खाटूश्याम मंदिर में डोल ग्यारस का उत्सव: 55 किमी पैदल चलकर पहुंचीं महिलाएं, 30 हजार से ज्यादा भक्त जुटे – Barwani News

खाटूश्याम मंदिर में डोल ग्यारस का उत्सव:  55 किमी पैदल चलकर पहुंचीं महिलाएं, 30 हजार से ज्यादा भक्त जुटे – Barwani News


बड़वानी के अंजड़ नगर स्थित श्री खाटूश्याम मंदिर में डोल ग्यारस पर श्रद्धालु उमड़े। दोपहर 5:30 बजे तक 15 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। देर रात तक 15 हजार और भक्तों के पहुंचने की संभावना थी।

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बुधवार सुबह 6 बजे से ही श्रद्धालुओं का आना शुरू हो गया। आस-पास के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों से भक्त निशान यात्रा लेकर पहुंचे। मंदिर प्रांगण में महिला श्रद्धालुओं ने भजन-कीर्तन किया। हजारों मन्नतधारियों ने अर्जी के नारियल बांधे और सैकड़ों भक्तों ने अपनी पूरी हुई मन्नतों के नारियल खोले।

पंडित प्रशांत शर्मा ने सुबह 6 बजे वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजन-अर्चन किया। श्याम बाबा और अन्य देवी-देवताओं का दिल्ली से मंगाए गए फूलों से श्रृंगार किया गया। बाबा को कसीदाकारी युक्त बागा पहनाया गया। स्वर्ण रंग और रत्नजड़ित कुंडल व मुकुट से उन्हें सजाया गया।

नांगलवाड़ी से 15 महिलाओं का एक समूह निशान यात्रा लेकर मंदिर पहुंचा। पायल गहलोत ने बताया कि वे सुबह 3 बजे निकली थीं। 55 किलोमीटर की पैदल यात्रा 13 घंटे में पूरी कर शाम 4 बजे मंदिर पहुंचीं। यह उनकी तीसरी निशान यात्रा थी। मंदिर ट्रस्ट ने उनका स्वागत कर स्वल्पाहार कराया।

सजाया भव्य दरबार सुबह 11 बजे व रात्रि 8:30 बजे श्याम बाबा को भोग लगाकर भोग आरती की गई। शाम 7 बजे श्रद्धालुओं की उपस्थिति में संगीतमय महाआरती कर श्याम बाबा का आकर्षक डोले में भव्य व दिव्य दरबार सजाया। ज्योत प्रज्वलित की गई, जिसमें भक्तों ने गाय के घी व सूखे खोपरे की आहुतियां प्रदान कर बाबा का आशीर्वाद लिया। इस अवसर पर श्याम एकदशी प्रसादी समिति द्वारा फलाहारी मिक्चर, विभिन्न प्रकार के मिष्ठान्नों व फलों की प्रसादी वितरित की गई।

डोल ग्यारस का महत्व:- पंडित प्रशांत शर्मा ने बताया कि डोल ग्यारस भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इसे परिवर्तिनी एकादशी, जलझूलनी या पद्मा एकादशी भी कहा जाता है। यह एकादशी भगवान विष्णु के करवट बदलने, माँ यशोदा द्वारा कृष्ण के वस्त्र धोने और श्री कृष्ण के बाल रूप की पालकी यात्रा (जल विहार) से संबंधित है। इस व्रत को करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है, सुख-सौभाग्य बढ़ता है और वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होता है।

मुख्य कारण: भगवान विष्णु का करवट लेना: धार्मिक मान्यता के अनुसार, चातुर्मास के दौरान योग निद्रा में भगवान विष्णु इसी दिन करवट लेते हैं। इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।

मां यशोदा द्वारा कृष्ण के वस्त्र धोना: मान्यता के अनुसार इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्रों को नदी के जल में धोया था। इसी कारण इसका नाम जलझूलनी एकादशी पड़ा है।

जल विहार और शोभा यात्रा: मंदिरों में इस दिन भगवान के विग्रहों को पालकी (डोले) में बिठाकर शोभा यात्रा निकाली जाती है, जिसमें मूर्तियों को झुलाया जाता है। यह जल विहार के समान होता है, जिसके कारण इसे डोल ग्यारस व पद्म एकादशी भी नाम मिला।



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