्रा शामिल है. इन गांवों में लोग अपनों से बात करने के लिए जंगल की ओर जाते हैं तो कुछ लोग पानी की टंकी पर चढ़कर इंटरनेट चलाते हैं.



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