यूपीएससी सीडीएस परीक्षा पास करने के बाद उम्मीदवारों को पांच दिनों का कठिन इंटरव्यू देना पड़ता है, जिसे पास करना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. आयुषी ने न केवल लिखित परीक्षा में बेहतरीन प्रदर्शन किया, बल्कि इंटरव्यू में भी अपनी क्षमता साबित की. अब वे ट्रेनिंग के लिए जाएंगी और कुछ महीनों में सेना की वर्दी पहनकर देश सेवा में जुटेंगी.
आयुषी बताती हैं, “जब मैं स्कूल में पढ़ती थी, उस समय रीवा की ही अवनि चतुर्वेदी का चयन वायु सेना में हुआ था. शहर में उनके बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे. तभी मैंने सोचा कि मैं भी सेना में जाऊंगी. मुझे लगता था कि सेना की वर्दी मुझ पर सूट करेगी.” यहां बता दें कि अवनी चतुर्वेदी भारत की पहली महिला फाइटर पायलट हैं, जिनसे आयुषी प्रेरित हुईं. आयुषी ने आगे बताया, स्कूल जाते समय देखे गए उन पोस्टरों ने मन में सेना में जाने का बीज बो दिया. उसी समय वर्दी से प्यार हो गया था.
चैलेंजिंग कामों में हमेशा रुचि
रीवा से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद आयुषी इंदौर चली गईं, जहां उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. पढ़ाई के अलावा, उन्हें हर वह काम पसंद था जो चुनौतीपूर्ण हो. उन्होंने जनरल नॉलेज बढ़ाने के लिए न्यूजपेपर पढ़ना और मोबाइल पर ज्ञानवर्धक सामग्री देखना कभी नहीं छोड़ा. आयुषी कहती हैं, “मैंने कभी घंटे निर्धारित करके पढ़ाई नहीं की, बल्कि मन क्या पढ़ना चाहता है और कितनी देर तक एक विषय पर फोकस कर सकता है, उसी पर ध्यान दिया. सीखते रहना ही लक्ष्य होना चाहिए.”
आयुषी के पिता रमेश वर्मा एक स्कूल में स्पोर्ट्स टीचर हैं. वे कहते हैं, “बचपन से आयुषी पढ़ाई में तेज थी. वह विभिन्न खेल खेलती थी और जूडो-कराटे में चैंपियन रही. उसने अपना लक्ष्य तय किया और जमकर मेहनत की. आज उसकी सफलता से हम गौरवान्वित हैं.”
11 बार असफल, पर हार नहीं मानी
मां ममता वर्मा गृहिणी हैं और बताती हैं, “मेरा बेटा हर्ष वर्मा भी सेना में जाना चाहता था. उसने सीडीएस पास किया था, लेकिन मेडिकल कारणों से नहीं जा सका. आयुषी का व्यवहार हमेशा साधारण रहा. सभी कॉम्पिटिटिव एग्जाम मिलाकर वह 11 बार असफल हुई, लेकिन कभी हार नहीं मानी. असफलताओं से सीखकर आगे बढ़ी और आज हम सब गर्व महसूस कर रहे हैं.”