रिजर्व में 92 प्रकार के पेड़, 49 प्रकार की झाड़ियां और जड़ी-बूटियां, 18 प्रकार की लताएं तथा 35 प्रकार की घास पाई जाती हैं. ये सभी मिलकर एक ऐसा आवास तैयार करते हैं, जो वन्यजीवों के लिए आदर्श है. संरक्षित क्षेत्र में पक्षियों की 230 से अधिक प्रजातियां निवास करती हैं, जिनमें हंसारस, एग्रेट्स, स्टोर्क्स, बाज, गिद्ध, तीतर और बटेर, कबूतर, तोते, कोयल, उल्लू, फ्लाईकैचर्स और मैना जैसे पक्षी शामिल हैं.
इन सबके बीच एक ऐसा पक्षी है, जो दुर्लभता की मिसाल है. उसे सैंड ग्राउस कहते हैं. यह पक्षी सूखे और गर्म क्षेत्रों में पाया जाता है, जहां पानी की कमी जीवन की सबसे बड़ी चुनौती होती है. सैंड ग्राउस का जीवन संघर्षपूर्ण है. यह मुख्य रूप से बीज, दाने और घास के तिनकों पर निर्भर रहता है, लेकिन अपने बच्चों को पालने के लिए यह असंभव को संभव कर दिखाता है.
पानी लाने की अनोखी कला
इस पक्षी को जब पानी की जरूरत पड़ती है, तो यह पक्षी 30-40 मील दूर स्थित जल स्रोत तक उड़ान भरता है. वहां पहुंचकर अपने शरीर को बार-बार पानी में डुबोता है, जिससे उसके पंख स्पंज की तरह पानी सोख लेते हैं. जब उसे यकीन हो जाता है कि पर्याप्त पानी इकट्ठा हो गया, तब यह वापस घोंसले की ओर लौटता है. बच्चे इन पंखों से ही पानी पीते हैं और बाकी पानी को पक्षी हिलाकर बच्चों पर छिड़क देता है. इससे उन्हें ठंडक मिलती है. यह अनोखी तकनीक इसे दुर्लभ पक्षियों की श्रेणी में रखती है, क्योंकि ऐसे सूखे इलाकों में जीवित रहना और संतान पालना कोई आसान काम नहीं.
सैंड ग्राउस की यहां दोनों प्रजातियां
नौरादेही टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. एए अंसारी बताते हैं, “यह क्षेत्र ड्राई एरिया है और यहां के स्थानीय पक्षी बेहद अनुकूलित हैं. सैंड ग्राउस अपने पंखों के निचले हिस्सों में पानी सोख लेता है, फिर अपने चूजों को पंखों से पानी पिलाता है और उन्हें ठंडा रखता है. हमारे यहां सैंड ग्राउस और पेंटेड सैंड ग्राउस दोनों प्रजातियां पाई जाती हैं. आमतौर पर यह बीज, दाने और घास के तिनके खाता है.” आगे कहते हैं कि यह पक्षी खुले और बड़े मैदानों में अधिक पाया जाता है, लेकिन इनकी प्रजाति पर संकट मंडरा रहा है क्योंकि उनके प्राकृतिक आवास लगातार नष्ट हो रहे हैं.