जिले में बासमती धान की खेती बड़े स्तर पर की जाती है. वहीं यहां के किसानों का कहना है, कि बासमती धान की खेती में फायदा तो है, लेकिन बुवाई के बाद फसल में लगने वाले कीटों एवं विभिन्न रोगों की वजह से नुकसान का डर हर वक्त सताता रहता है. अनजाने में यदि हल्की सी भी चूक हुई, तो इससे उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन किसानों का यह भी मानना है कि पहले से ही कुछ सावधानियां बरत ली जाएं, तो इन खतरनाक कीटों से बचाव किया जा सकता है. ऐसे में किसानों की इस समस्या के समाधान के लिए हमने रीवा के कृषि महाविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर आर पी जोशी से बात की है, तो उन्होंने इसके लिए कुछ उपाय बताए हैं, जिसके जरिए वे अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं.
बुवाई के बाद तना छेदक कीट बासमती चावल के तनों में छेद करता है और पौधों को कमजोर कर देता है.इसके साथ ही गंधी बग कीट पौधों के बीज और फूलों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे पैदावार में कमी आ सकती है. इतना ही नहीं, पत्ता लपेटक कीट पत्तियों को मोड़कर उनकी क्लोरोफिल को नष्ट कर देता है, जिससे पौधे की ग्रोथ रुक जाती है. वे कहते हैं, कि इनके प्रबंधन के लिए यदि उपाय कर लिया जाए, तो फसल तथा किसान दोनों को नुकसान से बचाया जा सकता है.
रोग एवं कीट की रोकथाम के उपाय
डॉक्टर जोशी बताते हैं कि नीम का तेल एक प्राकृतिक कीटनाशक है, जो पौधों को कीड़ों से बचाने में बहुत कारगर है. सप्ताह में एक बार 5% नीम के तेल का छिड़काव करने से तना छेदक और गंधी बग कीट जैसी समस्याएं दूर रहती हैं. इसके अलावा बाजार में उपलब्ध रजिस्टर्ड दुकान से सस्ती एवं उपयोगी कीटनाशक का इस्तेमाल किया जा सकता है.
यह एक जैविक उपाय है, जिसमें नर कीटों को आकर्षित करके फंसाया जाता है, जिससे उनकी संख्या को नियंत्रित किया जा सकता है. यह तना छेदक और पत्ता लपेटक कीटों के लिए विशेष रूप से प्रभावी है.
घास की मल्चिंग
फसल के आस-पास घास की परत बिछाकर फसलों को ढक दें. इससे कीड़ों का प्रवेश कम होता है और जड़ें भी सुरक्षित रहती हैं.
बासमती चावल की फसल के बीच दूसरी चौड़ी पत्तियों वाली फसल जैसे मूंग, उड़द आदि बोने से कीटों का हमला कम होता है. इससे कीड़े भटक जाते हैं और फसल की सुरक्षा होती है.
प्राकृतिक जैविक कीटनाशक
गोबर से बने घोल या वर्मीवॉश जैसे जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें. ये फसलों के कीटों को दूर रखते हैं और फसल को नुकसान नहीं पहुंचाते.
कब-कब करें छिड़काव?
अक्सर कीट मॉनसून के बाद फसलों पर हमला करते हैं, इसलिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह है कि मॉनसून के अंत और शरद ऋतु की शुरुआत में ही कीटनाशकों का छिड़काव कर लें. इससे कीड़े फसल पर हमला करने से पहले ही समाप्त हो जाते हैं.